20 घंटे भूख से तड़पे प्रवासी श्रमिक, केले लेने दौड़े तो पुलिस ने लाठी दिखाई

झज्जर-बहादुरगढ़ से बसों में पानीपत लाए गए कामगार ट्रेन से रवाना किया शाम को गुरुद्वारे से आया लंगर तब मिटी भूख।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Sat, 30 May 2020 01:09 PM (IST) Updated:Sat, 30 May 2020 03:28 PM (IST)
20 घंटे भूख से तड़पे प्रवासी श्रमिक, केले लेने दौड़े तो पुलिस ने लाठी दिखाई
20 घंटे भूख से तड़पे प्रवासी श्रमिक, केले लेने दौड़े तो पुलिस ने लाठी दिखाई

पानीपत, [अरविन्द झा]। रात आठ बजे से हमनी के भूखले बानी। केहू खनवा ना देलस। काल रतिया तक घरे पहुंचब। इतना लंबा सफर बा.. रास्ता में का खाइब। मालगोदाम के पास खड़ी रोडवेज की बसों में सवार कामगार दोपहर को आने-जाने वालों को अपनी व्यथा सुना रहे थे। एक सिपाही ने भरोसा दिलाया, 24 घंटे में सब अपने घर पहुंच जाओगे। फिर आराम से रहना। भूख से तड़प रहे चेहरों ने उस सिपाही की तरफ देख कर चुप्पी साध ली। 

इन कामगारों को किसी मकान मालिक के तानों की वजह से निकलना पड़ा तो किसी के पास खाने तक के लिए कुछ नहीं बचा था। झज्जर से पानीपत पहुंचे। बीस घंटे तक इन्हें खाने के लिए कुछ नहीं मिला।

पानीपत रेलवे स्टेशन से शाम 6 बजे अररिया के लिए श्रमिक स्पेशल सुपरफास्ट ट्रेन रवाना होनी थी। इस ट्रेन में बहादुरगढ़-झज्जर से 12 बसों में सवार होकर 480 कामगारों को पानीपत रेलवे स्टेशन लाया गया। इन कामगारों को बृहस्पतिवार को दोपहर फोन कर झज्जर के आइटीआइ में बुलाया गया था। नोडल अधिकारी के निर्देश पर रात को वहां ठहराया गया। मजदूरों के पास खाने का कुछ नहीं था। प्रशासन की तरफ से भोजन के पैकेट की बात तो दूर, चाय-बिस्किट के लिए भी नहीं पूछा गया। बमुश्किल भूखे पेट आइटीआइ में रात के 10-12 घंटे बिताए। शुक्रवार सुबह 7 बजते ही झज्जर आइटीआइ शेल्टर होम के इंचार्ज ने इन मजदूरों को बस में बिठा कर भेज दिया। दोपहर 12 बजे से दो बजे तक पानीपत स्टेशन पहुंचे। मालगोदाम के पास बस लगी। भूख से बिलबिलाए कामगारों ने आधा किलोमीटर दूर एक रेहड़ी पर केले बिकते देखे। दो-चार मजदूर उस रेहड़ी की तरफ जाने लगें तो पुलिसकर्मियों ने रोक दिया। बस का चालक और परिचालक इन कामगारों से दूर आरपीएफ के बैरक में जाकर चाय की चुस्की ले रहे थे। आखिरकार शाम को गुरुद्वारे से लंगर आया और इन सभी का पेट भरा।

रोजगार छिन गया

बहादुरगढ़ में ग्लास फैक्ट्री में काम करने वाले राजेश कुमार ने बताया कि लॉकडाउन में रोजगार बंद हो गया। फैक्ट्री मालिक  50 से 60 वर्करों की बजाए 20 वर्करों में काम चलाना चाह रहा है। रोजी रोटी छिन गई। अब घर (किशनगंज, बिहार) ही जाना बेहतर है। आइटीआइ में 12 घंटे रहे खाने को कुछ नहीं मिला है। 

किराये के ताने से छुटकारा 

गोद में एक साल की बच्ची संध्या को साथ लिए चंचल बस से उतरी। चंचल ने बताया कि उसे बिहटा (पटना, बिहार) जाना है। झज्जर में मकान मालिक किराये को लेकर बार-बार तंग कर रहा था। कहासुनी भी हो गई। पति जिस चप्पल फैक्ट्री में काम करते हैं, वो बंद पड़ी है। सोचा कि ताने सुनने से बेहतर है कि घर चले जाएं। मुजफ्फरपुर पहुंचने के बाद वहां से कोई और साधन ढूंढ लेंगे।   

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