Surajkund International Fair:‌‌ हस्तशिल्प मेले के शिल्पियों की मांग, ट्रेड फेयर की तर्ज पर आयोजित हों सेमिनार

आम बजट में विश्वकर्माओं यानी शिल्पकारों को बाजार और ब्रांडिंग से जोड़ कर उनको नई उड़ान देने का उद्देश्य 36वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में पूरा नहीं हो रहा है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्पियों के सुझाव के बावजूद मेला आयोजन से जुड़े अधिकारियों को इसकी परवाह भी नहीं है।

By Anil BetabEdited By: Publish:Sat, 04 Feb 2023 08:31 PM (IST) Updated:Sat, 04 Feb 2023 08:31 PM (IST)
Surajkund International Fair:‌‌ हस्तशिल्प मेले के शिल्पियों की मांग, ट्रेड फेयर की तर्ज पर आयोजित हों सेमिनार
सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला में आए शिल्पियों ने की मांग

फरीदाबाद, जागरण संवाददाता। आम बजट में विश्वकर्माओं यानी शिल्पकारों को बाजार और ब्रांडिंग से जोड़ कर उनको नई उड़ान देने का उद्देश्य 36वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में पूरा नहीं हो रहा है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्पियों के सुझाव के बावजूद मेला आयोजन से जुड़े अधिकारियों को इसकी परवाह भी नहीं है। शिल्पकारों को बड़ा बाजार देने के उद्देश्य से न तो यहां कोई प्रशिक्षणशाला का आयोजन होता है और न ही उनके लिए किसी तरह का सेमिनार, जिसमें विशेषज्ञों के साथ शिल्पकार रूबरू हो सकें।

मेले में आए हस्तशिल्पियों को भी इस बात का मलाल है। उनके अनुसार प्रतिवर्ष मेले में आते हैं, अपने उत्पादों की नुमाइश करते हैं। कुछ बिक्री भी होती है, पर अगर सही तरीके से विशेषज्ञों का मार्गदर्शन मिल जाए और उनके सुझावों पर अमल किया जाए तो देश की इस प्राचीन व समृद्ध हस्तशिल्पकला को वैश्विक बाजार में समुचित जगह बनाने में देर नहीं लगेगी।

शिल्पगुरु इस बात पर जोर दे हैं कि बेहतरी के लिए समय-समय पर हस्तशिल्प से जुड़े लोगों से सुझाव लिए जाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मेले में देश-विदेश से शिल्पी आते हैं। ऐसे में उनकी परेशानियों को भी जानने का प्रयास होना चाहिए।

जानिए क्या बोले हस्तशिल्प

हस्तशिल्पियों को केंद्र में रखते हुए ही सूरजकुंड मेला आयोजित किया जाता है, पर हैरानी की बात है कि हस्तशिल्पियों को सुविधा नहीं दी जाती है। शिल्पगुरुओं, राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार विजेताओं को अलग जोन में जगह मिलनी चाहिए। प्रत्येक का परिचय भी मेला परिसर में दर्शाया जाए, ताकि दूसरे शहरों से आने वाले पर्यटकों को कला विशेष का पता चल सके। अगर प्रगति मैदान में प्रति वर्ष लगने वाले व्यापार मेले की तर्ज पर यहां भी बिजनेस आवर हों और सेमिनार हों तो इससे शिल्पियों को अपनी कला बड़े मंच पर दिखाने की राह खुलेगी, साथ ही मेले का भी नाम होगा।

-सुरेंद्र कुमार यादव, स्टेट अवार्डी, भाेपाल।

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सबसे पहले तो स्टाल देने के मामले में शिल्पगुरुओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। ऐसा प्रबंध हो कि शिल्पगुरु भी युवा शिल्पियों को टिप्स दे सकें। इसके लिए मेले में प्रशिक्षण अवधि तय होनी चाहिए। मेले के आयोजन के दौरान ही शिल्पियों से सुझाव लेने की जरूरत है और उनमें जो अच्छे हों, उन पर अमल किया जाए। मेला की बेहतरी के लिए मेला परिसर में सांकेतिक बोर्ड लगाए जाने चाहिए, जिससे यहां आने वाले पर्यटक पुरस्कार विजेताओं तक आसानी से पहुंच सकें।

-महेश कुमार, शिल्पगुरु।

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मेरा सुझाव है कि मेला परिसर में शिल्पियों के लिए अलग-अलग जोन होने चाहिए। इसकी जानकारी मेला परिसर में अलग-अलग लिखी जाए। इससे मेले में आने वाले लोगों को देश-विदेश की शिल्पकला का पता चल पाएगा। यह पर्यटक पर निर्भर करता है कि वह किस जोन को प्राथमिकता देता है। अभी मेला वर्षों उसी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। समय के साथ इसमें बदलाव जरूरी है। शिल्पकारों को बड़ा बाजार तभी मिलेगा, जब उनके उत्पाद की ब्रांडिंग होगी। मेला प्रबंधन को यह सब देखना होगा।

-डी.वेंकटरमन, स्टेट अवार्डी।

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निश्चित रूप से यह सुझाव अच्छा है और हम कोशिश करेंगे कि मेले के बीच के दिनों में बिजनेस सेमिनार आयोजित करें। और भी जो सुझाव आएंगे, उन पर विचार किया जाएगा।

-नीरज कुमार, प्रबंध निदेशक, हरियाणा पर्यटन निगम

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