अपने लालों को राजनीति में स्थापित करने की जिद्दोजहद, शिद्दत से डटे बीरेंद्र सिंह, चौटाला और हुड्डा

हरियाणा में इनेलो सुप्रीमों के जेल से रिहाई के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। हरियाणा के तीन बड़े नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और चौधऱी भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने पुत्रों को राजनीति में स्‍थापित करने में लगे हैं।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Sat, 10 Jul 2021 12:20 PM (IST) Updated:Sat, 10 Jul 2021 12:20 PM (IST)
अपने लालों को राजनीति में स्थापित करने की जिद्दोजहद, शिद्दत से डटे बीरेंद्र सिंह, चौटाला और हुड्डा
हरियाणा के तीन नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह, चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और चौधऱी भूपेंद्र सिंह हुड्डा।

पानीपत, [जगदीश त्रिपाठी]। अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्रों को सौंपने और उनको राजनीति में स्थापित करने के लिए, राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने की परंपरा बन गई है। वैसे यह परंपरा केवल हरियाणा में नहीं है, पूरे देश में है, लेकिन वर्तमान में हरियाणा के तीन नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह, चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और चौधऱी भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने पुत्रों के लिए शिद्दत से जिद्दोजहद कर रहे हैं।

तीनों अलग-अलग दलों में हैं, लेकिन यह बात तीनों में कामन है। चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपने पुत्र बृजेंद्र सिंह को हिसार से भाजपा का टिकट दिलाया। इसके लिए बीरेंद्र सिंह ने खुद केंद्र का मंत्रिपद छोड़ा। पुत्र सांसद भी बन गए। बीरेंद्र सिंह ने अभी हाल में हुए मोदी मंत्रिपरिषद के विस्तार के दौरान पुत्र को केंद्र में मंत्री बनाने के लिए अनेक उपक्रम किए। यह बात अलग है कि उनके प्रयास निष्फल रहे।

दीपेंद्र को राजनीति में उतारा

पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को स्थापित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने के पहले हुड्डा रोहतक से सांसद थे। मुख्यमंत्री बन गए तो उनके लिए रोहतक के किलोई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीते श्रीकृष्ण हुड्डा ने उनके लिए सीट छोड़ दी। तब लोग अनुमान लगा रहे थे कि हुड्डा अब अपनी लोकसभा सीट से अपने लिए विधानसभा की सीट छोड़ने वाले श्रीकृष्ण हुड्डा को लोकसभा का टिकट दिलाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने अपने पुत्र दीपेंद्र को राजनीति में उतारा। अपनी सीट से उन्हें टिकट दिलवाया और दीपेंद्र जीतकर लोकसभा में पहुंचे।

चौथी बार बने सांसद

उसके बाद 2009 और 2014 में भी दीपेंद्र जीते, लेकिन 2019 में हुड्डा के अभेद्य गढ़ को तोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी के अरविंद शर्मा ने दीपेंद्र को पराजित कर दिया। कुछ ही दिन बाद हरियाणा से कांग्रेस के किसी एक व्यक्ति को राज्यसभा जाने का अवसर बना। कुमारी सैलजा इसके लिए प्रमुख दावेदार थीं। लेकिन हुड्डा अपने पुत्र दीपेंद्र को टिकट दिलवाने में सफल रहे और इस तरह मात्र 42 वर्ष की वय में दीपेंद्र चौथी बार सांसद बन गए।

अब हुड्डा समर्थक विधायक चाहते हैं कि कुमारी सैलजा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से हट जाएं। सैलजा अनुसूचित जाति से हैं, इसलिए हुड्डा चाहते हैं कि उनके प्रति समर्पित विधायक गीता भुक्कल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं। इससे लाभ यह होगा कि गीता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश के सभी जिलों में हुड्डा समर्थकों को बैठा देंगी और दीपेंद्र का मार्ग प्रशस्त होगा। यदि आगामी चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनी तो अधिकतर विधायक हुड्डा के होंगे और वह अपनी जगह बेटे का नाम मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित कर देंगे।

चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनके पुत्र बृजेंद्र सिंह।

इनेलो में यहां फंसा पेच

जहां तक चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की बात है, वह अपने बड़े पुत्र अजय चौटाला को तो राजनीति में स्थापित कर चुके थे, बस सत्ता आने की देर थी, लेकिन इसके पहले ही पिता-पुत्र दोनों को शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा हो गई और उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल का चेहरा उनके छोटे पुत्र अभय चौटाला बन गए। स्पष्ट था कि चुनावों में यदि इनेलो को बहुमत मिलता था तो अभय मुख्‍यमंत्री होते, लेकिन यहां पेच फंस गया। अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला सांसद बन चुके थे और युवाओं में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। यहां तक कि इनेलो के कार्यक्रमों में दुष्यंत चौटाला के मंच पर पहुंचते ही सीएम आया, सीएम आया के नारे लगने लगते।

युवाओं के दिलों में चौटाला भाई

युवाओं के दिलों में तो दुष्यंत और उनके छोटे भाई दिग्विजय थे ही, उनके पिता अजय चौटाला के घनिष्ठ और समर्थक जो इनेलो में थे, उनकी भी पहली पसंद दुष्यंत थे। अभय चौटाला इससे खफा हो गए। उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला भी अभय के साथ हो गए। परिणाम यह हुआ कि इनेलो टूटा। दुष्यंत ने जजपा बनाई। विधानसभा में दस सीटें हासिल कर भाजपा सरकार में शामिल हुए और मुख्यमंत्री न सही उपमुख्यमंत्री तो बन ही गए। लेकिन अभय, जो केवल अपनी सीट बचा पाए थे और बाद में कृषि कानूनों के विरोध में वह भी छोड़ दी, अब उनको राजनीति में स्थापित करने के लिए चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जुटने जा रहे हैं। वैसे हरियाणा का अभी तक का जो इतिहास है उसमें केवल चौधरी देवीलाल ही ऐसे मुख्यमंत्री हुए जो अपने जीवनकाल में अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवाने में सफल रहे हैं।

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