एडवांस्ड आइसीएसआइ: संभव है पिता बनना

गौरतलब है कि बांझपन (फीमेल इनफर्टिलिटी और मेल इनफर्टिलिटी) के सभी मामलों में से लगभग 30 प्रतिशत मामलों में इस स्थिति के लिए पुरुषों को जिम्मेदार माना जाता है। पुरुषों द्वारा संतान पैदा न कर पाने के मामलों में अक्सर जांच में वीर्य (सीमेन) संबंधी असामान्य नतीजे सामने आत

By Edited By: Publish:Tue, 22 Jul 2014 12:26 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jul 2014 12:26 PM (IST)
एडवांस्ड आइसीएसआइ: संभव है पिता बनना

गौरतलब है कि बांझपन (फीमेल इनफर्टिलिटी और मेल इनफर्टिलिटी) के सभी मामलों में से लगभग 30 प्रतिशत मामलों में इस स्थिति के लिए पुरुषों को जिम्मेदार माना जाता है। पुरुषों द्वारा संतान पैदा न कर पाने के मामलों में अक्सर जांच में वीर्य (सीमेन) संबंधी असामान्य नतीजे सामने आते हैं। ऐसे मामलों में या तो शुक्राणु (स्पर्म) की संख्या कम होती है, जिसे मेडिकल भाषा में ओलिगोस्पर्मिया कहते हैं। इसके अलावा स्खलित वीर्य में शुक्राणु मौजूद नहीं होते हैं। इस स्थिति को एजूस्पर्मिया कहते हैं। कभी-कभी शुक्राणु की गतिशीलता काफी कम होती है। इस स्थिति को एस्थेनोस्पर्मिया कहते हैं। कभी - कभी शुक्राणु पूरी तरह से स्थिर होते हैं या फिर वे मृत हो चुके होते हैं।

कारण: संतान उत्पत्ति में कुछ पुरुषों की इन खामियों के लिए आम तौर पर बचपन में संक्रमण खासकर टेस्टिस में होने वाला संक्रमण, हार्मोन्स का असंतुलन, आनुवंशिक कारण और शारीरिक विकार जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा तनाव और जीवन-शैली से संबंधित बीमारियां भी पुरुषों में संतान उत्पत्ति में बाधा पहुंचाती है। कुछ यौन रोग के कारण जैसे क्लैमाइडिया आदि से शुक्राणुओं को वहन करने वाली नलिकाओं में रुकावट पैदा हो सकती है।

जांच: वीर्य की जांच व इसका विश्लेषण कराया जाता है।

उपचार के विकल्प

आइसीएसआइ: शुक्राणु की संख्या बहुत कम होने पर इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आइसीएसआइ) की प्रक्रिया अपनायी जाती है। यह प्रक्रिया टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने की शुरुआत है। इस प्रक्रिया के तहत सोनोग्राफी की मदद से एक सुई (नीडल) से महिला के अंडाणुओं को निकाल लिया जाता है। इसके बाद हर शुक्राणु को सुई से उठाकर उसे माइक्रोमैनीपुलेटर की मदद से अंडाणु में सीधे इंजेक्ट किया जाता है। उसके बाद अंडाणु निषेचित और विभाजित होते हैं और दो से तीन दिनों के बाद भ्रूण को महिला के गर्भ में डाल दिया जाता है।

एडवांस्ड इक्सी की विशेषता

-पारंपरिक इक्सी विधि में जीव-वैज्ञानिक शुक्राणु का चयन उसकी बनावट के आधार पर करते थे। इस विधि की मदद से शुक्राणु का चयन करने पर शुक्राणु की कार्यक्षमता या अंडाणु को निषेचित करने की क्षमता का पता नहीं चलता, लेकिन एडवांस्ड इक्सी तकनीक उपयुक्त शुक्राणु के चयन की सुविधा उपलब्ध कराता है और शुक्राणु को अंडाणु में इंजेक्ट करने के लिए शुक्राणु के चयन में भ्रूण विज्ञानी की मदद करता है।

-एडवांस्ड इक्सी से चयनित किए गए शुक्राणु महिला के अंडाणुओं को कुदरती गर्भावस्था की तरह निषेचित (फर्टिलाइज्ड) करते हैं। इस नवीनतम तकनीक से चयनित किए गए शुक्राणुओं में 'डीएनए' की क्षति कम होती है।

-इस एडवांस तकनीक से गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) के सामान्य रहने की दर कहीं ज्यादा होती है।

-पारंपरिक इक्सी तकनीक की तुलना में एडवांस्ड इक्सी तकनीक से गर्भावस्था की स्थिति कहीं ज्यादा बेहतर होती है।

-एडवांस्ड इक्सी तकनीक के अंतर्गत गर्भपात होने की आशंकाएं कम हो जाती हैं।

( डॉ.महिराज सिंह गौड़, सीनियर एम्ब्रियोलॉजिस्ट, गुड़गांव )

पढ़ें:सावधान! नहीं तो आपको भी हो सकता है ब्रेन स्ट्रोक

पढ़ें:जटिल हृदय परीक्षण से कैंसर का खतरा बढ़ा

chat bot
आपका साथी