रेजांगाल युद्ध के हीरो व वीर चक्र विजेता कैप्टन रामचंद्र का निधन, चीनी सैनिकों को घुटने टेकने पर किया था मजबूर

रेजांगला युद्ध का इतिहास के सबसे भयंकर युद्ध के रूप में याद किया जाता है। इस युद्ध में अहीरवाल के वीर रणबांकुरों ने जो बलिदान दिया था उसको याद करते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 01:39 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 02:00 PM (IST)
रेजांगाल युद्ध के हीरो व वीर चक्र विजेता कैप्टन रामचंद्र का निधन, चीनी सैनिकों को घुटने टेकने पर किया था मजबूर
रेजांगाल युद्ध के हीरो व वीर चक्र विजेता कैप्टन रामचंद्र

रेवाड़ी, जागरण संवाददाता। रेजांगाल युद्ध के हीरो व वीर चक्र विजेता कैप्टन रामचंद्र ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। 13 अप्रैल को पैतृक गांव मंदौला में ही उनका देहांत हो गया था। सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई। कैप्टन रामचंद्र उन गिने चुने वीरों में से एक थे जो 1962 में चीन के साथ रेजांगला पोस्ट पर हुए युद्ध में जीवित बचकर लौटे थे। उनकी वीरता की गाथा का सालों साल से गुणगान होता रहा है। 92 साल की उम्र में भी उनमें देशभक्ति का जज्बा कायम था।

अदम्य साहस व वीरता का दिया था परिचय

रेजांगला युद्ध का इतिहास के सबसे भयंकर युद्ध के रूप में याद किया जाता है। इस युद्ध में अहीरवाल के वीर रणबांकुरों ने जो बलिदान दिया था उसको याद करते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। सेना के जवानों ने 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। रेजांगला जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के भारत -चीन युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। भारी मात्रा में हथियारों के साथ चीनी सेना के 5-6 हजार जवानों ने लद्दाख पर हमला बोल दिया था। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी।

जवानों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात उस समय आई, जब तेज आंधी-तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में मोर्चा संभाल रहे सी कंपनी से जुड़े इन जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया। ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया। 18 हजार फीट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी। जब गोलियां खत्म हो गई तो हमारे जवानों ने अपनी बंदूकों से ही दुश्मन को मारना शुरू कर दिया तथा रेजांगला पोस्ट पर दुश्मन का कब्जा होने नहीं दिया। इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये। हमारे इन जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

सैन्य इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक नहीं मिले। रेजांगला युद्ध में शहीद हुए वीरों में मेजर शैतान सिंह पीवीसी जोधपुर के भाटी राजपूत थे। जबकि नर्सिंग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) सोनीपत के जाट परिवार से थे। शेष सभी जवान वीर अहीर थे व इनमें अधिकांश यहां के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ व सीमा से सटे अलवर के रहने वाले थे।

कैप्टन रामचंद्र बचे थे जीवित

उस युद्ध में जीवित बचने वाले भारतीय जवानों में से कैप्टन रामचंद्र भी एक थे। वह 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे थे और घायल होने के कारण 22 नवंबर को उनको जम्मू स्थित एक आर्मी अस्पताल में ले जाया गया था। रामचंद्र का मानना था कि वह जिंदा इसीलिए बचे ताकि पूरे देश को रेजांगला युद्ध की वीर गाथा बता सके। कैप्टन रामचंद्र को वीर चक्र दिया गया था। गत वर्ष लद्दाख में की गई चीनी घुसपैठ के दौरान भी कैप्टन रामचंद्र की भुजाएं फड़क रही थी। उनका कहना था कि आज भी अगर उनको मौका दिया जाए तो वह चीनी सैनिकों के खिलाफ लड़ने को तैयार हैं। ऐसा वीर आज हमारे बीच से विदा हो गया है। रेजागला शौर्य समिति के महासचिव एडवोकेट नरेश चौहान का कहना है कि भारत की माटी से एक वीर विदा हो गया है। उनकी वीरता का जितना सम्मान किया जाए उतना कम है। 

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