विधाता हैं भाग्य के लेखक : विजय कौशल

By Edited By: Publish:Fri, 06 Apr 2012 01:04 AM (IST) Updated:Fri, 06 Apr 2012 01:05 AM (IST)
विधाता हैं भाग्य के लेखक : विजय कौशल

पानीपत, जागरण संवाद केंद्र : विधि का बनाया विधान है। विधाता भाग्य का निर्माता नहीं है, भाग्य का वह लेखक है। पृथ्वी पर नियम, विधान व कानून जब बिगड़ जाते हैं तो विधि भी बिगड़ जाता है। यह बात देवी मंदिर में बृहस्पतिवार को श्रीराम कथा सुनाते हुए विजय कौशल महाराज ने कही।

'जवते राम ज्ञान धरि आई

नित नव मंगल मोद बधाए,

भुवन चारि दस भूधर भारी

सुखत मेघ बरसहिं सुखारी

रिद्धी सिद्धी नहीं सुहाई..' अयोध्या कांड की ये आठ पंक्तियां मनुष्य याद कर ले तो उसे जीवन में किसी तरह का कष्ट नहीं सहना पड़ेगा। विजय कौशल महाराज ने कहा कि भगवान विवाहित होकर अयोध्या लौटे हैं। अयोध्या में धूम मची है। जहां नित्य प्रति ठाकुर जी की सेवा होती है वहां उत्सव जैसा माहौल होता है। प्रतीक रूप में पूजा के नाम पर जब उत्सव बना लेते हैं। भगवान स्वयं प्रकट होंगे तो उत्सव ही उत्सव का नजारा होगा। उन्होंने कहा कि पूजा पाठ से मन शुद्ध होता है। पूजा से शरीर पवित्र होता है। मनुष्य के पास धन दौलत सभी होता है लेकिन बरकत नहीं होती है। रोना धोना लगा रहता है। धन की कमी नहीं होने के बावजूद बेचैनी बनी रहती है। संपत्ति व समृद्धि अलग अलग है। चौपाई की पाठ से भले ही आप पैसा कमा लेकिन बरकत रहेगा इसकी संभावना नहीं है।

उन्होंने कहा कि भगवान के अवध में आने के बाद गलियों में लड्डू लुढ़कने लगें। खीर की कीचड़ होने लगी। दिन रात सुखों की घनघोर वर्षा होने लगी। पुण्य के मेघ बरसने लगे। रिद्धी सिद्धी की नदियों में बाढ़ आ गई। आयोध्या रूपी सागर में यह बाढ़ गई। विधाता ने इतना वैभव बरसा दिया कि शब्द से उसका वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। सबसे ठाट बाट तो भगवान के मुखचंद्र के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। भगवान को इस बात से थोड़ी चिंता हो गई। अयोध्यावासियों की ये खुशी कामचंद्र की ओर न चले जाए।

' धर्म धुरंधर गुण निधि ज्ञानी

हृदय भगति मन निशा रंग पानी.' विजय कौशल महाराज ने कहा कि दशरथ कोई सामान्य मनुष्य नहीं हैं। सद्गुणों के महासागर हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य का जब चार पैसा बढ़ाता है तो सबसे पहले भगवान को छोड़ देता है। बस टाइम नहीं कटता व टाइम नहीं मिलता का बहना बनाता है। टीवी देखने व अखबार पढ़ने की फुर्सत उन्हें मिलती है। उन्होंने कहा कि आप सब बस एक प्रश्न मन से करो कि भगवान के प्रति कितना आदर है। अनुभव बताता है कि टीवी से उठने व पूजाघर में घुसने का मन नहीं करता है। हमारे मन में वो भाव नहीं हैं। संबंधियों से मिलने का मन तो करता है लेकिन भगवान से हमारा संबंध नहीं है। भक्त जितना भगवान से बंधता है, भगवान भी उस भक्त से उतना ही बंध जाता है। जब भगवान से संबंध जुट जाएगा, तो हमें समय मिले या न मिले लेकिन भगवान जरूर भक्त के पास दौड़े चले आएंगे। भगवान से संबंध जोड़िए आप सब का बेड़ा पार हो जाएगा। उजाले का काम छोड़कर अंधेरे की तरफ जाते हैं, शिवालय की बजाए मदिरालय का रुख करते हैं। भगवान को इस बात की चिंता हो गई कि अयोध्या के नागरिक सुख की वर्षा में कही उब न जाएं।

दशरथ आए सभा में

अयोध्या नगरी में भरी सभा में दशरथ ने प्रवेश किया। दशरथ चार लोगों के बीच शीशा लेकर बैठे। आदत किसी भी चीज की सब खराब होती है। जल्दी जगने व देर तक सोने की आदत भी खराब है। सभा में दशरथ को लगा कि कोई उन्हें शीशा दिखाए इससे पहले खुद देख लें। शीशा से बड़ा गुरू कोई नहीं है। गुरु भाव भंगिमा प्रकट करते हैं, बोलते नहीं हैं। जब दूसरा शीशा दिखाए तो उससे बड़ा दुश्मन कोई नहीं है। दुनिया में दो व्यक्ति शीशा नहीं देखते हैं। जो राजगद्दी पर बैठता है वो, दूसरा जो व्यास गद्दी पर बैठा हो। राजगद्दी पांच साल में बदल जाती है। दूसरी तरफ टीवी व पत्र पत्रिकाओं में व्यास गद्दी की फजीहत होती है। हाथ उठाकर बेशक उपदेश देते हैं लेकिन खुद बिगड़ते चले जाते हैं।

..बहारों का भरोसा क्या

'बहारों का भरोसा क्या ये नाते टूट जाते हैं

है नातों का भरोसा क्या ये टूट जाते हैं,

जिन्हें अपना समझना था समय पर ये करें धोखा

ये अपने छोड़ जाते हैं अपनों का भरोसा क्या..दशरथ ने जब शीशा देखा तो उनके मुकुट कुछ तिरछे दिखाई दिए। कानों पर सफेद बाल भी दिखे। विजय कौशल महाराज ने कहा कि बच्चे जब बाल बच्चेदार हो जाएं तो माता पिता को दखल की बजाए सलाहकार की भूमिका निभानी चाहिए। बच्चों से धीरे धीरे कपड़े छुड़ाइए, नहीं तो पूरी जिंदगी उसी में निकल जाएगी। बच्चे आप बेशक खिलाओ लेकिन निर्णय मत दो। दशरथ जी राघव के तिलक की तैयारी करने लगें। गुरु वशिष्ठ से उन्होंने प्रार्थना किया कि कल राज तिलक कर दूं। कल तो कपोल कल्प है। कल किसी की नहीं आती है। बेइमानी तो तुरंत कर लेते हैं, लेकिन पुण्य की सोचते रहते है कि कल कर लेंगे। रावण का कल करते करते काल आ गया।

'उठ जा रे मुसाफिर भोर भई

रैन कहां जो सोवत है

जो सोवत है वो खोवत है

जो जागत है सो पावत है'..आप सब एक बात तय करें कि जब मन में गुस्सा आए तो उसे कल पर टाल दें। किसी सहायता करनी है तो आज ही करें लेकिन मारना है तो कल पर टाल दें। जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ जाएगा। अहंकार व्यक्ति का सत्यानाश कर देता है। दशरथ इसी छाया में घिरने लगे।

महाराज को माल्यापर्ण

श्रीराम कथा में मुख्य अतिथि सतीश गोयल, धनराज बंसल, सुधीर सिंगला, मनीराम बंसल, सुधीर सिंगला, रोशनलाल मित्तल, संजय गोयल, बृजेश गोयल, मूलचंद गुप्ता, सुशील गुप्ता, जय भगवान गर्ग, हुकुमचंद व हरविलास गोयल ने विजय कौशल महाराज को फूलों की माला भेंट की।

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