तर्पण.. रूढि़यों से हटकर असहायों की करते थे सेवा
मेरे पिताजी की छवि और स्मृति निरंतर मेरे साथ रहती और प्रेरित करती है। सब छोटे बड़े उन्हें चाचा जी के कहकर पुकारते थे। एक साधारण व्यक्ति का जीवन जीने वाले मेरे पिताश्री (स्व ़मुन्शी राम साहनी ) असाधारण गुणों से सम्पन्न थे। दृढ़ निश्चय, सादगी और अपने काम को ही पूजा मानते थे और मंदिर जाने के बजाय किसी की मदद करने में विश्वास रखते थे। पढ़ने का उन्हें बेहद शौक़ था। व्यक्ति की पहचान पैसों से नहीं गुणों से करते थे। उन्हीं को अपना आदर्श मानते हुए जीवन जीने में संतोष और सुख की अनुभूति होती है। वह अपने पिता के श्राद्ध पर भी धार्मिक रूढि़यों से हट कर किसी असहाय की सहायता करने में विश्वास रखते थे और हमें भी ऐसा ही करने की सीख दी ।
-मदन साहनी, साहित्यकार, सेक्टर चार।