Interview: फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर सरकार गंभीर, अनुदान पर दिए जा रहे कृषि यंत्र

सीजन में किसानों से आग्रह किया जाता है कि गन्ने की पत्ती को जलाएं नहीं। मल्चर से इसका प्रबंधन किया जा सकता है। छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिला दें। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी। इसके साथ-साथ गांठें बनाकर औद्योगिक इकाइयों में भी बेचा जा सकता है।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Sat, 06 Nov 2021 02:48 PM (IST) Updated:Sat, 06 Nov 2021 02:48 PM (IST)
Interview: फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर सरकार गंभीर, अनुदान पर दिए जा रहे कृषि यंत्र
जागरण संवाददाता संजीव कांबोज की सहायक कृषि अभियंता डा. विनित जैन से बातचीत।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। कृषि विभाग की ओर से बनाए कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) किसानों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बने हुए हैं। साथ ही फसल अवशेष प्रबंधन में भी कारगर साबित हो रहे हैं। जिले में 228 सेंटर खोले जा चुके हैं। सीएचसी व व्यक्ति किसानों को अनुदान पर कृषि यंत्र उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। अनुदान दिए जाने की प्रक्रिया क्या है? किसान किस तरह योजना का लाभ उठा सकते हैं? इन तमाम बिंदुओं को लेकर संवाददाता संजीव कांबोज ने सहायक कृषि अभियंता डा. विनित जैन से बातचीत की।

सवाल: फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि विभाग की ओर से कौन-कौन से कृषि यंत्र अनुदान पर दिए जा रहे हैं।

जवाब: फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सीएचसी व व्यक्तिगत किसान को अनुदान पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, जीरो ड्रिल मशीन, स्ट्रा बेलर, रिवर्सिबल प्लो सहित नौ तरह के कृषि यंत्र अनुदान पर दिए जाते हैं। कृषि कार्यों में लेबर की कमी को देखते हुए ये कृषि यंत्र काफी कारगर साबित हो रहे हैं।

सवाल: कस्टम हायरिंग सेंटर क्या है और किस तरह काम करते हैं ?

जवाब: फसल अवशेष प्रबंधन के उद्देश्य से सरकार ने किसानों के समूह बनाकर उनको कृषि यंत्र उपलब्ध करवाए गए हैं। सीएचसी को 80 व व्यक्तिगत तौर पर किसान को 50 प्रतिशत अनुदान पर कृषि यंत्र दिए जा रहे हैं।

सवाल: अब तक जिले में कितनी सीएचसी बनाई जा चुकी हैं। भविष्य में क्या योजना है?

जवाब: सरकार ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से वर्ष-2018-19 में यह शुरुआत की। गत वर्ष 155 सीएचसी थी। इस बार बढ़कर 228 हो चुकी है। प्रयास है कि शत-प्रतिशत किसान को कृषि यांत्रिकीकरण से जोड़ा जाए।

सवाल: पराली न जलाने के लिए विभाग की ओर से किसानों को विशेष रूप से जागरूक किया गया। अब गन्ने का सीजन आने वाला है। किसान गन्ने की पत्ती को जलाते हैं। इससे भी प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है। रोकथाम के लिए क्या प्रयास हैं?

जवाब: सीजन में किसानों से आग्रह किया जाता है कि गन्ने की पत्ती को जलाएं नहीं। मल्चर से इसका प्रबंधन किया जा सकता है। छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिला दें। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी। इसके साथ-साथ गांठें बनाकर औद्योगिक इकाइयों में भी बेचा जा सकता है। इस बारे किसानों को जागरूक किया जाता है। काफी संख्या में किसान ऐसे हैं जो गन्ने की पत्ती का प्रबंधन कर रहे हैं।

सवाल: कृषि यंत्रों पर अनुदान दिए जाने की क्या प्रक्रिया है?

जवाब: इच्छुक किसानों से आनलाइन आवेदन लिए जाते हैं। उसके बाद उसके बाद ड्रा के जरिए नाम निकलता है। यदि किसानों की संख्या कम होती है तो ऐसे ही वितरित कर दिए जाते हैं।

सवाल: क्या किसान दूसरी बार भी कृषि यंत्र पर अनुदान ले सकता है?

जवाब: एक बार लाभ लेने के लिए किसान दूसरी बार दो वर्ष बाद ही कृषि यंत्र पर अनुदान ले सकता है। कृषि यंत्र देने की प्रक्रिया में पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाती है।

सवाल: कृषि अवशेषों का अधिक से अधिक प्रबंधन हो, इसके लिए विभागीय स्तर पर और क्या प्रयास हैं?

जवाब: कृषि अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि यंत्र तो उपलब्ध करवाए ही जा रहे हैं, साथ ही फसल अवशेषों को खेत से बाहर निकालने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे किसानों की अतिरिक्त आमदन भी होगी।

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