जानिए, महबूबा मुफ्ती की आतंकियों से नरमी के पीछे क्या है वजह

Mehbooba Mufti. सत्ता में रहते आतंकियों पर सख्त कार्रवाई के फरमान जारी करने वाली महबूबा मुफ्ती अब आतंकियों के समर्थन में नजर आ रही हैं।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Fri, 04 Jan 2019 08:12 PM (IST) Updated:Fri, 04 Jan 2019 08:20 PM (IST)
जानिए, महबूबा मुफ्ती की आतंकियों से नरमी के पीछे क्या है वजह
जानिए, महबूबा मुफ्ती की आतंकियों से नरमी के पीछे क्या है वजह

जम्मू, नवीन नवाज। सत्ता में रहते आतंकियों पर सख्त कार्रवाई के फरमान जारी करने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्‍यक्ष महबूबा मुफ्ती की बोली आजकल बदल गई है। वह अब आतंकियों के समर्थन में नजर आ रही हैं। उनके रवैये में बदलाव से न कश्मीरी और न ही कश्मीर की सियासत के जानकार हैरान हैं। राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों की आहट शुरू हो चुकी है। जम्‍मू-कश्‍मीर की सत्‍ता से दूर होने के बाद पार्टी में मची भगदड़ थामने के लिए महबूबा को अलगाववादियों के समर्थन ही उम्‍मीद बची है। ऐसे में वह फिर से अलगाववादी विचारधारा के करीब जा पहुंची हैं। पीडीपी की कोर टीम में चुनाव अभियान के दौरान इसी मसले को आग ले जाने की सहमति बन चुकी है। इसकी औपचारिक घोषणा सात जनवरी को मुफ्ती मोहम्‍मद सईद की बरसी पर किया जा सकता है।

दो साल पहले तक पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में बतौर मुख्यमंत्री महबूबा आतंकियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाते हुए कानून व्यवस्था की स्थिति में सुरक्षाबलों के बल प्रयोग में किसी नागरिक की मौत को न्यायोचित ठहराती थीं। अब वह पुलवामा और शोपियां में सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए आतंकियों के घर जा रही हैं और वहां जाकर उन्होंने पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों को आड़े हाथ लेते हुए राज्यपाल सत्‍यपाल मलिक से कहा कि वह सुरक्षाबलों को निर्देश दें कि कोई भी आतंकियों के परिजनों को तंग न करे। उन्होंने यहां तक कहा कि मुझे पता है कि आतंकियों के परिजनों को तंग करने का निर्देश कहां से आता है। वर्ष 2015 से जून 2018 तक वह सुरक्षाबलों के साथ पूरी तरह मुख्यधारा में मोर्चा संभाले हुए थी। अब वह मुख्यधारा की सियासत में छद्म तरीके से अलगाववाद और आतंकवाद के एजेंडे को हवा दते हुए पाला बदल चुकी हैं।

करीब 23 साल से रियासत की सियासत में सक्रिय महबूबा मुफ्ती अलगाववादियों और आतंकियों के प्रति सहानुभूति के दांव से ही पीडीपी का आधार बनाने में कामयाब रही हैे। सत्ता में आने से पूर्व उन्होंने कभी पाकिस्तान की सीधे शब्दों में कभी निंदा नहीं की बल्कि हमेशा सुलह-सफाई की बात करती रही हैं। कांग्रेस से अलग होने के बाद वर्ष 1999 में पीडीपी के गठन से कुछ दिन पहले से ही वादी में अपना एक जनसंपर्क अभियान शुरु किया था। यह अभियान सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के परिजनों व जेलों में बंद आतंकियों की रिहाई के लिए था। जहां कभी काई आतंकी मारा जाता, महबूबा को उसके जनाजे में या उसके घर में जरूर देखा जाता था।

अपने इस अभियान से उन्होंने कश्मीर के उस वर्ग में अपने लिए जगह बनाई जो यह सोचता था कि अगर बंदूक से आजादी नहीं मिलेगी तो कम से कम महबूबा मुफ्ती सत्ता में आने पर उन्हें आजादी की तरफ वैधानिक तौर पर ले जाने का रास्ता जरुर तैयार कर देंगी। उन्हें जमायत ए इस्लामी का भी पर्दे के पीछे समर्थन इसलिए प्राप्त रहा। कश्मीर के सबसे बड़े आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को कभी जमायत ए इस्लामी का फौजी बाजू भी कहा जाता रहा है। आज भी हिज्ब का अधिकांश कैडर जमायत ए इस्लामी से ही किसी न किसी तरीके से जुड़ा है। वर्ष 2002 में जब पीडीपी पहली बार सत्तासीन हुई थी और उससे पूर्व भी महबूबा ने कश्मीर के हर शहर और मोहल्ले में सुरक्षाबलों के खिलाफ रैलियां की थी। मारे गए आतंकियों के परिजनों के साथ उनकी संवेदना और सेल्फ रूल का एजेंडे को उन्‍होंने सत्‍ता तक पहुंचने का हथियार बनाया था। साथ ही, इस्लाम को लेकर कश्मीरी मुस्लिमों की भावुकता काे साधने में सफल रही।

नई दिल्ली को लताड़ा और पाक पर नरम रवैया

राज्य के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में आतंकियों और अलगाववादियों के प्रति सहानुभूति की बैसाखी और उनका समर्थन ही कमजोर होती पीडीपी व अपने ही खेमे में अलग थलग होती नजर आ रही महबूबा को सहारा दे सकती हैं। इस तथ्य को वह अच्छी तरह जानती हैं। इसलिए वह एक बार फिर आतंकियों के घरों में जा रही हैं, उनके समर्थन में बयानबाजी कर रही हैं। वह यह भी जानती हैं कि कश्मीर की सियासत में रहने के लिए जितना जरूरी नई दिल्ली और सुरक्षाबलों को लताडऩा जरूरी है, उतना ही जरूरी इस्लाम का खैरख्वाह होने का दावा करना व पाकिस्तान के प्रति नरम रहना।

दक्षिण कश्मीर पर ही दारोमदार

पीडीपी का मजबूत जनाधार दक्षिण कश्मीर में ही है। पूरे दक्षिण कश्मीर में 17 विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें से 14 सीटों पर उसने बीते विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी। दक्षिण कश्मीर ही बीते तीन वर्षों के दौरान कश्मीर में जारी हिंसा का केंद्र रहा है। सुरक्षा बलों के सबसे बड़े अभियान भी इन क्षेत्रों में ही चले हैं। ऐसे में दक्षिण कश्मीर के पुलवामा व शोपियां में सबसे पहले मारे गए आतंकियों के घरों में जाकर संवेदना जताकर सहानुभूति बटोरने का काम शुरू प्रयास किया है।

महबूबा की मजबूरी: बड़े धुरंधर कर रहे किनारा

-पूर्व मंत्री इमरान रजा अंसारी

- पूर्व विधायक आबिद अंसारी और इमरान अंसारी के करीबी रिश्तेदार

- पूर्व विधायक मोहम्मद अब्बास वानी

- महबूबा सरकार में मंत्री रहे बशारत बुखारी और पीर मोहम्मद हुसैन को नेशनल कांफ्रेंस में शामिल होने की चर्चाओं के बीच पार्टी ने निकाल दिया।

- पूर्व वित्त मंत्री डॉ. हसीब द्राबु, मंत्रिमंडल में बदलाव के बाद से नाराज चल रहे थे।

इसके अलावा संगठन के एक दर्जन से अधिक नेता भी पार्टी को किनारा कर चुके हैं।

हालांकि विपरीत हालात में भी कुछ साथी साथ खड़े हैं। इनमें पार्टी के संरक्षक और सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग प्रमुख हैं। पूर्व विधायक दिलावर मीर और मोहम्मद अशरफ मीर, गुलाम नबी हंजूरा, मोहम्मद शफी, मुश्ताक अहमद शाह, अब्दुल रहमान वीरी, सरताज मदनी, जहूर अहमद मीर, जावेद मुस्तफा मीर, सईद बशीर, मोहम्मद खलील बंड और अल्ताफ बुखारी व काजी अफजल जैसे नेता और पूर्व विधायक नाराजगी के बावजूद महबूबा के साथ ही बने हैं।

महबूबा के कट्टरपंथी बोल

विधानसभा भंग होने के बाद ही महबूबा ने सुर बदलने शुरू कर दिए। पहले भाजपा के साथ गठबंधन को पाप बताया और पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं को इसके लिए जिम्‍मेवार। फिर मुस्लिम एजेंडे को हवा देनी शुरू कर दी और अलग लद्दाख डिवीजन बनाने का विरोध किया। साथ ही जम्‍मू के मुस्लिम बहुल क्षेत्र चेनाब वेली को अलग डिवीजन बनाने की मांग उठा दी।  

29 दिसंबर को एनआइए की जांच पर उठाए थे सवाल। कहा था, सूतली बम दिखाकर उन्हें आइएस से जोड़ना जल्दबाजी होगी। इसे एक धर्म विशेष के खिलाफ कार्रवाई बताया।

30 दिसंबर को महबूबा एक आतंकी के घर गई थी। पुलिस को दी थी उनके परिवार न प्रताड़ित करने की चेतावनी।

3 जनवरी, 2019 को पुलवामा में आतंकी के परिवार से मिलने जा पहुंची और उनकी प्रताड़ना का मसला उठाया।

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