दशहरा पर्व पर विशेष: आपसी भाईचारे व प्रेम को बढ़ाती है प्राचीन परंपरा

जिले में दशहरा पर्व आज भी प्राचीन रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। पर्व पर महानगरों से हटकर कुछ अलग ही धार्मिक परंपराएं प्रचलित हैं। हालांकि समय के साथ-साथ इनमें थोड़ी कमी जरूर आई है, लेकिन अधिसंख्य लोग प्राचीन विधि से ही पूजा अर्चना कर पर्व को मनाते हैं। इन परंपराओं में शामिल एक-दूसरे को कुल्हो (मिटटी का बर्तन) बांटना तो आपस में प्यार व भाईचारे को भी बढ़ाता है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Oct 2018 12:38 PM (IST) Updated:Thu, 18 Oct 2018 12:38 PM (IST)
दशहरा पर्व पर विशेष: आपसी भाईचारे व प्रेम को बढ़ाती है प्राचीन परंपरा
दशहरा पर्व पर विशेष: आपसी भाईचारे व प्रेम को बढ़ाती है प्राचीन परंपरा

- ग्रामीण क्षेत्रों में दशहरा पर्व पर प्रचलित हैं कई अलग परंपराएं

सुरेंद्र चौहान, पलवल

जिले में दशहरा पर्व आज भी प्राचीन रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। पर्व पर महानगरों से हटकर कुछ अलग ही धार्मिक परंपराएं प्रचलित हैं। हालांकि समय के साथ-साथ इनमें थोड़ी कमी जरूर आई है, लेकिन अधिसंख्य लोग प्राचीन विधि से ही पूजा अर्चना कर पर्व को मनाते हैं। इन परंपराओं में शामिल एक-दूसरे को कुल्हो (मिटटी का बर्तन) बांटना तो आपस में प्यार व भाईचारे को भी बढ़ाता है।

दशहरा पर्व से एक दिन पूर्व रामनवमी पर ही शाम को महिलाएं झांझी (सांझी) को दीवार से उतारकर नजदीक के तालाब या जोहड़ में विसर्जित कर देती हैं। कुछ महिलाएं दशहरा वाले दिन ही विर्सजन करती हैं। गांव के कुम्हार अपने आप मिट्टी के कुल्हो व दीपक आदि पूजा के बर्तन बनाकर हर घर में पहुंचाते हैं, जहां उसके बदले में उन्हें अनाज दिया जाता है। भगवान लक्ष्मीनारायण की बनाई जाती है प्रतिमा

दशहरा पर्व के दिन सुबह होते ही घर की दीवार पर गोबर से लक्ष्मीनारायण बनाया जाता है, जिसमें हल्दी व अन्य पूजा सामग्री का भी इस्तेमाल किया जाता है। घर के मुख्य द्वार पर राम-सीता आदि देवी-देवताओं के कुछ चिन्ह तथा सामने लाल रंग की सेलखड़ी व देशी रंगों से पद् चिन्ह अंकित किए जाते हैं।

मिट्टी की दस कुल्हो में खील बताशे भरकर उन पर दूब (घास) रखी जाती है। शाम होने पर घर में पकवान बनाए जाते हैं और दीवार पर बने गोवर्धन को भोग लगाकर पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के समय मीठी खील, गेहूं, बाजरा आदि से भरी हुई दस कुल्हो को गोव‌र्द्धन भगवान के सामने रखा जाता है और पूजा समाप्ति के बाद उन्हें एक-दूसरे को बांटकर खुशी मनाई जाती है। जारी है केसूला मांगने की परंपरा

दशहरा से कई दिन पूर्व ही शाम को छोटे बच्चे घरों में जाकर केसूला मांगने लगते हैं। वे एक दीपक के चारों तरफ लकड़ी चिपकाकर केसूला भई केसूला नामक गीत गाते हैं। पहले लोग उन्हें अनाज व दान देना शुभ मानते थे, परंतु अब दशहरा से कई दिन पहले गरीब परिवारों के बच्चे घरों व दुकानों पर केसूला मांगते नजर आते हैं। ग्रामीणों का ऐसा मानना है कि भगवान राम की कृपा ²ष्टि पाने के लिए दशहरा से ही उनकी पूजा की जानी चाहिए।

दशहरा की पूर्व संध्या पर महिलाएं मटके में कई छिद्र कर अंदर उपले डालकर अग्नि जला लेती हैं। पूजा सामग्री भी रखी जाती है। फिर उसे सिर पर लेकर तालाब या पोखर पर जाती हैं और उसे पानी पर तैरा देती हैं। गांव के युवा उसे डंडे से फोड़ते हैं। मल्हो के फूटने के बाद महिलाओं उन युवाओं को गालियां भी देती हैं। मटके के मल्हो कहा जाता है।

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