तम्बाकू उत्पादों से रहें दूर

धूम्रपान और अन्य तम्बाकू उत्पादों के सेवन से दुनियाभर में लगभग 4 लाख व्यक्तियों की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती है। इनमें से 2 लाख लोग विकासशील देशों से संबंधित हैं। वस्तुत: कई गंभीर रोगों जैसे फेफड़े और मुख के कैंसर का प्रमुख कारण तम्बाकू उत्पाद ही हैं...

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 30 May 2015 11:17 AM (IST) Updated:Sat, 30 May 2015 11:23 AM (IST)
तम्बाकू उत्पादों से रहें दूर

धूम्रपान और अन्य तम्बाकू उत्पादों के सेवन से दुनियाभर में लगभग 4 लाख व्यक्तियों की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती है। इनमें से 2 लाख लोग विकासशील देशों से संबंधित हैं। वस्तुत: कई गंभीर रोगों जैसे फेफड़े और मुख के कैंसर का प्रमुख कारण तम्बाकू उत्पाद ही हैं...

तम्बाकू उत्पादों का शरीर पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। जैसे तम्बाकू सेवन से ब्लड प्रेशर की समस्या उत्पन्न हो सकती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न होने लगता है। मुख का कैंसर, स्तन

कैंसर और फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान ही है। तम्बाकू के धुएं में

निकोटिन व कार्बन मोनो आक्साइड आदि गैसें मौजूद रहती हैं। इस कारण हमारे

शरीर की मेटाबोलिक क्रिया कलाप में बदलाव होने लगता है और इस सबका

शरीर पर बुरा असर पड़ता है। तम्बाकू में मौजूद निकोटिन सर्वप्रथम मस्तिष्क के

मध्य भाग को प्रभावित करती है। इसके कारण निकोटिन के रिसेप्टर सक्रिय हो

जाते है। इस कारण हार्मोन्स का अधिक स्राव होने लगता है जो मानव शरीर के

लिए हानिकारक हैं।

फेफड़ों का कैंसर

फेफड़े हमें सांस लेने में सहायता करते हैं। वे शरीर की सभी कोशिकाओं को

ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। कैंसर कोशिकाएं असामान्य कोशिकाएं होती

हैं। कैंसर की कोशिकाएं स्वस्थ कोशिकाओं के मुकाबले अधिक तेजी से

पैदा होती हैं और बढ़ती हैं। फेफड़ों का कैंसर तब होता है, जब फेफड़े की

कोशिकाएं परिवर्तित होकर असामान्य हो जाती हैं। वे रक्त या लसीका (लिम्फ)

के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों तक फैल सकती हैं जिसे मेटास्टैसिस या

कैंसर का फैलना कहते हैं।

विश्व में कैंसर से होने वाली मौतों में सर्वाधिक मौतें फेफड़े के कैंसर(लंग्स

कैंसर) से ही होती हैं। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में फेफड़े का कैंसर कम होता

है। विकसित देशों में धूम्रपान में कमी होने और जागरूकता बढऩे की वजह से

फेफड़े के कैंसर से संबंंिधत मृत्युदर में कमी आयी है। जबकि विकासशील देशों

में फेफड़े के कैंसर से संबंधित मौतों में वृद्धि हुई है।

कारण

- तम्बाकू उत्पादों का प्रयोग। बीड़ी व सिगरेट पीना फेफड़ों के कैंसर का सबसे

मुख्य कारण है। धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों के कैंसर का खतरा धूम्रपान न

करने वाले लोगों की तुलना में 10 गुना ज्यादा बढ़ जाता है।

- अन्य लोगों द्वारा धूम्रपान से प्रभावित क्षेत्र में सांस लेना (पैसिव स्मोकिंग)।

- वायु प्रदूषण के संपर्क में आना।

- कुछ विशेष धातुओं के संपर्क में आना जैसे क्रोमियम, कैडमियम और

आर्सेनिक।

- वंशानुगत जीन संरचना।

- जीन संरचना में म्यूटेशन (उत्परिवर्तन)।

लक्षण

प्रारंभिक अवस्था में कैंसर में प्राय: कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, लेकिन

जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता है, वैसे-वैसे लक्षण दिखाई पडऩे लगते हैं।

- खांसी जो जल्दी समाप्त नहीं होती और समय के साथ बढ़ती जाती है।

- सीने में दर्द।

- खांसी के साथ रक्त आना।

- सांस फूलना और भूख कम लगना।

-वजन कम होना और थकान होना।

प्रकार

फेफड़े के कैंसर के दो मुख्य प्रकार हैं...

1. स्माल सेल लंग कैंसर: इस किस्म का कैंसर तेजी से विकसित होता है और तेजी से फैलता है।

2. नॉन स्माल सेल लंग कैंसर: यह कैंसर काफी धीमी गति से विकसित

होकर फैलता है।

डायग्नोसिस

सीने का एक्स-रे, सी.टी. स्कैन,एम.आर. आई.,पेट स्कैन, ट्यूमर सेल की बायोप्सी

और ब्रांकोस्कोपी नामक जांचों से फेफड़े के कैंसर का पता लगाया जाता है।

उपचार

फेफड़ों के कैंसर का इलाज जितना जल्दी शुरू किया जाए, उतने बेहतर परिणाम

सामने आते हैं। फेफड़े के कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर

किस प्रकार का है और कितना फैला है।

सर्जरी: नॉन स्माल सेल लंग कैंसर के इलाज के लिए सर्जरी सबसे अच्छा

विकल्प है।

रेडियो थेरेपी: वे रोगी जिनके मामलों में सर्जरी संभव नहीं है, उनका इलाज

कीमोथेरेपी और रेडियो थेरेपी के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।

कीमोथेरेपी: नसों में इन्जेक्शन के द्वारा दी जाने वाली कैंसर रोधी दवाएं कैंसर के

फैलाव को रोकती हैं।

टारगेटेड कीमोथेरेपी: इन दिनों टारगेटेड कीमोथेरेपी प्रचलन में आ चुकी है। इस थेरेपी से होने वाले दुष्प्रभाव बहुत कम हो जाते हंै। इसके अलावा यह विधि अन्य विधियों की तुलना में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में अधिक प्रभावी है। भारत तम्बाकू उत्पादन में संपूर्ण विश्व में तृतीय स्थान पर है। देश में लगभग 26 लाख लोग तम्बाकू उद्योग में कार्यरत हैं, जो एक गंभीर मुद्दा है।

डॉ.सूर्यकान्त

प्रमुख:पल्मोनरी मेडिसिन विभाग

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ

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