खल रही है मोगैंबो की कमी

हिन्दी सिनेमा जगत पर अपनी संवाद अदायगी के जरिये तीन दशको तक अमिट छाप छोड़ने वाले महान खलनायक और चरित्र अभिनेता अमरीश पुरी यह कथन मोगैंबो खुश हुआ आज भी लोगों के मन मष्तिस्क में गूंजता रहता है।

By Edited By: Publish:Wed, 02 May 2012 10:35 AM (IST) Updated:Wed, 02 May 2012 10:35 AM (IST)
खल रही है मोगैंबो की कमी

मुंबई। हिन्दी सिनेमा जगत पर अपनी संवाद अदायगी के जरिये तीन दशको तक अमिट छाप छोड़ने वाले महान खलनायक और चरित्र अभिनेता अमरीश पुरी यह कथन मोगैंबो खुश हुआ आज भी लोगों के मन मष्तिस्क में गूंजता रहता है। अमरीश पुरी का जन्म पंजाब के नौशेरा गांव में 22जून 1932 को हुआ था। लगभग 40 वर्ष की आयु में रंगमंच से फिल्मों के रुपहले पर्दे पर पहुंचे अमरीश पुरी ने करीब तीन दशक के सिने कै रियर में लगभग 250 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। फिल्म मिस्टर इंडिया में मोगैबो तो उनके नाम का पर्याय ही बन गया था। उनका संवाद मोगैंबो खुश हुआ आज भी बहुत लोकप्रिय है और गाहे बगाहे लोग बोलचाल में इसका इस्तेमाल करते है।

आज के दौर में अनेक कलाकार किसी अभिनय प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लेकर अभिनय जीवन की शुरुआत करते है लेकिन अमरीश पुरी अपने आप में चलते फिरते अभिनय प्रशिक्षण संस्थान थे। वह रंगमंच से भी जुड़े रहे। मुंबई के पृथ्वी आर्ट थियेटर की तो वह एक अलग पहचान बन गये थे। इस दौरान यदि अमरीश पुरी की पसंद के किरदार की बात करे तो उन्होने सबसे पहले अपना मनपसंद और न कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की वर्ष 1983 में प्रर्दशित कलात्मक फिल्म अ‌र्द्धसत्य में निभाया। इस फिल्म में उनके सामने कला फिल्मों के अजेय योद्धा ओमपुरी थे। बहरहाल धीरे-धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई वह फिल्म कुर्बानी ,नसीब, विधाता, हीरो, अंधा कानून, कुली, दुनिया, मेरी जंग, सल्तनत और जंगबाज जैसी कई सफल फिल्मों के जरिए दर्शको के बीच अपनी पहचान बनाते गये। इसी बीच हरमेश मल्होत्रा की वर्ष 1986 में प्रर्दशित सुपरहिट फिल्म नगीना में उन्होंने एक सपेरे की भूमिका निभाया जो लोगों को बहुत भाया। इच्छाधारी नाग को केन्द्र में रख कर बनी इस फिल्म में श्रीदेवी और उनका टकराव देखने लायक था। वर्ष 1987 में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। वर्ष 1987 में अपनी पिछली फिल्म मासूम की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो कि इनविजबल मैन के ऊपर आधारित थी। इस फिल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुये खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे। इस किरदार के लिये निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया। जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म में अमरीश पुरी द्वारा निभाए गए किरदार का नाम था मोगैबो का चरित्र इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फिल्म के पश्चात उनकी तुलना फिल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गयी। साथ ही इसी फिल्म में बोला गया उनका संवाद मोगैंबो खुश हुआ इतना लोकप्रिय हुआ कि सिने दर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाए। अधिकांश कार्यक्रमो में जनता की मांग पर वह अपना यह डॉयलाग पेश किया करते थे।

जहां भारतीय मूल के कलाकार को विदेशी फिल्मों में काम करने की जगह नही मिल पाती है वही अमरीश पुरी ने स्टीफन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म इंडियाना जोस एंड द टेपल आफ डोम में खलनायक के रूप में काली के भ1त का किरदार निभाया। इसके लिये उन्हे अंतराष्‌र्ट्रीय 2याति भी प्राप्त हुयी। इस फिल्म के पश्चात उन्हें हॉलीवुड सेकई प्रस्ताव मिले जिन्हें उन्होंने स्वीकार नहीं किया 1योकि उनका मानना था कि हॉलीवुड में भारतीय मूल के कलाकारों को नीचा दिखाया जाता है। यह बात जग जाहिर है कि जहां फिल्मी पर्दे पर खलनायक बहुत क्रूर हुआ करते है वही वास्तविक जीवन में बहुत सज्जन होते है। निजी जीवन में अत्यंत कोमल हृदय के स्वामी अमरीश पुरी ने गंगा जमुना सरस्वती, शहंशाह, दयावान, सूर्या, राम-लखन, त्रिदेव, जादूगर, बंटवारा, किशन-कन्हैया, घायल, आज का अर्जुन, सौदागर, अजूबा, फूल और कांटे, दीवाना, दामिनी, गर्दिश, करण अर्जुन जैसी सफल फिल्मों में अपना एक अलग समां बांधे रखा। अपने अभिनय में आई एकरूपता को बदलने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिये अमरीश पुरी ने अपनी भूमिकाओ में परिवर्तन भी किया। इस क्रम में वर्ष 1995 में प्रदर्शित यश चोपड़़ा की सुपरहिट फिल्म दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे मे उन्होंने फिल्म अभिनेत्री काजोल के पिता की रोबदार भूमिका निभाई। यह फिल्म बॉलीवुड के इतिहास में सबसे ज्यादा लगभग 12 वर्ष लगातार एक ही सिनेमा हाल में चलने वाली फिल्म बनी। इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये अमरीश पुरी को बेस्ट सर्पोटिंग एक्टर का फिल्म फेयर अर्वाड दिया गया।

इसके अलावा उन्हें मेरी जंग, घातक और विरासत फिल्मों में जानदार अभिनय के लिए फिल्म फेयर के अवार्ड से नवाजा गया। इन सबके साथ ही उन्होंने कोयला, परदेस, चाइनागेट, चाची 420, ताल, गदर, मुझसे शादी करोगी, एतराज, हलचल, किसना जैसी कई फिल्मों के जरिए सिने दर्शकों को अपनी ओर खींचे रखा। निर्देशक के साथ उनकी जोड़ी श्याम बेनेगल के अलावा मशहूर निर्माता निर्देशक सुभाष घई के साथ भी सराही गयी। सुभाष घई के साथ अमरीश पुरी ने विधाता, हीरो, क्रोधी, मेरी जंग, राम लखन, सौदागर, परदेस, ताल, यादें, एतराज और किसना जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया। जिनमें तो कई फिल्में ऐसी भी है जो आज भी सिने दर्शकों की पहली पसंद है इन फिल्मों में सौदागर, राम लखन, परदेस, ताल का नाम लिया जा सकता है। इसके अलावे गोविन्द निहलानी, बी सुभाष, यश चोपड़़ा और टी रामाराव की फिल्मों में भी उनका अहम योगदान रहा।

खलनायक की प्रतिभा के निखार में नायक की प्रतिभा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसी कारण महानायक अमिताभ बच्चन के साथ अमरीश पुरी के निभाये किरदार और अधिक प्रभावी रहे। उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ रेशमा और शेरा ईमान धर्म, दोस्ताना, नसीब, शक्ति, अंधा कानून, कुली, शहंशाह, गंगा जमुना सरस्वती, जादूगर, अजूबा, आज का अर्जुन, लाल बादशाह, हिन्दुस्तान की कसम, मोहब्बत, लक्ष्य और देव जैसी अनेक कामयाब फिल्मों में काम किया। अपने जोरदार अभिनय से सिने प्रेमियों के दिल पर तीन दशक तक राज करने वाले अमरीशपुरी ने 73 वर्ष की आयु में 12 जनवरी 2005 को इस दुनिया से सदा के लिये कूच कर गये।

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