भिवानी : रोहनात की धरोहर की नहीं ली जा रही सुध, 1857 की क्रांति का गवाह है यह बरगद

ऐतिहासिक धरोहर अंग्रेजों के जुलम का गवाह तो मानी जाती हैं साथ-साथ जोहड़ किनारे खड़ा वर्षों पुराना बरगद का पेड़ भी संरक्षण की बांट जोह रहा है। बता दें कि यहां के जाबांज अंग्रेजों के जुल्म से नहीं डरे और उनका डटकर मुकाबला किया।

By Naveen DalalEdited By: Publish:Wed, 26 Jan 2022 12:16 PM (IST) Updated:Wed, 26 Jan 2022 12:16 PM (IST)
भिवानी : रोहनात की धरोहर की नहीं ली जा रही सुध, 1857 की क्रांति का गवाह है यह बरगद
1857 की क्रांति में ग्रामीणों ने दी प्राणों की आहुति।

बवानीखेड़ा(भिवानी), राजेश कादियान। 165 वर्ष से अधिक का अरसा बीत चुका है। इसके बावजूद भी गांव रोहनात स्थित ऐतिहासिक धरोहर की अभी तक किसी ने भी सुध नहीं ली है। समय की मार को झेलते हुए गांव रोहनात की ऐतिहासिक धरोहर दम तोड़ती जा रही है। ग्रामीणों ने इस धरोहर के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री से लेकर जिला प्रशासन तक कई बार पत्र लिखा जा चुका है लेकिन अभी तक इस बारे में कोई भी कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। इससे ग्रामीणों में काफी रोष है। 

पांच साल पहले पहली बार फहराया था मुख्यमंत्री ने झंडा

ये ऐतिहासिक धरोहर अंग्रेजों के जुलम का गवाह तो मानी जाती हैं साथ-साथ जोहड़ किनारे खड़ा वर्षों पुराना बरगद का पेड़ भी संरक्षण की बांट जोह रहा है। बता दें कि यहां के जाबांज अंग्रेजों के जुल्म से नहीं डरे और उनका डटकर मुकाबला किया। 1857 की क्रांति के दौरान यहां के लोगों ने अपनी मातृ भूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। अंग्रेजों ने भी ग्रामीणों पर काफी जुल्म ढहाए। अंग्रेजों के जुल्मों का गवाह गांव रोहनात में वर्षों पुराना एेतिहासिक जोहड़, कुआं व बरगद का पेड़ आज भी लोगों पर अंग्रेजों द्वारा ढहाए गए के जुल्म की यादों को ताजा कर रहा है। लेकिन ऐतिहासिक धरोहर संरक्षण के अभाव से धीरे-धीरे दम तोड़ने के कगार पर पहुंच गई हैं। वर्षों पूरा बरगद भी रख-रखाव के अभाव में लगातार सूखता जा रहा है और कुआं भी धीरे-धीरे जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है। 

बरगद के संरक्षण के नहीं बनी कोई स्थाई योजना

जोहड़ भी धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। यहां की ग्राम पंचायत ने करीब एक वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री को पत्र लिख इस प्राचीन विरासत को पर्यटक स्थल में तबदील किए जाने की मांग की जा चुकी है। ग्राम पंचायत ने जोहड़ की मरम्मत के लिए रिटर्निंग वाल व सौंदर्यकरण के लिए भी एस्टीमेट तैयार कर प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन को भेजा जा चुका है। इसी प्रकार कुएं की मरम्मत व बरगद के संरक्षण के लिए भी योजना तैयार की हुई है। करीब 90 लाख रुपये की लागत का एस्टीमेट तैयार किया हुआ है लेकिन अभी तक इस विरासत के संरक्षण के लिए सरकार की ओर से कोई भी मंजूरी नहीं मिलपाई है। 

ग्रामीण बोले, इस बरगद पर दी थी फांसी

ग्रामीण करीब 81 वर्षीय जागर सिंह, 79 वर्षीय ओमप्रकाश, 77 वर्षीय रिसाल सिंह आदि ने बताया कि यहां के जोहड़ के किनारे 1857 से पहले से ही कुआं व बरगद का पेड़ खड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने यहां के ग्रामीणों को उनका मुकाबला करने के विरोध में ग्रामीणों को इस बरगद के पेड़ पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। वहीं अंग्रेजों से अस्मत बचाने के लिए यहां की महिलाएं बच्चों समेत इस कुएं में कूद गई थी। उन्होंने बताया कि इसके अलावा अंग्रेजों ने यहां के ग्रामीणों को तोप से भी उड़ा दिया था। साथ-साथ हांसी ले जाकर कुछ ग्रामीणों को रोड रोलर से भी कुचल दिया था। जिससे हांसी की लाल सड़क के नाम से जाना जाता है। यहां के बुजुर्गों ने सरकार से मांग की है कि ये तीनों चीजें काफी एेतिहासिक हैं। इसलिए सरकार को इनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम अवश्य ही उठाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी भी गांव के गौरवमयी इतिहास व प्राचीन विरासत से रूबरू हो सकें। 

ग्राम पंचायत इससे टूरिस्ट प्लेस में बदलना चाहती है

निवर्ममान सरपंच रीनू बूरा ने बताया कि गांव स्थित इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के बारे में कई बार प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन को पत्र लिखा जा चुका है। पहले इसके संरक्षण के लिए पंचायत द्वारा करीब 90 लाख का एस्टीमेट भी तैयार किया गया था लेकिन अभी तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। ग्रामीणों के लिए ये ऐतिहासिक धरोहर काफी अहमियत रखती है। ग्राम पंचायत इससे टूरिस्ट प्लेस में बदलना चाहती है। यहां के ग्रामीणों का इतिहास काफी गौरवमय है। यहां के ग्रामीणों की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका काफी बहादुरी एवं जाबांजी की रही है। अगर सरकार इसका संरक्षण करती है तो यह ऐतिहासिक धरोहर आने वाली पीढ़ी को भी गांव का गौरवमय इतिहास से रूबरू करवाने में मदद करेगी।

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