Inida Lockdown: खपत में कमी से औने-पौने भाव में भी दूध के लिवाल नहीं, मेधा डेयरी ने भी खड़े किए हाथ

वर्ष 2014 में पूर्व की सरकार ने नेशनल डेयरी डेवलपेंट बोर्ड के साथ मिलकर झारखंड मिल्क फेडरेशन की स्थापना की। झारखंड के लिए दूध ब्रांड मेधा को बनाया गया।

By MritunjayEdited By: Publish:Sun, 29 Mar 2020 10:14 AM (IST) Updated:Sun, 29 Mar 2020 10:14 AM (IST)
Inida Lockdown: खपत में कमी से औने-पौने भाव में भी दूध के लिवाल नहीं, मेधा डेयरी ने भी खड़े किए हाथ
Inida Lockdown: खपत में कमी से औने-पौने भाव में भी दूध के लिवाल नहीं, मेधा डेयरी ने भी खड़े किए हाथ

बोकारो, जेएनएन। झारखंड डेयरी विकास निगम लिमिटेड की कंपनी ने कोरोना संकट के समय दुग्ध उत्पादकों का साथ छोड़ दिया है। कंपनी लॉक डाउन के बाद से दूध की खरीद नहीं कर रही है। इससे यहां के दूध उत्पादकों में असंतोष है। वहीं उनके सामने चारा खरीदने के लिए भी पैसे की कमी पड़ गई है। इसका कोई भी उपाय नहीं हो पा रहा है। नगर के सभी होटल एवं रेस्टूरेंंट बंद होने से  दुग्ध उत्पादकों का दूध कोई खरीदने वाला नहीं है। अपना व पशुओं का पेट पालने के लिए कई दुग्ध उत्पादक 20 से 30 रुपये प्रति लीटर में भी दूध बेचने को तैयार हैं बावजूद खरीददार नहीं मिल रहे हैं। मजबूरी में कोई पनीर बनाकर लोगों से उधार में लेने की अपील कर रहा है तो कोई गाय को ही दूध पिला दे रहा है। दूध देने वाले लोगों का कहना है कि सरकार चाहे तो उनके दूध को खरीद कर जिस प्रकार आज लोगों के बीच अनाज का वितरण किया जा रहा है दूध का भी वितरण हो सकता है।

मेधा के भरोसे सैकड़ों लोगों ने शुरू किया था पशुपालन

वर्ष 2014 में पूर्व की सरकार ने नेशनल डेयरी डेवलपेंट बोर्ड के साथ मिलकर झारखंड मिल्क फेडरेशन की स्थापना की। झारखंड के लिए दूध ब्रांड मेधा को बनाया गया। सरकार ने कहा था कि  डेयरी राज्य में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देगी एवं यहां पशुपालकों की संख्या में वृद्धि कराने में मदद करेगी। कई लोगों ने गव्य विकास  के अधिकारियों के कहने पर बैंकों से ऋण लेकर दूध उत्पादन का कार्य शुरू किया लेकिन आज स्थिति यह है कि विभागीय अधिकारी भी कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं।

क्यों फेल हुई मेधा डेयरी

राज्य निर्माण से 2014 तक सरकार बिहार से सुधा के प्लांट को झारखंड सरकार को देने के लिए लड़ाई लड़ती रही। इसके बाद 2014 में मामला नहीं सलटा तो यहां अपना प्लांट व सिस्टम तैयार किया गया। पर सबसे खराब स्थिति यह रही कि रांची को छोड़ मेधा ने राज्य में अपने दूध की मार्केटिंग के लिए कुछ खास नहीं किया। केवल कुछ हिस्सों में या छोटे-छोटे दुकानों तक ही रह गया। जबकि झारखंड के बड़े दूध बाजार पर बिहार, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के ब्रांड राज कर रहें हैं। इनमें से सुधा को छोड़कर किसी का भी स्थानीय व्यवस्था नहीं है।

क्या-क्या बनाती है कंपनी

कंपनी सुधा की तरह ही दूध, दही, घी, पनीर का उत्पादन करती है। कंपनी का झारखंड में चार प्लांट है। कंपनी की ओर से 29 मार्च तक दूध की खरीद पर रोक लगा दिया गया है। संभावना है कि इसमें और वृद्धि हो सकती है। यह आदेश तब का है जब लॉक डाउन 31 मार्च तक निर्धारित था।

क्या कहते हैं विपणन पदाधिकारी

मेधा के क्षेत्रीय विपणन पदाधिकारी अनूज कुमार पाण्डेय ने फोन करने पर बताया कि बाजार में दूध की बिक्री नहीं हो रही है। इसलिए अभी दूध नहीं खरीद कर रहे हैं। प्लांट में लगभग डेढ़ करोड़ का दूध है, उसे बेचा जा रहा है। यह स्टॉक समाप्त होगा तो फिर से खरीद प्रारंभ करेंगे।

सभी संयंत्रों में दूध का स्टाक बढ़ा हुआ है। शहर में होटल व अन्य व्यवसाय ठप है इसलिए दूध की खपत नहीं हो रही है। हम लोगों ने प्रयास किया था लेकिन जमीन के आभाव में मेधा का बूथ स्थापित नहीं हो सका। जिले में रीटेलर हैं पर खपत नहीं हो रही है। इसलिए खरीद बंद है।

-सुरेश कुमार, जिला गव्य विकास पदाधिकारी

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