अंधविद्यालय में कुर्सी बुनकरों को बना दिया शिक्षक, 150 से 23 हो गई बच्‍चों की संख्‍या

कैसे संवरेगा भविष्य- भोजन भी शहरवासियों के भरोसे। तीन साल से नहीं मिल पा रही सरकारी सहायता। 8वीं तक बने इस स्कूल की शिक्षा का स्तर ऐसा गिरा कि दृष्टिहीन अब दाखिले ही नहीं ले रहे

By Manoj KumarEdited By: Publish:Mon, 16 Sep 2019 02:01 PM (IST) Updated:Tue, 17 Sep 2019 11:00 AM (IST)
अंधविद्यालय में कुर्सी बुनकरों को बना दिया शिक्षक, 150 से 23 हो गई बच्‍चों की संख्‍या
अंधविद्यालय में कुर्सी बुनकरों को बना दिया शिक्षक, 150 से 23 हो गई बच्‍चों की संख्‍या

हिसार [वैभव शर्मा] आप स्कूल जाते हैं तो सबसे पहले वहां का शैक्षिक स्तर देखते होंगे, शिक्षकों के बारे में भी पता करते होंगे, पता चलता होगा कि कोई जेबीटी है तो कोई पीजीटी, मगर क्या कभी आपने किसी ऐसे स्कूल के बारे में सुना है, जहां पढ़ाने के लिए कुर्सी बुनने वाले लोगों से शिक्षकों का कार्य लिया जा रहा है।

आपको बता दें कि हरियाणा का पहला अंधविद्यालय रेडक्रास में संचालित हो रहा है, जहां 8 कुर्सी बुनने वाले लोग बच्चों को पढ़ा रहे हैं। दरअसल पढ़ा क्या रहे हैं न तो अपना मूल काम कर पा रहे हैं और न ही बच्चों का शिक्षा दे पा रहे हैं। सही मायने में तो सरकार हो या प्रशासन, इन बच्चों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं।

इसका प्रतिफल यह है कि कभी आइएएस, बैंक पीओ, लेक्चरर बनाने वाला यह दृष्टिबाधित दिव्यांग का विद्यालय 23 बच्चों पर सिमट कर रह गया है। हॉस्टल, अत्याधुनिक लैब, लाइब्रेरी जैसी सुविधाओं से लैस इस स्कूल में अब कोई भी अभिभावक अपने दिव्यांग बच्चों का दाखिला नहीं कराना चाहता। यहां पढऩे वाले बच्चे भी धीरे-धीरे

सिरसा के अंधविद्यालय में जा रहे हैं। यही हालत रही तो जल्द ही अंधविद्यालय को बंद कर दिया जाएगा। स्कूल प्रबंधिका सुनीता ग्रोवर ने बताया कि बच्चों के खाने का प्रबंध तो समाज के सहयोग से हो जाता है,  फिर भी हम विभागों को लिखकर सहयोग मांग रहे हैं ताकि इस विद्यालय में व्यवस्थाएं सही रूप में आ सकें।

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 ग्राउंड रिपोर्ट में तीन बड़े खुलासे
1. तीन साल से अंधविद्यालय चलाने के लिए सरकारी ग्रांट तक नहीं मिली
जब जागरण इस अंधविद्यालय की जड़ तक पहुंचा तो पता चला कि 3 साल पहले इस विद्यालय को संचालित करने के लिए समाज कल्याण करीब ढ़ाई लाख रुपये की ग्रांट देता था। इस ढ़ाई लाख रुपये में बच्चों के लिए वर्ष भर खाने का प्रबंध, बच्चों के लिए अन्य सामान, बुनकरों को छोड़कर दूसरे स्टाफ का वेतन आदि काम किए जाते थे। मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि तीन साल से समाज कल्याण विभाग ने इस विद्यालय को कोई ग्रांट नहीं दी। स्कूल प्रशासन से बात करने पर पता चला कि उन्होंने कई बार विभाग को पत्र लिखे मगर कोई जवाब तक नहीं आया।

2. हॉस्टल में चंदे की राशि से पक रहा भोजन
इस विद्यालय और यहां के बच्चों को देखने के बाद आपके मन में आएगा कि जब ग्रांट नहीं है तो यहां हॉस्टल में खाने का कैसे प्रबंध किया जाता होगा। तो आपको बता दें कि यहां शहरवासियों के रहमोकरम पर बच्चों के पेट भर पा रहा है।

3. छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए भी लोगों का ही सहारा
स्कूल प्रशासन ने इतने पर भी यहां के 30 से अधिक कमरों में सफाई आदि का अच्छा प्रबंधन किया है। मगर बच्चों की दूसरी व्यवस्थाओं के लिए वह समाज के बड़े परिवारों, उद्योगपतियों या संस्थाओं के पास अक्सर बच्चों के लिए कोशिश करते देखे जा सकते हैं। यहां बच्चों के कपड़ों से लेकर दैनिक आवश्यकताओं के लिए प्रयोग होने वाली वस्तुओं के लिए भी शहरवासियों से मदद ली जा रही है।

जानिए... आखिर क्यों कुर्सी बुनकरों को बनाया दिया गया शिक्षक
हुड्डा सरकार के समय में 100 से अधिक कुर्सी बुनकरों को अलग-अलग जगह स्थानांतरित किया गया था, जहां उनसे उनकी योग्यता के अनुसार काम लेना चाहिए था। हिसार का यह अंधविद्यालय रेडक्रॉस के भरोसे चल रहा था। कुर्सी बुनकरों को यहां लाकर शिक्षण के कार्य में लगा दिया गया, जबकि उनसे विद्यालय में दूसरे कार्य कराए जा सकते थे। क्योंकि यह विद्यालय कक्षा 8 तक संचालित होता है, नियमानुसार यहां कम से कम कक्षा 5वीं तक जेबीटी तो कक्षा 8वीं तक पीजीटी पास व्यक्ति को ही शिक्षक बनाया जाना चाहिए, मगर सरकार के ही लोगों ने इस नियम पर ध्यान ही नहीं दिया।

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