हर साल 1100 लोग बन रहे काल का ग्रास
पहाड़ी राज्य हिमाचल में हर साल तीन हजार से अधिक सड़क हादसे हो रहे हैं। इनमें मौतों का आंकड़ा किसी युद्ध से भी भीषण है। चाहे वो युद्ध किसी देश के खिलाफ हो या आतंकवाद के खिलाफ। न हादसे थम रहे हैं और न ही इनमें होने वाली मौतें।
रमेश सिगटा, शिमला
पहाड़ी राज्य हिमाचल में हर साल तीन हजार से अधिक सड़क हादसे हो रहे हैं। इनमें मौतों का आंकड़ा किसी युद्ध से भी भीषण है। न हादसे थम रहे हैं और न ही इनमें होने वाली मौतें। हर वर्ष औसतन 1100 लोग असमय काल का ग्रास बन रहे हैं। वहीं पांच हजार से अधिक लोग जख्मी हो रहे हैं। खून की प्यासी यह सड़कें कभी किसी घर का सुहाग उजाड़ रही हैं तो कहीं पर घर का चिराग बुझा रही हैं। बंजार हादसे ने तो पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। न कानून की कमी है और न ही नियमों की, लेकिन इनका धरातल पर सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होता है। मोटर वाहन अधिनियम लागू करने की जिन कंधों पर अहम जिम्मेदारी है, वे इसे निभाने में नाकाम रहे हैं। पुलिस और परिवहन विभाग को कानून की तभी याद आती है, जब बड़ा हादसा हो जाए या चालान का लक्ष्य पूरा करने के लिए कोई विशेष मुहिम चलाई जा रही हो। आमतौर पर ओवरलोडिंग को कोई चेक नहीं करता। बंजार हादसे का प्रमुख कारण भी ओवरलोडिंग ही बताया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़िये, राजधानी शिमला में ही परिवहन से जुड़े नियमों को ठेंगा दिखाया जाता है। ओवरलोडिंग के लिए जिम्मेदार निजी बस संचालकों पर कार्रवाई करने की कोई हिम्मत नहीं जुटाता है। सरकारी बसों के हालत यह यह हैं कि वह रुकती ही नहीं हैं।
डेढ़ साल में ही कई बड़े हादसे हो गए कि अब लोगों का तंत्र से भरोसा उठने लगा है। हां, सरकार हर बड़े हादसे के बाद मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश जरूर देती है। ऐसी जांच में सुधार की जो सिफारिश होती है, उस पर भी विभाग अमल नहीं करते हैं। 100 दिन तक चलाया था अभियान
जयराम सरकार के सत्ता में आने के बाद पुलिस विभाग ने मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने के लिए 100 दिन का एक्शन प्लान तैयार किया। इस फैसले के अनुसार सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिए गए कि वे नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों, खासकर शराब पीकर गाड़ी चलाने, गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना, बिना सीट बेल्ट पहनकर गाड़ी चलाने वालों के विरुद्ध कानूनी कारवाई करें। इसका असर भी देखा गया। पिछले साल 19 जनवरी से पहली फरवरी तक प्रदेश में शराब पीकर गाड़ी चलाने के 161 चालान किए। बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चलाने के आरोप में राज्य में 5942 व्यक्तियों के चालान हुए। गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल फोन सुनने के कुल 489 व्यक्तियों के विरुद्ध कारवाई की गई। बिना सीट बेल्ट पहने गाड़ी चलाने के 3636 चालान हुए थे। हिमाचल में 11 साल में हुए हादसे
वर्ष,कितने हादसे,मौतें, घायल
2009,3076,1140,5579
2010,3073,1102,5325
2011,3099,1353,5462
2012,2901,1109,5248
2013,2981,1054,5081
2014,3059,1199,5680
2015,3010,1097,5109
2016,3156,1163,5587
2017,3119,1176,5338
2018,3119,1168,5444
2019,1168,430,2155
(इस वर्ष के आंकड़े मई तक के)
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हिमाचल में हुए प्रमुख हादसे -अगस्त 2012 : चंबा में टायर फटने से बस गिरी, 47 की मौत
-अप्रैल 2017 : हिमाचल व उत्तराखंड की सीमा पर गुम्मा के पास बस के टौंस नदी में गिरने से 43 सवारियों की मौत
-जुलाई 2017 : शिमला के रामपुर में बस खाई में गिरी, 20 यात्री बने काल का ग्रास
- अप्रैल 2018 : नूरपुर क्षेत्र में स्कूली बस दुर्घटनाग्रस्त होने से 23 मासूम बच्चों समेत 27 की मौत
-अप्रैल 2019 : पठानकोट से डलहौजी आ रही बस दुर्घटना में 12 यात्रियों की मौत
------------------ सड़क सुरक्षा पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2013 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार -प्रतिवर्ष 1.24 मिलियन लोगों की मृत्यु सड़क दुर्घटनाओं से होती है
- शराब पीकर गाड़ी चलाने से दुर्घटना होने का खतरा बढ़ जाता है। शराब पीकर गाड़ी चलाने को रोकने से संबंधित कानून को सख्ती से लागू करने से मृतकों की संख्या को 23 फीसद तक कम किया जा सकता है
- औसत पांच फीसद स्पीड कम करने से 30 फीसद तक घातक टक्कर होने में कमी की जा सकती है
- हेलमेट का प्रयोग करने से 40 फीसद तक मौत के खतरे को कम किया जा सकता है और 70 फीसद तक गंभीर चोटों में कमी जा सकती है
- सीट बेल्ट पहनने से गाड़ी में आगे वाली सीट और पीछे की सीट पर बैठे व्यक्तियों की घातक चोटों को क्रमश: 50 और 70 फीसद तक कम किया जा सकता है।
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