प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या का समाधान

आम तौर पर लगभग 50 साल की उम्र के बाद पुरुषों में बिनाइन प्रोस्टेट हाइपरप्लेसिया ग्रथि का बढ़ना एक आम स्वास्थ्य समस्या है। इसे प्रोस्टेट ग्रंथि(ग्लैंड) का बढ़ना भी कहते हैं,

By Edited By: Publish:Tue, 20 Nov 2012 11:21 AM (IST) Updated:Tue, 20 Nov 2012 11:21 AM (IST)
प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या का समाधान

आम तौर पर लगभग 50 साल की उम्र के बाद पुरुषों में बिनाइन प्रोस्टेट हाइपरप्लेसिया ग्रथि का बढ़ना एक आम स्वास्थ्य समस्या है। इसे प्रोस्टेट ग्रंथि(ग्लैंड) का बढ़ना भी कहते हैं, लेकिन सर्दियों में प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या अन्य मौसमों की तुलना में कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि सर्दियों में पानी पीने की इच्छा कम होती है। इस वजह से पेशाब की थैली में एकत्र पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति में पेशाब की नली में सक्रमण हो सकता है और पेशाब रुक भी सकती है।

लक्षण

-प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने पर प्रारंभ में रात्रि के समय फिर दिन में भी बार-बार पेशाब करने की जरूरत महसूस होती है।

-पेशाब जल्दी नहीं निकलता, यह कुछ देर से निकलता है। आधा मिनट या इससे ज्यादा का समय भी लग सकेता है।

-रोगी के पेशाब की धार पतली हो जाती है। रोगी द्वारा पेशाब करते समय इसकी धार आगे की तरफ दूर तक नहीं जाती बल्कि नीचे की तरफ गिरती है। यह धार बीच-बीच में टूट जाती है और फिर शुरू होती है।

-पेशाब रुक भी सकती है और पेशाब करने में दर्द भी सभव है।

-यदि रोगी की पेशाब मूत्राशय के अंदर देर तक रुकी रहे तो कुछ समय के बाद गुर्र्दो पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। इसके परिणामस्वरूप गुर्र्दो की पेशाब बनाने की क्षमता कम होने लगती है। फलस्वरूप गुर्दे यूरिया को पूरी तरह शरीर के बाहर निकाल नहींपाते। इस कारण रक्त में यूरिया अधिक बढ़ने लगती है, जो शरीर के लिए नुकसानदेह है।

जाचें

इस रोग में ट्रास रेक्टलअल्ट्रासोनोग्राफी, यूरिन कल्चर और पीएसए टेस्ट कराये जाते हैं।

इलाज

-प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़े होने की समस्या का समाधान दो तरीकों से सभव है। पहला, टी.यू.आर.पी. सर्जरी और दूसरा, प्रोस्टेटिक आर्टरी इंबोलाइजेशन सर्जरी द्वारा।

-इस सर्जरी के बाद सभी दवाओं को बद कर सिर्फ कुछ खास दवाएं ही दी जाती हैं।

-रोगी को ऑपरेशन के दिन ही भर्ती होने की जरूरत होती है। इंबोलाइजेशन लोकल एनेस्थीसिया देकर एकतरफा प्रवेश मार्ग द्वारा किया जाता है। आम तौर पर इस तरह का प्रवेश फीमोरल नामक धमनी के दाहिने मार्ग से होता है। इंबोलाइजेशन के द्वारा पीवीए कणों को इंजेक्ट कर दिया जाता है, जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि का साइज दो से चार हफ्तों मे कम दो जाता है। इस प्रकार रोगी को अपनी तकलीफों से छुटकारा मिल जाता है और वह शीघ्र ही अपनी सामान्य दिनचर्या पर वापस लौट आता है।

डॉ.प्रदीप मुले

इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट

फोर्टिस हास्पिटल, नई दिल्ली

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