वो जगह, जहां ज्यादा गूंजती हैं लाडो की किलकारी, बेटियों की वाह! वाह!

सामूहिक प्रयासों ने बेटियों के प्रति सोच को बदल दिया। जिन शहरों-गांवों में बेटियों की संख्या कम रहती थी वहीं पर इनका जन्म बेटों के मुकाबले दोगुना तक हो गया। पढि़ये ये रिपोर्ट।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 08 Mar 2019 04:06 PM (IST) Updated:Fri, 08 Mar 2019 04:06 PM (IST)
वो जगह, जहां ज्यादा गूंजती हैं लाडो की किलकारी,  बेटियों की वाह! वाह!
वो जगह, जहां ज्यादा गूंजती हैं लाडो की किलकारी, बेटियों की वाह! वाह!

पानीपत, जेएनएन। सकारात्मक सामूहिक प्रयासों ने बेटियों के प्रति सोच को बदल दिया। जिन शहरों-गांवों में बेटियों की संख्या बेहद कम रहती थी, वहीं पर इनका जन्म बेटों के मुकाबले दोगुना तक हो गया। जहां सिर्फ बेटों के लिए कुआं पूजन होता था, वहां अब बेटी के जन्म पर भी थाली बजाने की परंपरा शुरू हो गई।

पानीपत से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गांव नौल्था। 987 साल के इतिहास को समेटे यह गांव यूं तो डाट की होली (फाग) के लिए पूरे हरियाणा में प्रसिद्ध है, अब यही गांव बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में भी अव्वल बन गया है। कन्या के जन्म पर परिजन कुआं पूजन कराते हैं, खुशियां मनाते हैं। करीब 9 हजार 292 की जनसंख्या वाले इस गांव में वर्ष 2018 का लिंगानुपात प्रति 1000 लड़कों पर 1649 लड़कियां रहा है। इसी उपलब्धि के लिए इस गांव की तीन बेटियों को प्रदेश सरकार की ओर से डेढ़ लाख का इनाम भी दिया जाएगा।

सबसे बड़े गांव का गौरव
कालांतर में नौल्था को जिले का सबसे बड़ा गांव हासिल होने का गौरव भी प्राप्त था। वर्तमान में भी दो ग्राम पंचायतें, नौल्था और नौल्था डुंगरान हैं। शिक्षा की बात करें तो वर्ष 1904 में राजकीय स्कूल खुला, जो अब 12वीं कक्षा तक हो गया है। गांव में 4 सरकारी और 4 प्राइवेट स्कूल हैं। इनमें कक्षा 1 से 10 तक का सरकारी विद्यालय लड़कियों के लिए भी है। शिक्षा दर लगभग 85 फीसद होने के कारण बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना शुरू होने से पहले गांव का लिंगानुपात करीब 1150 लड़कियां प्रति 1000 लड़के था। गांव की लड़कियों ने खेलों में भी खूब नाम कमाया है। करीब 25 लड़कियां विभिन्न खेलों से जुड़कर अभ्यास करती देखी जाती हैं। गांव की एक बेटी सोनिया स्टेट लेवल की बॉक्सर रही और रेलवे में नौकरी मिली । एक और लड़की ने खेल के जरिए रेलवे में नौकरी हासिल की और परिवार के साथ दिल्ली में रह रही है।

35 महिलाएं सरकारी नौकरी कर रहीं
वर्तमान में गांव की करीब 35 बहू-बेटी सरकारी नौकरी में हैं। अधिकांश स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, डाकघर और बैंकों में काम कर रही हैं। गांव में बनी महिला चौपाल पर भी स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम होते हैं। जाट, दलित, ब्राह्मण, धानक, वाल्मिकी और बैरागी सहित कई जातियों वाला यह गांव भाईचारा और सौहार्द की मिसाल भी है।

भेदभाव जैसा शब्द नहीं
बेटा-बेटी में भेदभाव जैसा शब्द गांव में नहीं है। गांव पहले से शिक्षित और जागरूक है। बेटियां कम होने के नुकसान से वाकिफ हैं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान ने ग्रामीणों को और जागरूक किया है। गांव में लड़कियों के लिए स्टेडियम या व्यायामशाला बन जाए तो बेटियां खेलों में बड़ा नाम कमा सकती हैं।
ईश्वर सिंह जागलान, पूर्व सरपंच

ग्रामीण जागरूक हैं
ग्रामीण शिक्षित और जागरूक हैं। आशा वर्कर्स, एएनएम और बहु उद्देश्यीय वर्कर्स अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पित हैं। गर्भवती महिलाओं को एंटी नेटल चेकअप के लिए प्रेरित किया जाता है। समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम कराए जाते हैं। जिन गांवों में लिंगानुपात कमजोर हैं, वहां ग्रामीणों को जागरूक करने की जरूरत है।
डॉ. रिंकू सांगवान, एमओ-पीएचसी नौल्था

इन बेटियों को मिलेगा इनाम
प्रदेश सरकार 3 हजार से अधिक आबादी और उच्चतम लिंगानुपात वाले गांव की 3 बेटियों को डेढ़ लाख रुपये का पुरस्कार देती है। पुरस्कार की हकदार वह बेटियां हैं, जिन्होंने वर्ष 2017-18 में कक्षा दस में उच्चतम अंक प्राप्त किए हैं। गांव में 1 साल में 30 से ज्यादा बच्चे जन्मे हों। स्वास्थ्य विभाग ने इस कसौटी पर नौल्था को खरा पाया है। गांव की तीन बेटियों में प्रीति (प्रथम), खुशबू (द्वितीय) और शिवानी (तृतीय) को चुना गया है। इन्हें क्रमश: 75 हजार, 45 हजार और 30 हजार का नकद इनाम दिया जाएगा।

होली पर्व बढ़ाता है भाईचारा
नौल्था के फाग का पुराना इतिहास है। गांव में वृंदावन से बाबा लाठे वाले आए थे। उन्होंने लोगों को फाग खेलने के प्रेरित किया। तब से अब तक गांव में लोग इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। वर्ष 2015 में गांव में प्लाटों को लेकर जातीय झगड़ा हुआ था। कई दिनों तक गांव में तनाव था लेकिन फाग उत्सव ने फिर सबको एक कर दिया था। बेटियों के प्रति जागरूक करते हैं।

अब ये चाहिए गांव में मिनी स्टेडियम और व्यायामशाला खोलने की जरूरत है। डिलीवरी हट को अपडेट करना है। खेलों का कोच मांग रहे हैं।

 

कैथल में बदलाव की यूं लिखी जा रही कहानी
दड़ी गांव में चलते हैं। कैथल के इस गांव में लिंगानुपात जिलेभर में सबसे ज्यादा 1900 दर्ज किया गया है। इससे पहले भी यहां लड़कों के मुकाबले बेटियों की संख्या 1300 के करीब थी। इस गांव को 25 लाख का इनाम दिया गया था। अब स्टेट लेवल पर ग्राम पंचायत को सम्मानित करवाने के लिए प्रशासन की तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं।

रामायणकालीन इतिहास
यह गांव रामायणकालीन इतिहास समेटे हुए है। गांव में प्राचीन लवकुश तीर्थ है। छह हजार की आबादी वाले गांव के ग्रामीण बताते हैं स्वास्थ्य विभाग, पंचायत व ग्रामीणों के प्रयासों से लिंगानुपात बढ़ सका है। बुधवार को दैनिक जागरण की टीम ने गांव में जाकर इस संबंध में पड़ताल की। गांव में जब भी कोई पंचायत बनती है तो सबसे पहले ग्रामीणों को इसी बात की शपथ दिलाई जाती है कि वे कन्या भ्रूणहत्या नहीं करेंगे। बेटियों और बेटों में कोई फर्क नहीं समझेंगे। साथ ही, यह चेतावनी भी दी जाती है कि अगर कोई ग्रामीण इसमें लिप्त पाया जाता है तो पंचायत उसे खुद प्रशासन के हवाले कर उचित कार्रवाई करवाएगी। गांव की महिला पुष्पा देवी ने बताया कि आठ बेटियों उनके पास हैं, बेटा नहीं है, लेकिन वे इन आठ बेटियों को ही अपने बेटे मानती है। गांव की सरपंच बाला देवी ने बताया कि बेटी के जन्म पर गांव में कुआं पूजन करते हैं।

बेटी के घर बधाई संदेश
कस्बा शहजादपुर ने पुराने ख्यालातों पर बंधन लगा दिया है। इसका नतीजा यह रहा कि यहां का लिंगानुपात बढ़ गया। अंबाला के कस्बे में एक हजार लड़कों के पीछे 1001 बेटियों ने जन्म लिया। पूरे जिले की सोच नई हो, इसे को लेकर डीसी भी हर घर में जन्म लेने वाली बेटियां के घर बधाई पत्र भेजती हैं। लड़की को भी लड़के के समान सहूलियत से लेकर सम्मान दे रहे हैं। सीडीपीओ सीमा रोहिला ने बताया कि साल 2018 में 706 लड़के और 707 लड़कियां पैदा हुई। इससे 1000 लड़कों पर 1001 लड़कियां का लिंगानुपात पहुंच गया।

मनाते हैं लड़कियों का जन्मदिन
लड़कियों के प्रति जागरूक करने के लिए विभाग की टीम की ओर से हर माह 24 तारीख को बालिका दिवस मनाया जाता है। इसमें तीन-चार तक की बच्चियों का जन्म दिन मनाया जाता है। थोड़ा देरी से इसीलिए मनाया जाता है ताकि जच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हो जाए। इसके साथ ही बच्चों का वजन भी किया जाता है, जो अर्ली केयर एजुकेशन के तहत होता है। इसमें माता को भी बुलाया जाता है।

गर्भवती को करते जागरूक
विभाग हर गर्भवती पर नजर रखता है ताकि गर्भपात को रोका जा सके। प्रधानमंत्री मातृ बंधना योजना के तहत गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाता है। इतना ही नहीं, जिन महिलाओं के पास पहले से दो बच्चियां होती हैं, उन्हें भी ट्रैकिंग पर रखा जाता है। इसके लिए महिलाओं से घर-घर जाकर बातचीत की जाती है। उन्हें कामयाब बेटियों के बारे में बताया जाता है, जिससे उनके मन में बेटियों के प्रति प्यार की भावना बढ़ती है।

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