Aravali, Faridabad House Demolition: अरावली में तोड़े गए सरकारी जमीन पर बने 10,000 अवैध निर्माण
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली-हरियाणा सीमा पर खोरी गांव राजस्व क्षेत्र की 154 एकड़ वन क्षेत्र की सरकारी जमीन पर बने करीब दस हजार अवैध निर्माण प्रशासन ने तोड़ दिए हैं। 2002 से पहले खोरी गांव में करीब 200 परिवार रहते थे।
नई दिल्ली/फरीदाबाद [बिजेंद्र बंसल]। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली-हरियाणा सीमा पर खोरी गांव राजस्व क्षेत्र की 154 एकड़ वन क्षेत्र की सरकारी जमीन पर बने करीब दस हजार अवैध निर्माण प्रशासन ने तोड़ दिए हैं। 2002 से पहले खोरी गांव में करीब 200 परिवार रहते थे। ये पास लगते गांव लकड़पुर के वे परिवार थे, जिनके पास लकड़पुर में स्थायी आवास नहीं थे। इसलिए ये परिवार गांव राजस्व क्षेत्र की जमीन पर आकर बस गए थे। इन्हें बसने में करीब दस साल का समय लगा, लेकिन 2002 के बाद यहां आसपास की खाली जमीन को कुछ लोग समतल कराते गए और फरीदाबाद सहित दिल्ली में कामकाज की तलाश में आए कामगारों को देते रहे। इसकी एवज में स्थानीय दबंग लोग प्रति वर्ग गज के हिसाब से कामगारों से रकम वसूलते थे। दबंगों से मिला जमीन का यही कब्जा ये कामगार एक तरह से रजिस्ट्री मान लेते थे। सरकारी जमीन को भोले-भाले लोगों को बेचने के इन कारनामों की जानकारी तत्कालीन शासन-प्रशासन को भी रही, लेकिन किसी ने दबंगों पर कार्रवाई नहीं की। यह कहने के लिए किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है कि इन दबंगों को तत्कालीन सत्तारूढ़ और विपक्ष के नेताओं का संरक्षण प्राप्त रहा था। खोरी के 12 हजार मतदाताओं को लुभाने के लिए यहां बिजली के कनेक्शन भी दिए गए। सरकारी स्कूल भी इस क्षेत्र में बनवाया गया, मगर कभी किसी सांसद, विधायक ने इस अतिक्रमण को हटाने के लिए प्रयास नहीं किया।
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करते अधिकारी
खोरी गांव में वन क्षेत्र की सरकारी जमीन हो या फिर निजी जमीन पर बने फार्म हाउस और बैंक्वेट हाल सहित अन्य संस्थागत निर्माण सभी वन विभाग, नगर निगम और पुलिस की मिलीभगत से हुए हैं। सेवानिवृत्त जिला योजनाकार रवि सिंगला बताते हैं कि खोरी में सरकारी जमीन पर कामगारों को बेचने के आरोप में सात एफआइआर उन्होंने 2012 में कराई थी। मगर इसके बाद इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अदालत में भी सही पैरवी नहीं हुई। इसके बाद भी खोरी से लेकर अरावली क्षेत्र की वन भूमि में अतिक्रमण का दौर कम नहीं हुआ।
तोड़फोड़ नहीं, जवाबदेही तय हो
मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई तोड़फोड़ पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा मगर यह जरूर कहूंगा कि तोड़फोड़ स्थायी समाधान नहीं है। चुने हुए प्रतिनिधि पांच साल में बदल जाते हैं। जब अधिकारी और चुने हुए प्रतिनिधि जब कानून के तहत एक व्यवस्था में काम करते हैं, तो फिर व्यवस्था तोड़ने पर जिम्मेदार अधिकारी की जवाबदेही तो होनी चाहिए। यदि जिम्मेदारी पिछले तीस साल से भी तय हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।-महेंद्र प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री, हरियाणा
दोषियों के खिलाफ निश्चित रूप से कार्रवाई हो
कृष्णपाल गुर्जर (सांसद फरीदाबाद व केंद्रीय राज्यमंत्री) का कहना है कि खोरी में वन क्षेत्र की सरकरी जमीन पर अतिक्रमण कब से शुरू हुआ ये तथ्य प्राप्त करना अब कोई मुश्किल नहीं है। सरकारी जमीन पर कब्जा या अवैध निर्माण को कोई भी चुना हुआ प्रतिनिधि ठीक नहीं बता नहीं सकता। इन पर कार्रवाई नहीं होने के लिए जिम्मेदारी अधिकारियों की है। सुप्रीम कोर्ट में जब खोरी गांव के मामले में सुनवाई हुई तो सभी पहलुओं पर चर्चा हुई थी। यह ठीक है कि उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए जो खोरी बस्ती को बसाने के लिए दोषी हैं।