रविवार विशेष: सेवानिवृत्ति के बाद रागनियों से जवानों का बढ़ा रहे हौसला

ज्ञान प्रसाद, रेवाड़ी अहीरवाल में युवाओं से लेकर वृद्धों तक में देशभक्ति का जज्बा कूटकूटकर भरा हुआ

By Edited By: Publish:Thu, 19 May 2016 10:05 PM (IST) Updated:Thu, 19 May 2016 10:05 PM (IST)
रविवार विशेष: सेवानिवृत्ति के बाद रागनियों से जवानों का बढ़ा रहे हौसला

ज्ञान प्रसाद, रेवाड़ी

अहीरवाल में युवाओं से लेकर वृद्धों तक में देशभक्ति का जज्बा कूटकूटकर भरा हुआ है। जवानी में देश की सीमा पर दुश्मनों से लड़ते हैं तो सेवानिवृत्ति के बाद उन जवानों का हौसला बढ़ाने में आगे रहते हैं जो देश की आन बान और शान के लिए डटे हुए हैं। रेवाड़ी जिला के गांव पदैयावास निवासी सेवानिवृत्त सूबेदार बसंतलाल भी ऐसे ही जवानों में से एक हैं। वे अपनी रागनियों से जवानों का हौसला बढ़ा रहे हैं। उनके जहन में आज भी अपने सेवाकाल के दौरान प्राप्त किए अनुभवों को याद करते हुए जोश और उमंग फड़क उठती है। अपने देशभक्ति के इस जज्बे को कायम रखते हुए उन्होंने जवानों को समर्पित 152 रागनियों की रचना कर अपनी भावनाएं व्यक्त की। इतना ही नहीं इनमें से 101 रागनियों की पुस्तक भी प्रकाशित कर इन जवानों को समर्पित किया। बसंतलाल का कहना है कि वे आज भी जब देश की आन बान और शान पर किसी प्रकार के आंच आने का समाचार सुनते हैं उनका दिल जोश से भर उठता है और लेखनी के माध्यम से अपनी भावनाओं को उकेर डालते हैं।

अपनी 120 पृष्ठों की 'हरियाणवी रागणी फौजियों के चहेते फौजी' के नाम से स्वरचित व प्रकाशित पुस्तक के लिए किसी से सहयोग नहीं लिया। बचपन से लेकर सेवाकाल के दौरान तक लिखी अपनी भावनाओं को उन्होंने समेटते हुए एक पुस्तक का रूप दिया। उनका कहना है कि बचपन में पिताजी सूरजभान की जब उंगली पकड़कर चलता था तो वे गुनगुनाते थे। जब बसंतलाल दो वर्ष के थे तब उनकी मां असरफी देवी का देहांत हो गया। पिताजी सूरजभान उन्हें गायक बनाना चाहते थे। बचपन में बसंतलाल सूर्यकवि पं.लख्मीचंद की रागनी पढ़ते थे। इस दौरान उन्हें हरि¨सह आर्य से रागनी बनाने का ज्ञान मिला तो उन्हें गुरु मानने लगे। अपनी बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूरी की तो इस दौरान 13 मई 1979 को गांव पुंसिका से सेना में भर्ती होकर आर्टीलरी सेंटर नासिक रोड में प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान स्वयं की ¨जदगी पर एक रागनी बनाकर कैंप के दौरान अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत की। वहां से मिली सराहना ने आगे बढ़ने का हौसला दिया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 42 फील्ड रेजिमेंट में चले गए। वहां एक दिन बड़ा कार्यक्रम चल रहा था। इस दौरान अधिकारियों विशेषकर मेजर सीपी ¨सह जो वहां बैट्री कमांडर थे ने रागनी की फरमाइश की तो उनकी रागनी सुनकर खुश होकर दस दिन की छुट्टी पर भेज दिया। इससे रागनी लिखने और गाने की ललक और बढ़ गई। इस दौरान शारीरिक अभ्यास के दौरान दस किलोमीटर की लंबी दौड़ लगाई। इस दौरान नजला बिगड़ने से गला खराब हो गया और गायक बनने की हसरत रह गई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी रचनाओं को कागज में उकेरना शुरू कर दिया। कारगिल की लड़ाई के दौरान उनकी यूनिट लेह में आई। इस दौरान टीम के साथ रहते हुए बसंतलाल ने 'दमदम बंब पड़ै बार्डर पै, अग्नि बरसन लाग रही, के विघ्ना नै लिख डाली संग ना बचने की आस रह गई।' सुनाई तो पूरी रेजिमेंट के अधिकारी, जेसीओ, जवानों यहां तक कि स्वयं कमां¨डग अधिकारी कर्नल वीके पाठक व ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर सीएम नायर ने खड़े होकर उनकी पीठ थपथपाई। उनका कहना है कि मार्च 2004 से अपनी रागनियों को संभालना शुरू कर दिया। सेवानिवृत्ति के बाद अपनी रागनियों को किसी न किसी कार्यक्रम में प्रस्तुत करते रहे। इसके बाद उनके जहन में अपनी रचनाओं को संकलित करते हुए पुस्तक का रूप देने का विचार आया तो उसको मूर्त रूप दे दिया। गत 20 मार्च को उत्तरप्रदेश के उन्नाव लोकसभा क्षेत्र के सांसद डा. साक्षी महाराज के रेवाड़ी आगमन के दौरान उनके हाथों विमोचन कराने में सफलता मिली। आज उनकी यह पुस्तक शहर के विभिन्न पुस्तक विक्रेताओं के यहां बिक रही है। उनका कहना है कि जबतक सांस है वे ऐसी रागनियों के माध्यम से फौजियों का हौसला बढ़ाते रहेंगे।

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