छोटा बच्चा तेज सांस ले तो नजरअंदाज न करें, इन बीमारियों की चपेट में आ रहे बच्चे; जानिए कैसे करें बचाव
बच्चों में सर्दी-खांसी और वायरल के केस ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। इससे बच्चे निमोनिया और ब्रौंकियोलाइटिस के मरीज हो रहे हैं।
शिमला, जेएनएन। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (आइजीएमसी) में निमोनिया और ब्रौंकियोलाइटिस से बच्चे ग्रसित हो रहे हैं। बच्चों में सर्दी-खांसी और वायरल के केस ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। इससे बच्चे निमोनिया और ब्रौंकियोलाइटिस के मरीज हो रहे हैं। आइजीएमसी के चिल्ड्रन वार्ड व ओपीडी में तीन माह मेंइसके 30 फीसद मरीज बढ़े हैं। इनमें 0 से तीन साल के बच्चे शामिल हैं। ओपीडी में 100 से 150 मरीज बच्चे रोजाना चेकअप के लिए आते हैं। बच्चों को ठंड से तबीयत खराब रहने की शिकायतें सामने आ रही हैं।
विषाणु जनित आम संक्रमण
ब्रौंकियोलाइटिस यानि श्वासनलिकाशोथ साधारण सर्दी-जुकाम का ही एक प्रकार है। यह विषाणु जनित एक आम संक्रमण है, जो कि फेफड़ों के सबसे छोटे वायु मार्ग में सूजन और श्लेम (म्यूकस) भर जाने के कारण होता है। इससे हवा का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है, जिससे बच्चों को सांस लेने में मुश्किल होती है। वहीं सर्दी लग जाने से बच्चों में निमोनिया होना आम है।
मौसम में बदलाव के कारण ज्यादा दिक्कत
आइजीएमसी के पीडियाट्रिक विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी सूद ने बताया कि ये दोनों बीमारियां बच्चों को साल में किसी भी समय हो सकती हैं, मगर सर्दी आने से और मौसम के बदलाव के दौरान यह ज्यादा होता है। अगर एक साल से कम उम्र के बच्चे तेज सांस लेने और सुस्त रहने लगें तो इस लक्षण को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसे नजरअंदाज करने से यह रोग श्वसन तंत्र की गंभीर बीमारी में बदल सकता है।
ब्रौंकियोलाइटिस व निमोनिया के लक्षण
इन रोगों की शुरूआत सर्दी-जुकाम, नाक बंद होना, नाक बहना, हल्की खांसी और बुखार से होती है। थोड़े दिन बाद यह खांसी ज्यादा बढ़ जाती है और साथ ही सांस लेने में कठिनाई भी होने लगती है। अगर शिशु को स्वास्थ्य संबंधी कोई भी दिक्कत पेश आए तो ऐसे में डॉक्टर के पास ले जाएं।
कैसे करें बचाव
बीमार शिशु को ताजा रंग-रोगन, जलती लकड़ी और धुएं से दूर रखें। सुगंधित धूप और मच्छर निरोधक कॉइल के धुएं से भी शिशु को परेशानी हो सकती है। शिशु के आसपास धूमपान न करें। स्कूल जाने वाले बच्चों और बड़ों में ब्रौंकियोलाइटिस होना कोई बड़ी समस्या नहीं है। मगर, शिशुओं में यह गंभीर हो सकता है। शिशुओं के वायुमार्ग काफी छोटे होते हैं। शिशु अधिकांश समय लेटे रहते हैं, इसलिए उनके वायु मार्ग में जमा श्लेम नीचे और बाहर नहीं निकल पाता। इससे शिशुओं को सांस लेने में और मुश्किल हो जाती है।