चक दे इंडिया जैसी कहानी, पिता ने बेटियों को थमाई हॉकी, विरोध सह बनीं चैंपियन

National Sports Day 2020 पानीपत की ये कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं। पिता रियाज ने बेटियों के हाथ में हॉकी थमाई। बेटियां भी उनकी उम्‍मीद पर खरी उतरीं। पढ़ें ये विशेष खबर।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 28 Aug 2020 04:01 PM (IST) Updated:Fri, 28 Aug 2020 04:01 PM (IST)
चक दे इंडिया जैसी कहानी, पिता ने बेटियों को थमाई हॉकी, विरोध सह बनीं चैंपियन
चक दे इंडिया जैसी कहानी, पिता ने बेटियों को थमाई हॉकी, विरोध सह बनीं चैंपियन

पानीपत, [विजय गाहल्‍याण]। National Sports Day 2020 चक दे इंडिया फिल्म याद होगी आपको। तमाम कठिनाइयों के बीच कोच कबीर खान अपनी टीम को गोल्ड मेडल जीताकर लौटते हैं। ऐसे ही कहानी है यहां के रियाज और उनकी दो बेटियों की। फर्क इतना है कि कबीर खुद कोच थे, रियाज यहां पिता हैं। उन्होंने जब बेटियों इकरा और उमरा को हॉकी थमाई, तब उनके ही समुदाय के लोगों ने साथ नहीं दिया। रियाज ने कदम पीछे नहीं हटाए, बेटियों के साथ डटे रहे। इकरा परिवार की पहली बेटी हैं,  जो फौज में भर्ती हुई हैं। उमरा इस समय नेशनल हॉकी एकेडमी में हैं।

होम गार्ड विभाग पानीपत में कंप्यूटर ऑपरेटर सोनीपत की कृष्णा कॉलोनी के रिजाय सैफी हॉकी की नेशनल चैंपियन बेटियों के पिता हैं। समाज में अब उनका रुतबा है। बेटियों को खेल में आगे बढ़ाने पर वे प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इन्होंने 14 साल पहले बड़ी बेटी इकरा सैफी और छोटी बेटी उमरा को हॉकी थमाई। समाज के लोगों ने साथ नहीं दिया। कहा कि, बेटियां घरों से बाहर कम कपड़ों में खेलेंगी तो बदनामी होगी। समाज की प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचेगी। रियाज ने किसी की परवाह नहीं की और आर्थिक तंगी से जूझते हुए भी बेटियों के सपने को जिंदा रखा। इकरा परिवार की पहली महिला है, जो फौज में भर्ती हुई हैं। उमरा नेशनल हॉकी एकेडमी में हैं।

 

कोच प्रीतम ने प्रतिभा को निखारा

इकरा और उमरा ने भारतीय हॉकी टीम की कप्तान व अर्जुन अवार्डी प्रीतम सिवाच की सोनीपत इंडस्ट्रियल एरिया स्थित हॉकी एकेडमी में अभ्यास किया। प्रीतम ने न सिर्फ दोनों की प्रतिभा को निखारा, बल्कि हर कदम पर साथ दिया। खेल सामान मुहैया कराया और चैंपियन खिलाड़ी बना दिया।

इकरा एसएसबी में सिपाही हैं, उमर हैं नेशनल चैंपियन

इकरा ने वर्ष 2011 से लगातार राज्यस्तरीय हॉकी प्रतियोगिता में पदक जीते। 2016 में जूनियर नेशनल हॉकी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। यहीं से उनकी किस्मत चमकी। लखनऊ एसएसबी (शस्त्र सुरक्षा बल) में खेल कोटे से सिपाही भर्ती हो गईं। वह अपने परिवार की पहली ऐसा महिला बनीं जो फौज में भर्ती हुईं। इसी तरह से उमरा ने भी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पांच पदक, खेलो इंडिया व आल इंडिया यूनिर्वसिटी खेलो इंडिया प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। नेशनल हॉकी एकेडमी दिल्ली में चयनित हुई।

भाई जैद भी है स्टेट चैंपियन

दोनों बहनों से प्रेरित हो छोटा भाई 15 वर्षीय मोहम्मद जैद दिल्ली हॉकी टीम का सदस्य है। स्टेट चैंपियन हैं। सबसे छोटी बहन 13 वर्षीय इंसा सैफी पढ़ाई में होशियार है। वह भी बहनों की तरह हॉकी में पदक जीतना चाहती हैं।

हमारे साथ सुबह चार बजे जगती थी मां, पिता मैदान में ले जाते

उमरा ने बताया कि आर्थिक तंगी की वजह से पिता हॉकी के खिलाड़ी नहीं बन पाए। पिता की इच्छा थी कि बेटियां खेलें और पदक जीतें। सफर आसान नहीं था। लोगों के ताने सुने। पिता ने हमेशा हौसला बढ़ाया। मां नसीमा ने हर घड़ी साथ दिया। मां उनके साथ सुबह चार बजे जगती थी। उनके सोने के बाद ही सोती थी। पिता पानीपत में नौकरी करके हर रोज देर रात घर लौटते थे। उन्हें मैदान में ले जाते थे। फिर घर लाते और ड्यूटी पर जाते थे। माता-पिता का साथ न होता हॉकी नहीं खेल पातीं।  

बेटियों में थी प्रतिभा

रियाज का कहना है कि उनकी बेटियों में शुरू से ही प्रतिभा थी। उन्‍होंने तो केवल उन्‍हें रास्‍ता दिखाया है। कभी ऐसा दिन नहीं गया, जब उनकी बेटियों ने अभ्‍यास न किया हो। खुद ही सुबह उठ जाती थीं। वह खुद भी इनके हुनर और लगन को देखकर हैरान रह जाते थे।

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