Himachal Pradesh Politics: हिमाचल प्रदेश में विधायक प्राथमिकता का वार्षिक अनुष्ठान

पार्टी के सभी ध्रुवों को एक करने की खिचड़ी पकाने वाले एक पूर्व मंत्री इस परिदृश्य पर कहते हैं- मैंने कहा था कि पहले सब एक हो जाओ फिर बनना जो बनना है। पार्टी का कुछ नहीं बनेगा तो आप में से भी किसी का कुछ नहीं बनेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 20 Jan 2022 12:26 PM (IST) Updated:Thu, 20 Jan 2022 12:26 PM (IST)
Himachal Pradesh Politics: हिमाचल प्रदेश में विधायक प्राथमिकता का वार्षिक अनुष्ठान
विधायक प्राथमिकता बैठक में विधायकों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर। जागरण

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। सबसे सरल कार्य प्राय: सबसे कठिन प्रतीत होते हैं। और विधायक प्राथमिकता ऐसा कार्य है जिसे ‘जनता की आवाज’ कहा जाता है। इन बैठकों का एक निष्कर्ष वर्षो से एक ही रहता है- सत्तापक्ष के विधायकों ने सरकार को सराहा और प्रतिपक्ष के विधायकों ने उठाए सवाल। हिमाचल प्रदेश का पूर्ण राज्यत्व स्वर्णिम जयंती वर्ष चल रहा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सभी विधायकों से उनकी प्राथमिकताएं पूछी तो सामने आया कि पांचवें वर्ष में भी आइआइटी, अस्पतालों में पर्याप्त स्टाफ, मल निकासी परियोजनाएं, जलशक्ति विभाग का उपमंडल, सड़कों की मरम्मत, बिजली के लिए 33 किलोवाट का उपकेंद्र, कचरा संयंत्र एसडीएम कार्यालय ही प्राथमिकताएं बने हुए हैं। इस दौरान एक मांग यह भी आई कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए दो ‘108 एंबुलेंस’ भी दी जाएं।

यह बात सही है कि विकास एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन इतनी सतत तो नहीं होनी चाहिए कि मुख्यमंत्री के साथ बैठक में एंबुलेंस की मांग रखी जाए। आधारभूत आवश्यकताएं तो अब तक पूरी हो चुकी होनी चाहिए थी। हर व्यक्ति से जुड़ा एक प्रश्न नालागढ़ के विधायक लखविंदर राणा ने उठाया कि हिमाचल प्रदेश में बना सीमेंट हिमाचल प्रदेश में ही क्यों महंगा है। जवाब किसी के पास नहीं है। अगर विधायक प्राथमिकता बैठक जनता की आवाज है तो आशा करनी चाहिए कि कर्ज में डूबे राज्य के सब विधायक अगली बार यह कहेंगे- हम अपना आयकर स्वयं चुकाएंगे।

प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए चन्नी का पाठ : कोई भी बड़ा कार्य करने से पूर्व सामान्यतया व्यक्ति कार्ययोजना बनाता है और अपेक्षित ऊर्जा का संचयन भी करता है। किसी के लिए ऊर्जा का अर्थ धन से जुड़ता है, किसी के लिए ऊर्जा के संदर्भ साथ-सहयोग से जुड़ते हैं। कोई अपने आराध्य की शरण में जाता है। पंजाब के विधानसभा चुनाव की गहमागहमी आरंभ होने से पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने हिमाचल प्रदेश में स्थित बगलामुखी मंदिर में दो बार माथा टेका और हवन यज्ञ भी किया। मां बगलामुखी को सामान्यत: शत्रुसंहारक देवी के रूप में जाना जाता है। 26 दिनों में दो बार यहां आए चन्नी ने चांदनी में ही हवन यज्ञ किया। यह अकारण नहीं कि चन्नी अपने प्रतिस्पर्धियों के लिए कहते हैं, ‘वे सब धूल में बिखर जाएंगे।’ बाधाओं या शत्रुओं पर विजय पाने के लिए शक्ति के याचक बन कर आने वाले चन्नी न पहले राजनेता हैं और न अंतिम।

दिलचस्प यह है कि फिरोजपुर जनसभा के लिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध के लिए निशाने पर आए चन्नी ने मीडिया के सामने मां बगलामुखी के बीजमंत्र का वाचन किया। वह बताना चाह रहे थे कि वह भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं। और यह वाचन किसी और की सुरक्षा के लिए नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा के लिए किया। सवाल यह है कि चन्नी के विरोधी कौन हैं, नवजोत सिद्धू ..कैप्टन अमरिंदर.. मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित आम आदमी पार्टी के भगवंत मान या फिर प्रवर्तन निदेशालय के लोग.. जो उनके संबंधियों के यहां दबिश दे रहे हैं?

मास्क पहनना क्रिया भी, प्रतीक भी : प्रतीक प्राय: काम आते हैं। प्रतीक के दीये न जलें तो सृजन की दहलीज सूनी रहती है। प्रधानमंत्री जहां जाते हैं स्थानीय प्रतीकों के सहारे वह जो कह जाते हैं जिसकी व्याख्या अन्यथा अधिक शब्दों में करनी पड़ती। उदाहरण के लिए मंडी आएं तो वह सेपू बड़ी और बदाणो के मीठे की बात अवश्य करते हैं। जब वह ऐसा कह रहे होते हैं तो एक विशेष क्षेत्र के रोम रोम बसी संस्कृति की ओर संकेत कर रहे होते हैं। कोरोना काल में बहुत काम के तीन काम प्रतीक बन कर उभरे। एक हाथ धोना, दूसरा मास्क पहनना और तीसरा कम से कम दो गज की शारीरिक दूरी बनाए रखना। ये प्रतीक भी हैं और क्रियाएं भी हैं। लेकिन इन क्रियाओं में मास्क पहनने वाली एक क्रिया ऐसी है, जिसका क्रियाकर्म हिमाचल प्रदेश में भी देखा जा रहा है।

कोरोना की तीसरी लहर कब चोटी पर पहुंचेगी, ओमिक्रोन के कितने मामले हैं, प्रतिबंध क्या-क्या हैं, यह सबको पता है। लेकिन लापता वही क्रिया होती है, जिसका पता होता है। बीते दिनों कई परिचित मिले जो हाथ मिलाने को आतुर थे। उससे तो विनम्रतापूर्वक बचा जा सकता है, लेकिन भीड़ में मास्क न पहनना अपने लिए ही नहीं, दूसरों के लिए भी घातक हो सकता है। संभव है, मास्क पहन कर ऐनक के शीशों पर धुंध जम जाए.. संभव है, कानों पर पड़ रहा खिंचाव पाठशाला काल के किसी सख्त अध्यापक का स्मरण दिला दे। अचरज तब होता है जब कुछ सम्मानित जन भी मास्क को अनुपयोगी समझते हैं, जबकि उनकी ओर प्रदेश और परिवेश देखता है। ऊना में छठे वित्त आयोग के अध्यक्ष सतपाल सत्ती 16 लोगों के साथ खड़े थे, चित्र में दो महिलाओं को छोड़ किसी व्यक्ति ने मास्क नहीं पहना। ऊना में कांग्रेस ने हल्ला बोल रैली का आयोजन किया। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के साथ न्यनूतम 18 लोग खड़े थे, लेकिन मंच पर मास्क आमंत्रित नहीं था।

परिक्रमा वालो, गणोशजी कौन हैं : वीरभद्र सिंह के सामने पूरे छह साल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू के विधानसभा क्षेत्र नादौन में पहुंचे थे प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर। कहा कि सुक्खू के साथ संबंध अच्छे हैं, बात होती रहती है। जानने वाले जानते हैं कि कहा वही जाता है जो होता नहीं। सुक्खू बीते दिनों 12-13 विधायकों को लेकर आलाकमान से मिले थे। दूसरी बात उन्होंने यह कही कि टिकट काम करने वाले कार्यकर्ताओं को मिलेगा, गणोश परिक्रमा करने वालों को नहीं। अब पार्टी के लोग ही पूछ रहे हैं कि कांग्रेस में गणोश कौन है। प्रदेश में तो कई केंद्र हैं ही, आलाकमान मंडल में भी कोई एक गणोश हो तो कोई परिक्रमा का सोचे। हाल में प्रदेशाध्यक्ष ने तीन साल पूरे कर लिए। सुगबुगाहट आरंभ हुई। महत्वाकांक्षाओं ने सार्वजनिक अंगड़ाई ली। 

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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