शेरशाह सूरी जिससे नापते थे सफर, जानिए कैसे गायब हो रहा उसका अस्तित्व

कभी सैनिकों को रास्ता दिखाने वाली शेरशाह सूरी की कोस मीनार अब अपनी पहचान को मोहताज है। पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते पानीपत में कोस मीनार का अस्तित्व खतरे में है।

By Ravi DhawanEdited By: Publish:Fri, 11 Jan 2019 08:06 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jan 2019 10:25 AM (IST)
शेरशाह सूरी जिससे नापते थे सफर, जानिए कैसे गायब हो रहा उसका अस्तित्व
शेरशाह सूरी जिससे नापते थे सफर, जानिए कैसे गायब हो रहा उसका अस्तित्व

पानीपत, जेएनएन। शेरशाह सूरी के जमाने में सड़कों के किनारे दूरी चिह्नित करने के लिए बनाई गईं कोस मीनार का अस्तित्व खतरे में है। कभी राजा महाराजाओं, सैनिकों और राहगीरों को रास्ता दिखाने वाले ये मीनारें पुरातत्व विभाग की अनदेखी का शिकार हो रहीं। स्थानीय प्रशासन भी इस बदहाली का कम जिम्मेदार नहीं है। विस्तृत खबर जानने के लिए पढ़ें दैनिक जागरण की ये रिपोर्ट।

कभी सैनिकों को रास्ता दिखाने वाली कोस मीनार आज खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पुरातत्व विभाग की उदासीनता से ऐतिहासिक धरोहर अपनी पहचान खो रही है। मीनारों के चारों तरफ जंगली घास उग आई है। लोगों का अतिक्रमण भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।

14 को शौर्य दिवस, धरोहर बदहाल
14 जनवरी को पानीपत में शौर्य दिवस मनाए जाने की तैयारी चल रही है। दैनिक जागरण ने धरोहरों की वास्तविकता दिखाने के लिए एक प्रयास किया है। इसी कड़ी बृहस्पतिवार को कोस मीनार की स्थिति स्पष्ट की। पानीपत में पांच कोस मीनार हैं। इनमें से सेक्टर-25 स्थित तरफ अफगान और गांजबड़ गांव स्थित कोस मीनार पर पहुंचे। दोनों कोस मीनार के चारों तरफ जंगली घास मिली। यहां पर साफ-सफाई के भी पुख्ता प्रबंध नहीं दिखे। 

पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारक घोषित किया
प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल स्थायित्व 1958 संशोधित अधिनियम 2010 की धारा 20-बी के तहत सेक्शन 3 और 4 में इसे प्राचीन स्मारक घोषित किया गया। इसके 200 मीटर के दायरे को विनियमित व प्रतिबंधित घोषित किया गया है। नियम 20 ए के तहत उस एरिया से 100 मीटर की परिधि में किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है। यदि कोई व्यक्ति इस क्षेत्र में निर्माण करता है, तो उस पर कार्रवाई की जाती है। हालांकि, इसे कलेक्टर हटवा सकता है। 

बंगाल से पंजाब बॉर्डर तक कोस मीनार
शेरशाह सूरी ने 1540-45 तक शासन किया था। इन पांच वर्षों में ग्रैंड ट्रंक रोड पर बंगाल के सोनार गांव से लेकर पंजाब के बॉर्डर रोहताश तक कोस मीनार बनवाई गई। यह दिशा सूचक यंत्र का काम करती थी। हर दो-तीन कोस पर एक मीनार बनवाई गई थी। इन्हीं मीनारों को देखकर सैनिकों के काफिले आगे बढ़ते थे। डाक व्यवस्था भी इन्हीं की तर्ज पर चलता था। इन्हें दिल्ली-अंबाला राजमार्ग पर भी देखा जा सकता है। 

एक कोस सवा तीन किमी. के बराबर 
कोस शब्द दूरी नापने का एक पैमाना है। एक कोस लगभग दो मील या सवा तीन किमी. के बराबर होती है। प्राचीन समय में कोस से ही मार्ग की दूरी मापी जाती थी।

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