आंखों के आगे धब्बे तो नहीं तैरते

अगर किसी शख्स को आंखों के आगे धब्बे या तैरती हुई सी कुछ लकीरें दिखाई दें, तो यह फ्लोटर्स नामक रोग का लक्षण है। शीघ्र ही नेत्र विशेषज्ञ से जांच कराएं...

By Babita kashyapEdited By: Publish:Thu, 25 Jun 2015 02:34 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jun 2015 02:40 PM (IST)
आंखों के आगे धब्बे तो नहीं तैरते

अगर किसी शख्स को आंखों के आगे धब्बे या तैरती हुई सी कुछ लकीरें दिखाई दें, तो यह फ्लोटर्स नामक रोग का लक्षण है। शीघ्र ही नेत्र विशेषज्ञ से जांच कराएं...

आखें हमारे शरीर के सबसे नाजुक अंगों में से एक हैं ओर इनसे जुड़ी कोई भी समस्या सामान्य

जीवनचर्या में उथल-पुथल करने की क्षमता रखती है। ऐसी ही एक समस्या जो कई लोगों को परेशान कर रही है, वह है- नजर के आगे धब्बे या तैरती हुई कुछ लकीरें दिखाई देना। कई लोग इस समस्या को दिमागी वहम मान लेते हैं, पर यह कोई वहम नहीं बल्कि फ्लोटर्स नामक बीमारी है।

रोग का स्वरूप

फ्लोटर्स गहरे धब्बे, लकीरें या डॉट्स जैसे होते हैं, जो नजर के सामने तैरते हुए दिखते

हैं। यह ज़्यादा स्पष्ट रूप से आसमान की ओर देखते हुए दिखाई देते है। हालांकि

फ्लोटर्स नजर के सामने दिखाई देते हैं, परन्तु वास्तव में ये आंख की अंदरूनी सतह

पर तैरते हंै। हमारी आंखों में एक जेली जैसा तत्व मौजूद होता है, जिसे विट्रियस कहते हैं।

यह आंख के भीतर की खोखली जगह को भरता है। जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती

है, वैसे ही विट्रियस सिकुडऩे लगता है। इस कारण आंख में कुछ गुच्छे बनने लगते हैं,

जिन्हें फ्लोटर्स कहते हैं।

कारण

बढ़ती उम्र के अलावा पोस्टीरियर विट्रियस डिटैचमेंट (पी.वी.डी) भी इस रोग के होने

ा कारण है। पी.वी.डी. एक अवस्था है, जिसमें विट्रियस जेल रेटिना से खिंचने लगता

है। यह स्थिति भी फ्लोटर्स के होने का एक

मुख्य कारण है।

कई बार विट्रियस हैमरेज या माइग्रेन सरीखे रोगों की वजह से भी फ्लोटर्स की

समस्या उत्पन्न हो जाती है। कई बार फ्लोटर्स के साथ आंखों में चमकीली रोशनी

भी दिखाई देती है। इस रोशनी को फ्लैशेस कहते हैं, जो मुख्यत: नजर के एक तरफ

दिखाई देती है। फ्लोटर्स की तरह ही फ्लैशेस भी विट्रियस जेल के रेटिना से खिंचने के

कारण होते हैं। अगर आपको चमकीली धारियां 10 से 20 मिनट तक दिखाई दें, तो

यह माइग्रेन का लक्षण भी हो सकता है।

हालांकि फ्लोटर्स और फ्लैशेस खतरनाक नहीं होते पर इनके कारण आंखों में जो

बदलाव आते हैं, वे नुकसानदायक हो सकते हैं। अगर इनका इलाज न हो, तो आंखों की

रोशनी भी जा सकती है। ज़्यादातर मामल में विट्रियस के रेटिना से अलग होने के

लक्षण दिखाई नहीं देते, पर यदि सिकुडऩे की वजह से विट्रियस जेल आंख की सतह

से खिंच जाए, तो रेटिना के फटने के आसार बढ़ जाते हैं। यदि फटे हुए रेटिना का उपचार

न हो, तो आगे जाकर रेटिना डिटैचमेंट भी हो सकता है। कुछ मामलों में चमकीली

रोशनी यानी फ्लैशेस के साथ नए फ्लोटर्स उत्पन्न होने लगते हैं या नजर के एक हिस्से

में अंधेरा सा हो जाता है। अगर ऐसा हो, तो शीघ्र ही किसी रेटिना विशेषज्ञ को दिखाएं

और पता लगवाए कि कहींआपको रेटिनल टीयर या रेटिनल डिटैचमेंट तो नहीं है?

ध्यान दें

ज्यादातर प्रारंभिक परीक्षा में 5 से 15 प्रतिशत मरीज जिनमें पी.वी.डी के तीव्र

लक्षण दिखाई देते हैं, उनमें रेटिनल टीयर होता है, जबकि 2 से 5 प्रतिशत मरीज जिनमें

पी.वी.डी नहींहोता है और रेटिनल टीयर नहीं होता, उनमें कुछ हफ्तों के अंतर्गत

रेटिनल टीयर होने की संभावना होती है।

इसके अलावा जो मरीज विट्रियस हेमरेज से प्रभावित हंै, उनमें 70 प्रतिशत रेटिनल टीयर

होने की संभावना होती है।

इलाज

फ्लोटर्स और फ्लैशेस का उपचार उनकी अवस्था पर निर्भर करता है। वैसे तो ये

नुकसानदायक नहीं होते पर यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी आंखें जरूर

चेकअप कराएं कि कहीं रेटिना में कोई क्षति न हो। समय के साथ ज्यादातर फ्लोटर्स

खुद मिट जाते हैं और कम कष्टदायक हो जाते हंै, पर यदि आपको इनकी वजह से

दिनचर्या के कार्य करने में परेशानी आती है, तो फ्लोटर करेक्शन सर्जरी करवाने के

बारे में आप सोच सकते है। यदि रेटिनल टीयर (रेटिना में छेद) है, तो डॉक्टर आपको लेजर सर्जरी या क्रायोथेरेपी करवाने का सुझाव दे सकते हैं।

डॉ.राजीव जैन नेत्र विशेषज्ञ

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