राजेंद्र ¨सह ने छाती पर गोली खा विद्रोहियों को चने चबवाए

देश पर मिटने वालों का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो जाता है। आज भी मां भारती की रक्षा करते हुए जान न्यौछावर करने वाले शहीदों के अदम्य साहस की कहानी सुनते-सुनाते रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गोलियों से शरीर छलनी होने के बाद भी अमर सपूतों के कदम नहीं डगमगाए।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 15 Aug 2018 06:13 PM (IST) Updated:Wed, 15 Aug 2018 06:13 PM (IST)
राजेंद्र ¨सह ने छाती पर गोली खा विद्रोहियों को चने चबवाए
राजेंद्र ¨सह ने छाती पर गोली खा विद्रोहियों को चने चबवाए

सुभाष डागर, बल्लभगढ़ : देश पर मिटने वालों का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो जाता है। आज भी मां भारती की रक्षा करते हुए जान न्यौछावर करने वाले शहीदों के अदम्य साहस की कहानी सुनते-सुनाते रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गोलियों से शरीर छलनी होने के बाद भी अमर सपूतों के कदम नहीं डगमगाए। वे दुश्मनों की ओर ही बढ़ते गए और उनके नापाक इरादों को नाकाम कर दिया। ऐसे ही जाबांज थे गांव मच्छगर के रहने वाले शौर्य चक्र विजेता सेकेंड लेफ्टिनेंट राजेंद्र ¨सह नागर।

गांव मच्छगर के रहने वाले कर्नल चरत ¨सह नागर के दो बेटों में एक राजेंद्र ¨सह नागर का जन्म 24 अगस्त-1964 को हुआ और युवावस्था में ही 16 सिख रेजीमेंट में भर्ती हो गए। अपनी बटालियन में सेकेंड लेफ्टिनेंट थे, उन्हें 1987 में शांति सेना में भारत की तरफ से श्रीलंका में भेजा गया। उनकी बटालियन 16 अगस्त को श्रीलंका के जाफना किले के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए सड़क के रास्ते जा रही थी। रास्ते में मणिघे की ओर से विद्रोहियों ने बटालियन पर भारी गोलाबारी की। ऐसी परिस्थितियों में सेकेंड लेफ्टिनेंट राजेंद्र ¨सह नागर ने पहल की और अपने जवानों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। सभी संकटों का सामना करते हुए वे खुद दस्ते के आगे-आगे चल रहे थे। उन्होंने उस भारी मशीन गन की चौकी को ढूंढ निकाला, जहां से धुआंधार गोलाबारी हो रही थी। उन्होंने विद्रोहियों की चौकी पर हथगोला फेंका। पहला हथगोला फटने पर वे सीधे खड़े रहे और चौकी पर खुद आक्रमण किया। विद्रोहियों ने पास से निशाना साधकर वीर युवा राजेंद्र ¨सह नागर को गोली मार दी। इस युवा अफसर द्वारा दिखाए गए साहस ने पूरी बटालियन में लड़ाई का जोश भर दिया। बटालियन ने मुंह नहीं मोड़ा और सौंपे गए सभी कार्य पूरे किए। इस प्रकार सेकेंड लेफ्टिनेंट राजेंद्र ¨सह नागर ने विद्रोहियों के साथ संघर्ष में साहस और वीरता का परिचय देते हुए सेना की ऊंची परंपरा के अनुरूप अपने जीवन का बलिदान दिया। इस बलिदान के लिए राष्ट्रपति ने उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया। हमें अपने वीर सपूत राजेंद्र ¨सह नागर पर फक्र है। गांव पंचायत ने उनकी स्मृति में आठ एकड़ भूमि स्टेडियम में बनवाया है। गांव में उनके नाम से प्रवेश द्वार बनवाया है। पंचायत ने सरकारी स्कूल का नाम शहीद के नाम रखने के लिए प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है। गांव में शहीद राजेंद्र ¨सह के नाम से ग्राम सचिवालय भी बनाया है।

-जगराम ¨सह, चाचा, शहीद राजेंद्र ¨सह निवासी मच्छगर

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