Major Dhyan Chand Birthday Special: हाकी के जादूगर को रहता था 'चांदनी' का इंतजार

Major Dhyan Chand Birthday Special देश को ओलिंपिक खेलों में तीन बार स्वर्ण पदक जिताने वाले मेजर ध्यानचंद को हमेशा का चांद का इंतजार रहता था क्योंकि वे अपने शुरुआती दिनों में चांद की रोशनी में ही प्रैक्टिस कर पाते थे।

By Vikash GaurEdited By: Publish:Sun, 29 Aug 2021 07:40 AM (IST) Updated:Sun, 29 Aug 2021 02:23 PM (IST)
Major Dhyan Chand Birthday Special: हाकी के जादूगर को रहता था 'चांदनी' का इंतजार
Major dhyan chand की आज जन्म जयंती है

नई दिल्ली, विकाश गौड़। Major Dhyan Chand Birthday Special: भले ही देश के सबसे बड़े खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जीवन शुरुआत में और आखिरी के दिनों में गरीबी में बीता, लेकिन कभी उन्होंने अभावों का रोना नहीं रोया। यही कारण है कि आज यानी 29 अगस्त को देश मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को खेल दिवस के रूप में सेलिब्रेट कर रहा है। हालांकि, एक समय ऐसा था जब ध्यानचंद को चांदनी का इंतजार रहता था।

29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में जन्मे मेजर ध्यानचंद को बचपन से हाकी खेलने का शौक नहीं था, लेकिन 16 साल की उम्र में उनको पहली बार हाकी खेलने का मौका मिला और वे बाद में चलकर हाकी के खेल में भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के महान खिलाड़ियों में शामिल हो गए। एक समय ऐसा था जब मेजर ध्यानचंद और भारत का हाकी की दुनिया में एक क्षत्र राज हुआ करता था और दुनिया की हर टीम उनके आगे पानी मांगती थी।

पद्मभूषण सम्मानित ध्यानचंद की किस्मत भारतीय सेना में आकर बदली, जहां से उनको थोड़ी बहुत कमाई होती थी, लेकिन ये कमाई भी कुछ खास नहीं होती थी। यहां तक कि सेना का शेड्यूल बहुत टाइट होता है। ऐसे में उनको हाकी की प्रैक्टिस करने में समय नहीं मिल पाता था। यही वजह थी कि वे हर रोज चांदनी यानी चांद की रोशनी का इंतजार करते थे। चांद जब अपने शबाब पर होता था तो हाकी का ये जादूगर अपने प्रैक्टिस किया करता था, क्योंकि उस समय फ्लडलाइट्स का जमाना नहीं था।

ध्यानचंद तीन बार ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हाकी टीम के कप्तान और सदस्य भी रहे हैं। 1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक, 1932 लास एंजेल्स ओलिंपिक और 1936 बर्लिन ओलिंपिक में उन्होंने देश को गोल्ड मेडल जिताया था। इन तीनों ही टूर्नामेंटों में उनकी हाकी रुकने का नहीं लेती थी। जब-जब भारत को जरूरत होती थी ध्यानचंद हमेशा गोल किया करते थे। बर्लिन ओलिंपिक के दौरान वे दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर से भी भिड़े थे।

दरअसल, 1936 में बर्लिन ओलिंपिक में भारतीय टीम पहुंची तो मेजर ध्यानचंद की खूब वाहवाही जर्मनी के अखबारों में हुई, लेकिन भारतीय हाकी टीम, जो ध्यानचंद की कप्तानी में दिल्ली की टीम से हार चुकी थी, उसे वार्मअप मैच में जर्मनी से हार मिली तो हिटलर खुशी के मारे फूले नहीं समाए और कह दिया कि ध्यानचंद कुछ नहीं है, लेकिन अगले कुछ दिनों में ध्यानचंद ही थे, जिन्होंने हिटलर को मायूस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

भारत ने जर्मनी की जमीन पर हुई ओलिंपिक खेलों के फाइनल में मेजबान जर्मनी को 8-1 से बुरी तरह हराया और फिर गोल्ड मेडल जीता। ये गोल्ड मेडल हिटलर भारतीय टीम के खिलाड़ियों को पहनाने वाले थे, लेकिन वे अपनी टीम के खराब प्रदर्शन और ध्यानचंद के दमदार प्रदर्शन से निराश होकर स्टेडियम से चले गए। ये मुकाबला 15 अगस्त 1936 को खेला गया था। ये दिन भारत के लिए खास रहा, क्योंकि 11 साल बाद इसी दिन देश आजाद भी हुआ।

अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागने वाले मेजर ध्यानचंद को ओलिंपिक 1936 खेलों के बाद हिटलर ने बुलाया था तो उस समय सिर्फ एक ही बात सभी की जुबान पर थी कि न जाने ध्यानचंद के साथ हिटलर क्या करेगा, क्योंकि सभी ने सैकड़ों कहानियां हिटलर की तानाशाही के बारे में सुन ली थीं। हालांकि, ध्यानचंद के सामने हिटलर ने आफर रखा कि वे भारत के लिए नहीं, बल्कि जर्मनी के लिए खेलें, जहां उनको बड़ी रैंक, मोटा पैसा और वो सबकुछ मिलेगा, जिसके वे हकदार हैं, लेकिन उन्होंने इस आफर को कबूल नहीं किया।

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