जापान के शिष्टमंडल ने सराही हमारी फव्वारा सिचाई प्रणाली

संवाद सहयोगी पिहोवा जापान सोसायटी ऑफ रुरल डेवलपमेंट इंजीनियरिग के चेयरमैन नौकी हैयेशिडा ने कहा कि हरियाणा में फव्वारा सिचाई प्रणाली से पानी की एक-एक बूंद का सदुयपयोग किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 14 Mar 2019 07:56 AM (IST) Updated:Thu, 14 Mar 2019 07:56 AM (IST)
जापान के शिष्टमंडल ने सराही हमारी फव्वारा सिचाई प्रणाली
जापान के शिष्टमंडल ने सराही हमारी फव्वारा सिचाई प्रणाली

संवाद सहयोगी, पिहोवा : जापान सोसायटी ऑफ रुरल डेवलपमेंट इंजीनियरिग के चेयरमैन नौकी हैयेशिडा ने कहा कि हरियाणा में फव्वारा सिचाई प्रणाली से पानी की एक-एक बूंद का सदुयपयोग किया जा रहा है। इसका आने वाले समय में ओर अधिक उपयोग किया जाएगा, क्योंकि भूजल स्तर धीरे-धीरे नीचे जा रहा है। इसलिए पानी को बचाने के लिए फव्वारा सिचाई प्रणाली को अपनाना होगा।इससे पानी की बचत होने के साथ-साथ किसानों की फसल भी अच्छी होगी। चेयरमैन नौकी हैयेशिडा बुधवार को गांव गुमथला गढू में कर्ण सिंह चट्ठा के फार्म पर हरियाणा नहरी क्षेत्र विकास प्राधिकरण के सूक्ष्म सिचाई प्रोजेक्ट का अवलोकन कर रहे थे। इससे पहले हैयेशिडा, तकनीकी चीफ यसुनोरी सैकी, निदेशक मितसौ इशीजिमा, सीनियर ज्वाइंट निदेशक वाटर रिसोर्सिस पुनीत मितल, केंद्रीय जल संसाधन के निदेशक एसके शर्मा, चीफ इंजीनियर राकेश चौहान काडा विभाग, एसई एके रघुवंशी, एक्सईएन नीरज शर्मा ने किसानों से सीधा संवाद भी किया।

तकनीकी चीफ यसुनोरी सैकी ने बताया कि पहली बार वे यहां पहुंचे हैं और इस प्रोजेक्ट को देखकर अच्छा लगा कि पानी को बचाने के लिए अच्छे प्रयास किए जा रहे हैं। इरिगेशन सिस्टम जलगांव महाराष्ट्र की कंपनी से आए डॉ. एके भारद्वाज ने बताया कि उनके प्रोजेक्ट 134 देशों में फसलों में सूक्ष्म सिचाई पर काम करते हैं। उत्तरी प्रदेशों जैसे यूपी, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड की मुख्य फसलें धान और गेहूं हैं। देश का कुल अन्न उत्पादन का 75 प्रतिशत इन प्रदेशों द्वारा उपजी फसलों से आता है। इन फसलों में पानी की अतिरिक्त मात्रा से सिचाई की जाती है। फसलों में बूंद-बूंद सिचाई ड्रिप द्वारा फसलों की जड़ों में दी जाती है। पौधे की आवश्यकता अनुसार इस विधि से पूरे खेत में पानी नहीं भरा जाता, अपितु सिचाई को फसल की जड़ों के आस-पास ही दिया जाता है। 12 साल चलते हैं पाइप उन्होंने बताया कि इस विधि के पाइपों की कम से कम आयु 10-12 साल होती है। इस प्रकार एक बार उपकरण लगाने से धान व गेहूं की लगभग 24 फसलें ली जा सकती हैं। सावधानी से बरतने पर इसकी आयु 15 से 20 वर्ष तक भी रहती है। तीन विधियों द्वारा खेती की सिचाई की जा रही है। फव्वारा विधि, ड्रिप विधि व किसानों की पारंपरिक विधि द्वारा खेती की जा रही है। टपका सिचाई द्वारा 50 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती है। किसान कर्णजीत सिंह चट्ठा ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में 16 किसान भागीदार हैं। सबको अपने हिस्से का पानी बराबर मिल रहा है और सूक्ष्म सिचाई पद्धति से खेती की जा रही है। इस पद्घति से पानी की 50 प्रतिशत बचत होती है।

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