अब नहीं चलेगा शहर और गांवों के विकास में भेदभाव, सीएम के नेतृत्व में होगी निगरानी

हरियाणा के विकास में अब गांव व शहर दोनों के जनप्रतिनिधियों की समान भागीदारी होगी। भेदभाव न हो इसके लिए परिषद का गठन किया जाएगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sun, 24 Jun 2018 08:18 PM (IST) Updated:Tue, 26 Jun 2018 05:12 PM (IST)
अब नहीं चलेगा शहर और गांवों के विकास में भेदभाव, सीएम के नेतृत्व में होगी निगरानी
अब नहीं चलेगा शहर और गांवों के विकास में भेदभाव, सीएम के नेतृत्व में होगी निगरानी

जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा के विकास में अब गांव व शहर दोनों के जनप्रतिनिधियों की समान भागीदारी होगी। केंद्र सरकार की तर्ज पर हरियाणा में भी अब सरकार अंतर जिला परिषद का गठन करने का जा रही है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल इसके अध्यक्ष होंगे तथा विभिन्न विभागों के मंत्री, शहरी निकाय व गांवों के जनप्रतिनिधि सदस्य के तौर पर काम करेंगे। इन सभी का काम विकास कार्यों का खाका तैयार करना तथा कार्यों की गुणवत्ता पर निगाह रखने का होगा।

मंत्री समूह की पिछले दिनों हुई बैठक में अंतर जिला परिषद के गठन पर सहमति बन चुकी थी, लेकिन अब इसका प्रारूप भी तैयार किया जा चुका है। यह परिषद गांवों और शहरों में विकास को लेकर लगने वाले भेदभाव के आरोपों की भी तह में जाएगी। यानी जहां जरूरत होगी, वहां पहले और अधिक विकास कार्य होंगे।

अंतर जिला परिषद में मुख्यमंत्री चेयरमैन होंगे, जबकि वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, विकास एवं पंचायत मंत्री ओमप्रकाश धनखड़, शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कविता जैन को सदस्य बनाया गया है। हरियाणा स्वर्ण जयंती इंस्टीट्यूट आफ फाइनेंस के निदेशक सदस्य सचिव की भूमिका में रहेंगे। जिला परिषद चेयरमैन, नगर निगम मेयर, जिला मुख्यालय के नगर परिषद, नगर पालिका के प्रधान भी परिषद के स्थाई सदस्य होंगे।

परिषद की प्रत्येक बैठक में रोटेशन के आधार पर पालिका प्रधान, खंड पंचायत समिति प्रधान, पंचायत प्रतिनिधि के तौर पर एक सरपंच तथा पालिका प्रतिनिधि के तौर पर एक पार्षद शिरकत करेंगे। सीएम के मीडिया सलाहकार राजीव जैन के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चाह के अनुरूप मुख्यमंत्री मनोहर लाल चाहते हैैं कि पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त किया जाए।

हरियाणा में समान विकास, बिना भेदभाव काम और समग्र्र विकास में यह परिषद अहम भूमिका निभाएगी। परिषद का प्रारूप इस तरह से तय हुआ है, जिसमें जनता के पैसे का बेहतर इस्तेमाल हो और उनकी निगरानी सामूहिक तौर पर जनप्रतिनिधियों द्वारा की जाए।

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