छात्रवृत्ति घोटाला: हिमाचल में एसीएस व सात अधिकारी सीबीआइ की रडार पर

छात्रवृत्ति घोटाले में एसीएस व सात अधिकारी सीबीआइ जांच के दायरे में आ सकते हैं उन्हें किसी भी समय पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।

By Babita kashyapEdited By: Publish:Fri, 02 Aug 2019 10:39 AM (IST) Updated:Fri, 02 Aug 2019 10:39 AM (IST)
छात्रवृत्ति घोटाला: हिमाचल में एसीएस व सात अधिकारी सीबीआइ की रडार पर
छात्रवृत्ति घोटाला: हिमाचल में एसीएस व सात अधिकारी सीबीआइ की रडार पर
शिमला, राज्य ब्यूरो। छात्रवृत्ति घोटाले में सीबीआइ एक अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) से पूछताछ कर सकती है। इसके अतिरिक्त सचिवालय में सेवारत छोटे स्तर के सात अधिकारी भी सीबीआइ जांच के दायरे में आ सकते हैं। एसीएस व ये सात अधिकारी सीबीआइ की रडार पर हैं। जांच एजेंसी इन्हें किसी भी समय पूछताछ के लिए बुला सकती है।
सचिवालय के निचले स्तर के अधिकारियों के निकट रिश्तेदारों के बैंक खातों में पैसा जमा होने की आशंका है।
एसीएस छात्रवृत्ति घोटाले के समय तकनीकी शिक्षा विभाग से संबंधित रहे हैं। हो सकता है कि उनसे पहले के आइएएस अधिकारियों से भी सीबीआइ पूछताछ करे। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि उनकी इस मामले में संलिप्तता हो। लेकिन छात्रवृत्ति घोटाले के शिक्षा व तकनीकी शिक्षा विभाग से जुड़े होने के कारण उनसे पूछताछ संभव है। 
 
एसीएस के बचाव में संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस मामले में एसीएस के बचाव में आ गया है। संघ से जुड़े एक व्यक्ति ने उनकी वकालत शुरू कर दी है। इस मामले में सचिवालय स्तर के छोटे अधिकारियों के रिश्तेदारों के नाम सामने आने की बात कही जा रही है। ऐसे में सचिवालय में सेवारत उन अधिकारियों से भी जवाब मांगा जा सकता है। 
  
कब्जे में लिया था रिकॉर्ड
सीबीआइ ने हाल ही में छात्रवृत्ति घोटाले में ऊना जिला के अम्ब में शिक्षण संस्थानों का रिकॉर्ड कब्जे में लिया था। इसके अलावा छात्रवृत्ति घोटाले में शामिल रहे दो बैंकों के पांच अधिकारियों से करीब छह घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की थी। इस मामले की जांच के लिए गठित सीबीआइ की टीमें चंडीगढ़ सहित प्रदेश के विभिन्न सरकारी विभागों में छानबीन कर रही हैं।
 
क्या है मामला
हिमाचल में छात्रवृत्ति घोटाला वर्ष 2013 से 2017 के बीच का है। करीब 250 करोड़ रुपये के इस घोटाले में विद्यार्थियों को मिलने वाले छात्रवृत्ति में गड़बड़ी हुई थी। इस अविध के दौरान स्कूलों व कॉलेजों के विद्यार्थियों और आइटीआइ के प्रशिक्षुओं को छात्रवृत्ति नहीं मिली थी। उनके नाम से पैसा कहीं दूसरी जगह निकलता रहा था।
 

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