ओवर टाइम बंद होने से हाहाकार, 12 बसों का पहिया थमा, लोकल रूटों पर घटे फेरे, यात्री हुए परेशान
रोडवेज विभाग में सरकार द्वारा ओवर टाइम बंद किए जाने के साथ ही परिवहन सेवाओं को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सरकारी आदेश लागू होने के चार दिन के अंदर ही अब 12 बसों का पहिया थम गया है। रोजाना इतनी संख्या में बसें तो सड़कों पर निकल ही नहीं पा रही। सभी लोकल रूटों पर भी फेरे घट गए हैं। इससे यात्री भी परेशान हो गए हैं। बहादुरगढ़ सब डिपो में 16 नवंबर को सरकार के ये आदेश लागू किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि तमाम रूटों पर बसों के ट्रिप 50 फीसद तक कम हो गए। लंबे रूटों पर असर इससे भी
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : रोडवेज विभाग में सरकार द्वारा ओवर टाइम बंद किए जाने के साथ ही परिवहन सेवाओं को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। सरकारी आदेश लागू होने के चार दिन के अंदर ही अब 12 बसों का पहिया थम गया है। रोजाना इतनी संख्या में बसें तो सड़कों पर निकल ही नहीं पा रही। सभी लोकल रूटों पर भी फेरे घट गए हैं। इससे यात्री भी परेशान हो गए हैं।
बहादुरगढ़ सब डिपो में 16 नवंबर को सरकार के ये आदेश लागू किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि तमाम रूटों पर बसों के ट्रिप 50 फीसद तक कम हो गए। लंबे रूटों पर असर इससे भी ज्यादा है। अकेले दिल्ली-चंडीगढ़ रूट पर ही 10 में से 7 बसें बंद कर दी गई हैं। अभी सिर्फ तीन बसें ही चल रही हैं। दिल्ली-सिरसा के बीच चलने वाली पांच में से तीन बस बंद हो गई हैं। सोनीपत-चंडीगढ़ की एक और धर्मशाला चल रही एक मात्र बस बंद हो गई है। यानी पहले के मुकाबले अब 12 बसें तो बस स्टैंड में ही खड़ी रहेंगी। लोकट रूटों पर घटे फेरे, यात्री परेशान :
इससे प्राइवेट आपरेटरों की मौज हो गई। रोडवेज के टाइम पर बस स्टैंड में कोई बस उपलब्ध नहीं होती। ऐसे में यात्री भी प्राइवेट बसों में ही सफर करने को मजबूर होते हैं जिन्होंने रोडेवज का पास बनवा रखा है, उनके लिए दिक्कत है। ओवरटाइम बंद किए जाने का असर अब और पड़ने लगा है। सभी लोकल रूटों पर बसों के रोजाना एक या दो ट्रिप बंद हो गए हैं। जिस टाइमटेबल के हिसाब से बसें चल रही थी, उस समय पर अब चार दिनों से बसें नहीं चल पा रही। गुरुग्राम, बेरी, झज्जर, बाढ़सा, फर्रुखनगर, बामड़ौला, सांपला, खरखौदा, बादली समेत अनेक रूटों के लिए जो बसें चलती थी, उनकी संख्या कम हो गई। सरकार को कहीं फायदा तो कहीं नुकसान : बहादुरगढ़ सब डिपो में 62 बसें हैं। यहां पर 82 चालक और 80 परिचालक हैं। ऐसे में बिना ओवरटाइम के टाइमटेबल के अनुसार बसें चलाना संभव नही है। आठ घंटे की ड्यूटी पूरी होने के बाद किसी भी चालक-परिचालक को ओवरटाइम ड्यूटी नहीं दी जा रही। चंडीगढ़ के एक ट्रिप में ही चालक-परिचालक का छह घंटे का ओवरटाइम बनता है। इसी का हिसाब लगाकर दो दिन चंडीगढ़ जाने वाले पेयर को तीन दिन की छुट्टी दी जाती है। लोकल रूटों पर भी पहले जितने ट्रिप लगाने में चालक-परिचालक का एक से दो घंटे का ओवरटाइम बनता है। इसको बंद करने के लिए एक ट्रिप ही बंद कर दिया गया है। जनहित में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाए सरकार :
सरकार द्वारा ओवरटाइम बंद किए जाने पर रोडवेज यूनियनों का तर्क है कि ऐसा करके सरकार ने जनहित में ही अजीब फैसला लिया है। एक तरफ तो विभाग में कर्मचारी कम है। दूसरी ओर सरकार ने ओवरटाइम बंद कर दिया। यदि सरकार ओवर टाइम ड्यूटी नही देती है तो उसे कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। बसों की संख्या के हिसाब से चालक-परिचालक के पेयर होने चाहिए। 20 फीसद पेयर रिजर्व में होने चाहिए। तभी सेवाएं सुचारू रह सकती हैं। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि रोडवेज की कर्मशाला में तो लंबे समय से भर्ती हुई ही नहीं हैं। सरकार को इस पर सोचना चाहिए। बहादुरगढ़ में जितनी बसें हैं, उसको देखते हुए यहां पर चालक-परिचालक ही 170 से ज्यादा होने चाहिए। वर्जन..
ओवर टाइम बंद करने के लिए कुछ बसों को बंद किया गया है और लोकल रूटों पर कुछ ट्रिप कम कर दिए गए हैं। रोजाना एक ही समय का ट्रिप बंद नही किया जाता।
--धर्मबीर ¨सह, डीआइ, रोडवेज