..सांसे थमने लगी थीं, आज न बचाते तो शायद चली जाती जान

सांस थमने लगी थी, आज न बचाते तो शायद जान चली जाती। लेकिन वायु सेना के जवान फरिश्ते बनकर आए और बर्फ की कैद से मुक्ति दिला दी।

By Munish Kumar DixitEdited By: Publish:Fri, 28 Sep 2018 10:14 AM (IST) Updated:Fri, 28 Sep 2018 10:14 AM (IST)
..सांसे थमने लगी थीं, आज न बचाते तो शायद चली जाती जान
..सांसे थमने लगी थीं, आज न बचाते तो शायद चली जाती जान

दव‍िंद्र ठाकुर, कुल्लू: सांस थमने लगी थी, आज न बचाते तो शायद जान चली जाती। लेकिन वायु सेना के जवान फरिश्ते बनकर आए और बर्फ की कैद से मुक्ति दिला दी। कुल्लू के ढालपुर मैदान में पहुंचने पर गुजरात की दीक्षा ने यह बात कही। दीक्षा ने बताया हम मनाली से लाहुल की वादियों को देखने चले गए। लेकिन हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि लाहुल में इतनी बर्फ पड़ती है। यहां पर हमें सांस लेने में बहुत परेशानी आ रही थी, कुछ समय और रुकते तो शायद मेरी जान चली जाती।

मैं सेना के जवानों और जिला कुल्लू प्रशासन का आभार जताती हूं कि समय रहते हमें सुरक्षित कुल्लू पहुंचाया और उपचार भी करवाया। हम सभी पांच लोग छोटादड़ा में छह दिन से फंसे थे दो दिन पूर्व हमें खाना मिला और यहां पर रेस्ट हाउस में इक्टठे ठहरे रहे। मुझे तो साथ में आए हुए साथियों का नाम तक याद नहीं रहा। वीरवार को कुल्लू के ढालपुर मैदान में सकुश्ल पहुंचे लोगों ने राहत की सांस ली।

10 महिलाओं और बच्चों ने दिखाई हिम्मत 

कुल्लू पहुंचे गुजरात, मुंबई, दिल्ली, उत्तराखंड की दस महिलाएं व उनके साथ तीन छोटे बच्चों को देख सेना के जवान भी हैरान हो गए। आखिर छह दिन तक छोटे-छोटे बच्चों को लेकर ज‍िंदा कैसे रहे। यह सभी महिलाएं व बच्चे छोटादड़ा में फंसे थे यहां से इन्हें के पास ही विश्राम गृह में ठहराया गया। गुजरात निवासी पि‍ंकी ने बताया हम लोगों को सभी का प्यार मिला एक-दूसरे को हौसला देते हुए छह दिन बीता दिए।

रात को सांस लेना होता था मुश्किल

चंदन दिनभर बातें कर गुजार लेते थे, शाम को धुंध बढ़ने से सांस लेना मुश्शि्कल हो जाता था। उत्तराखंड के चंदन ने बताया हम लोग 21 को मनाली से लाहुल घूमने निकले थे यहां के नेचर को देख खुश होते हैं लेकिन इतनी बर्फ भी होती है यह तो हमने कभी सोचा भी नहीं था। लाहुल जाना खतरे से खाली नहीं है। वहां के लोग कैसे रहते होंगे।

chat bot
आपका साथी