अभी फंसी है लालडोरा के बाहर की फांस

मनोहर सरकार ने राजस्व रिकार्ड में आबादी देह के नाम से दर्ज लालडोरा की सीमा के भीतर बसे लोगों को जमीन व मकान का मालिकाना हक देना शुरू कर दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 04:20 PM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 04:20 PM (IST)
अभी फंसी है लालडोरा के बाहर की फांस
अभी फंसी है लालडोरा के बाहर की फांस

महेश कुमार वैद्य, नारनौल:

मनोहर सरकार ने राजस्व रिकार्ड में आबादी देह के नाम से दर्ज लालडोरा की सीमा के भीतर बसे लोगों को जमीन व मकान का मालिकाना हक देना शुरू कर दिया है। इस काम को सरकार की बड़ी मेहरबानी माना जा रहा है, मगर एक हकीकत यह भी है कि अब लालडोरा बढ़ाने की मांग ठंडे बस्ते में चली गई है। मनोहर पुराने आबादी क्षेत्र पर तो मेहरबान हुए, मगर रजिस्ट्री के नए नियमों के कारण लालडोरा के बाहर के उन आबादी क्षेत्रों पर आफत आ गई है, जो नियंत्रित अर्बन एरिया में हैं। इन मकान मालिकों के लिए नए नियम ऐसी फांस हैं, जिस पर सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के अधिकांश नेता भी मौन है। लालडोरा अंग्रेजों के जमाने में तय किया गया था। तब से लेकर अब तक गांवों का काफी विस्तार हो चुका है। लाकडाउन के दौरान अनधिकृत क्षेत्रों में थोक के भाव हुई रजिस्ट्रियों की आड़ में सरकार ने उन मकानों की रजिस्ट्री भी अघोषित रूप से बंद कर दी है, जो नए रजिस्ट्री नियम लागू करने से पहले से ही बने हुए थे। उन भूखंडों की रजिस्ट्री भी बंद हो चुकी है, जो आबादी के कलस्टर के बीच निर्मित नहीं हो पाए हैं। यह नियम उन सभी क्षेत्रों में लागू है, जहां पर नियंत्रित क्षेत्र की धारा 7 ए लागू है।

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राव ने उठाई थी लालडोरा बढ़ाने की मांग

केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कई वर्ष पूर्व इस समस्या को समझा था तथा कई बार विभिन्न मंचों से लालडोरा बढ़ाने की मांग भी उठाई थी। सरकार ने लालडोरा तो नहीं बढ़ाया, मगर लालडोरा के अंदर बसे लोगों को मालिक बनाने का काम शुरू किया जा चुका है। समस्या लालडोरा के बाहर बने मकानों व मकानों के बीच खाली पड़े गैर मुमकिन भूखंडों की रजिस्ट्री न करने व बैंक ऋण की सुविधा नहीं मिलने की है। सूत्रों के अनुसार बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया है। रजिस्ट्री के नए नियम लागू होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों की अवैध कालोनियों में रेट जहां औंधे मुंह गिर गए हैं वहीं शहर की नियमित कालोनियों के रेट आसमान छू रहे हैं। लोगों का कहना है कि सरकार जब नियम बनाकर शहरों की कालोनियों को नियमित कर सकती है और आबादी के कलस्टर के कारण वहां बिजली-पानी व सड़क की सुविधा दे सकती है, तब गांवों के लिए यह सुविधा क्यों नहीं।

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