खुद बीमार है इटखोरी का अस्पताल

इटखोरी : कहने को तो यह अस्पताल है, जहां रोगियों का इलाज किया जाता है। लेकिन संसाधनों के अभाव में फिल

By Edited By: Publish:Sat, 10 Oct 2015 09:27 PM (IST) Updated:Sat, 10 Oct 2015 09:27 PM (IST)
खुद बीमार है इटखोरी का अस्पताल

इटखोरी : कहने को तो यह अस्पताल है, जहां रोगियों का इलाज किया जाता है। लेकिन संसाधनों के अभाव में फिलहाल अस्पताल ही खुद बीमार है। यहां रोगियों को भर्ती करने के लिए न तो पर्याप्त जगह है और न ही चिकित्सीय उपकरणों को रखने का स्थान। फिलहाल जो सुविधाएं मुहैया है, उसी में स्वास्थ्य कर्मियों को काम चलाना पड़ रहा है। यह हाल है इटखोरी के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का। जिसे अब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का रूप दे दिया गया है। लेकिन हालात देखें, तो किसी गांव के उप स्वास्थ्य केंद्र के तरह ही दिखलाई पड़ती है। इस स्वास्थ्य केंद्र में रोगियों के इलाज के लिए फिलहाल महज एक वार्ड है। इसमें चार बेड लगे हुए हैं। रोगियों की संख्या जब बढ़ जाती है, तो बरामदे को अस्थायी वार्ड का रूप दे दिया जाता है। नसबंदी व बंध्याकरण के शिविर के दौरान स्वास्थ्य केंद्र का चबूतरा वार्ड बन जाता है। दरअसल साठ के दशक में निर्मित यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अब किसी भी दृष्टिकोण से प्रखंड मुख्यालय का अस्पताल जैसा नहीं रहा है। हालांकि इस अस्पताल की दशा को देखते हुए प्रखंड के नगवां गांव में सामुदायिक बीस शैय्या वाले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण शुरू किया गया था। लेकिन अब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण पिछले पांच छह वर्षों से अटका पड़ा है। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. विजय कुमार बताते हैं कि ऑपरेशन बेड, एक्सरे मशीन व अन्य चिकित्सीय उपकरणों को रखने के लिए भी यहां जगह नहीं है। कभी-कभार रोगियों की संख्या बढ़ जाती है, तो ओपीडी में भी रोगियों को लिटाया जाता है।

महिला चिकित्सक का है अभाव

यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में महिला चिकित्सक का अभाव है। स्वास्थ्य केंद्र में फिलहाल तीन चिकित्सकों की पदस्थापना हुई है। लेकिन तीनों पुरुष चिकित्सक हैं। ऐसे में गर्भवती महिलाओं का प्रसव चलाने की जिम्मेवारी पूरी तरह से नर्सों के भरोसे है। कभी-कभार हालात ऐसे बन जाते हैं, कि पुरुष चिकित्सकों को ही प्रसव में हाथ बंटाना पड़ता है या फिर हजारीबाग या चतरा रेफर कर दिया जाता है।

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