Rakhigarhi Excavation: मानव सभ्यता को भारत का 8000 साल पुराना ‘नमस्कार’

हिसार के इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया कि राखीगढ़ी से मिला यह प्रमाण बेहद महत्वपूर्ण है जो साबित करता है कि वैदिक सभ्यता-संस्कृति बाहर से भारत में नहीं आई बल्कि हड़प्पा और उससे पहले से यहां पर मौजूद थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 03 Nov 2020 11:02 AM (IST) Updated:Tue, 03 Nov 2020 11:02 AM (IST)
Rakhigarhi Excavation: मानव सभ्यता को भारत का 8000 साल पुराना ‘नमस्कार’
अभिवादन का प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य है पुरानगरी राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ प्रतिमा

सुनील मान, हिसार। आठ हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को अपने में समेटे राखीगढ़ी से प्राप्त नमस्कार मुद्रा वाली यह दुर्लभ मूर्ति विश्व को अपना वह परिचय नहीं दे सकी है, जिसके योग्य वह है। आज, जब विश्व हैंड-शेक को तज नमस्कार कर रहा है, अभिवादन का यह प्राचीनतम प्रमाण अहम हो जाता है। यह मूर्ति इस बात को भी सिद्ध कर देती है कि आर्य विदेशी नहीं थे।

हरियाणा के हिसार स्थित राखीगढ़ी कस्बे में टीलों के नीचे आठ से छह हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग कुछ चरणों में खोदाई कर चुका है, जबकि कुछ का होना शेष है। यहां अब तक मिले विविध साक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण है नमस्कार करते हुए योगी की मूर्ति।

महत्वपूर्ण इसलिए कि सभ्यता के विकासक्रम में अभिवादन का यह साक्ष्य प्राचीनतम और दुर्लभ है। दूसरा, भारतीय योग परंपरा में वíणत एक प्रमुख योगासन पद्मासन की मुद्रा में बैठे हुए योगी को इस प्रतिमा में अपनी दोनों हथेलियों को नमस्कार मुद्रा में जोड़े हुए दर्शाया गया है। इससे पश्चिम के विद्वानों का वह दावा औंधे मुंह गिर जाता है, जो आर्यो को विदेशी मूल का बताता आया है। यद्यपि, सभ्यता और इतिहास के इस महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण को भारत विश्व के सम्मुख उस प्रकार नहीं रख सका, जिसकी आवश्यकता है।

इस ओर हमारा ध्यान रविवार को तब गया, जब यहां पुरातत्व संबंधित एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा था। इसके बाद हमने पुरातत्वविदों और इतिहासकारों से विवरण जुटाया। पता किया कि क्या इससे पूर्व कहीं भी नमस्कार या अभिवादन की मुद्रा का इतना प्राचीन पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त हुआ है? सभी का उत्तर था- नहीं। स्पष्ट हो गया कि हमारे गौरवशाली अस्तित्व की एक अद्भुत उपलब्धि अंधकार में घिर कर रह गई है। यही नहीं, भारतीय पुरातत्व विभाग से भी हमने प्रश्न किया, ताकि आश्वस्त हुआ जा सके कि यह साक्ष्य दुर्लभ है अथवा नहीं? विभाग ने स्वीकार किया कि हां, इसे नेशनल म्यूजियम तक तो पहुंचा दिया गया, किंतु जैसा प्रचार-प्रसार होना चाहिए था, वह नहीं हो सका।

राखीगढ़ी साइट से जुड़े पुरातत्वविदों ने हमें बताया कि हां, यह प्रमाण इस बात को सिद्ध करता है कि आर्य बाहर से नहीं आए थे, वरन वे यहां के ही मूल निवासी थे। अत: हड़प्पा और वैदिक सभ्यता में विभेद नहीं किया जा सकता है। बताया कि विगत चरण में हुई खोदाई के दौरान यहां 10 सेंटीमीटर ऊंची यह टेराकोटा की मूíत मिली। इतिहासकारों ने कहा, इससे पहले हमें बताया जाता रहा कि नमस्कार वैदिक सभ्यता का अंग है, जो कि हड़प्पा के बाद विकसित सभ्यता है, किंतु राखीगढ़ी से मिला यह साक्ष्य अवधारणाओं को सही कर दे रहा है।

हरियाणा के पुरातत्व विभाग के डिप्टी डायरेक्टर बनानी भट्टाचार्य ने बताया कि राखीगढ़ी में खोदाई के दौरान नमस्कार मुद्रा में एक मूर्ति मिली थी, जिसे दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रख दिया गया है। लेकिन अब भी बहुत से लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। पुरातत्व विभाग की तरफ से भी इसका वैसा प्रचार नहीं किया गया, जो कि विभाग को करना चाहिए था।

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