अरै अंहै खागड़ नै तौ म्हारा ऊपर बी कर दई सर्जिकल स्ट्राइक

मामला प्रदेश का लेकिन बात देश की। रेवत नगरी की चौपालों पर इन दिनों यही हो रहा है। कमलदल के बड़ी पंचायत के संभावित चेहरों को छोड़कर पड़ोसी के घर गिरे बमों ने ऐसे कई चेहरों की चमक उड़ा दी है जो कुछ दिन पहले तक पंजादल से दोस्ती की फिराक में थे। ऐसे कुछ नेता तो देश के मुखिया का नाम लेकर दबी जुबान से यहां तक कह रहे हैं कि-अरै अंहै खागड़ नै तो म्हारा ऊपर बी सर्जिकल स्ट्राइक कर दी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 04 Mar 2019 08:07 PM (IST) Updated:Mon, 04 Mar 2019 08:07 PM (IST)
अरै अंहै खागड़ नै तौ म्हारा ऊपर बी कर दई सर्जिकल स्ट्राइक
अरै अंहै खागड़ नै तौ म्हारा ऊपर बी कर दई सर्जिकल स्ट्राइक

मामला प्रदेश का लेकिन बात देश की। रेवत नगरी की चौपालों पर इन दिनों यही हो रहा है। कमलदल के बड़ी पंचायत के संभावित चेहरों को छोड़कर पड़ोसी के घर गिरे बमों ने ऐसे कई चेहरों की चमक उड़ा दी है, जो कुछ दिन पहले तक पंजादल से दोस्ती की फिराक में थे। ऐसे कुछ नेता तो देश के मुखिया का नाम लेकर दबी जुबान से यहां तक कह रहे हैं कि-'अरै अंहै खागड़ नै तो म्हारा ऊपर बी सर्जिकल स्ट्राइक कर दी'। अब ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कमल की खुशबू कुछ ज्यादा ही फैल रही है। लोगों ने पुरानी कहावतों को कुछ संशोधित रूप में भी गाना शुरू कर दिया है। जैसे-समय-समय का फेर है समय-समय की बात। किसी समय के दिन बड़े तो किसी समय की रात को अब इस कहावत को यूं कहा जा रहा है-'समय-समय का फेर है समय-समय की बात। आज कमल प्यारा लगे नहीं सुहाता हात'। चश्मा भी धुंधला दिखने लगा है, लेकिन कार बेचने वाले अपने प्रधान जी का दावा है कि चोट उनको नहीं बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक करने वालों को लगेगी। खैर हसीन सपने देखने से जोगिया किसे रोक सकता है।

--------- अब तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे

बात बड़े राव की है। अब अहीरवाल में बड़े राव तो फिलहाल एक ही है। बाकी तो लाइन में लगे हैं। कौन कब बड़ा राव बनेगा इसका जवाब तो समय देगा, लेकिन पांच शहरों की सरकार पर कब्जा करने, बांगड़ की धरती पर भगवा फहराने व अब पड़ौसी पर बम गिराने के बाद हवा में तैरती बारूद की गंध बहुत कुछ कह रही है। बड़े राव के बारे में जो लोग यह कहा करते थे कि इनकी कहीं जाने की तैयारी है, वही अब यह गुनगुना रहे हैं कि-हमको तुमसे है प्यार गहरा, बेशक मत लगाओ पहरा। तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे हम-घी-खिचड़ी हैं तुम और हम।।

--------- पावरफुल साबुन से भी नहीं धुलेंगे ये काले छींटे

कहते हैं जहां जल, जंगल और जमीन की चिता नहीं होगी, वहां पर धरती भी बंजर हो जाएगी। जंगल का कानून बदलने की कोशिश हुई तो सबसे बड़ी कचहरी का डंडा चल गया। पूरा मामला एक्सपोज हो गया। छींटे कई लोगों पर पड़े। सुना है प्रदेश के मुखिया ने जिसे जंगल की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा था, उस पर भी काले छींटे पड़ गए हैं। ये छींटे इतने गहरे हैं कि पावरफुल साबुन से भी नहीं धुलेंगे, लेकिन नरश्रेष्ठ के एक चहेते की माने तो जंगल के रक्षक तो भक्षक बनने के लिए राजी ही नहीं थे। उन पर तो इंद्रप्रस्थ के बड़े लोगों का दबाव था। खैर। कारण कुछ भी हो। जोगिया को इन बातों से क्या लेना। हम तो खरी-खरी ये बता रहे हैं कि काले छींटे आसानी से धुल नहीं पाएंगे।

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सुधारक का कविता प्रेम

सुधारक का भी जवाब नहीं। आजकर कभी सेहत का ख्याल रखने वाले मिनिस्टर की स्तुति कर रहे हैं तो कभी प्रदेश के मुखिया जी को कविता सुना रहे हैं। सुधारक भाई आप तो अपनी प्रेम रस की कविताओं से ठंडा पानी डाल रहे हो, लेकिन भाई साहब वीर रस के कवि तो आग लगाने का काम कर रहे हैं। वीर रस वाले मुखिया जी को समझा रहे हैं कि ये कविता कहने वाला वही है, जिसने संकट के समय आंख दिखाई थी। अब भला यह भी कोई बात हुई। अगर अतीत इस तरह खंगाला गया तो क्या सुधारक जी नहीं पूछ सकते कि आग लगाने वाले भाई एक समय तुम्हारी दुकान में क्या सामान था?

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