ऐसे बदले हैं हालात: राजीव खंडेलवाल

छोटे पर्दे से रुपहले पर्दे की ओर कदम बढ़ाने वाले कलाकारों में शामिल राजीव खंडेलवाल की अगली फिल्म है राजश्री प्रोडक्शंस की 'सम्राट एंड कंपनी'। इत्तफाकन फिल्म को डायरेक्ट भी कौशिक घटक ने किया है, जो छोटे पर्दे पर 'क्योंकि सास भी बहू थी' जैसा इतिहास रचने वाले शो दे चुके हैं। राजी

By Edited By: Publish:Thu, 03 Apr 2014 11:31 AM (IST) Updated:Thu, 03 Apr 2014 11:31 AM (IST)
ऐसे बदले हैं हालात: राजीव खंडेलवाल

मुंबई। छोटे पर्दे से रुपहले पर्दे की ओर कदम बढ़ाने वाले कलाकारों में शामिल राजीव खंडेलवाल की अगली फिल्म है राजश्री प्रोडक्शंस की 'सम्राट एंड कंपनी'। इत्तफाकन फिल्म को डायरेक्ट भी कौशिक घटक ने किया है, जो छोटे पर्दे पर 'क्योंकि सास भी बहू थी' जैसा इतिहास रचने वाले शो दे चुके हैं। राजीव से बातचीत के अंश:

'सम्राट एंड कंपनी' का हिस्सा बनने की क्या वजहें रहीं?

पहली वजह तो फिल्म की जबर्दस्त पटकथा थी। दूसरी वजह जाहिर तौर राजश्री जैसा बैनर। राजश्री को मैं इसलिए भी पसंद करता हूं कि वहां फिल्में पैसा बनाने की फैक्ट्री नहीं है। वहां के लोग फिल्मों को जीते हैं। तीसरी और आखिरी वजह कौशिक घटक थे। इस फिल्म की कहानी उन्होंने चार साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार की है।

फिल्म में आप जासूस सम्राट के किरदार में है। क्या उसका मिजाज शरलॉक होम्स जैसा होगा?

जी हां। हमने एक खालिस जासूसी फिल्म बनाई है। हॉलीवुड में भी शुद्ध जासूसी फिल्म के नाम पर 'शरलॉक होम्स' नाम जेहन में आता है। 'सम्राट एंड कंपनी' उसी तेवर और कलेवर की फिल्म है। इस फिल्म का विषय 1870 में सर ऑर्थर कानन डायल की 'शरलॉक होम्स' से लिया है। शरलॉक मेरे ख्याल से हर डिटेक्टिव का आइडियल है। सम्राट उसी को ट्रिब्यूट है। उसके दिमाग में जो चलता है, वही उसकी जुबान पर होता है। तो हमने संवाद अदायगी के मोर्चे पर भी कुछ अलग देने की कोशिश की है।

फिल्म मर्डर मिस्ट्री है या फिर चेन ऑफ मर्डर देखने को मिलेंगे?

मर्डर मिस्ट्री है, पर यह एडवेंचर सस्पेंस पर आधारित है। फिल्म शिमला और मनाली में बेस्ड है। ढेर सारे ससपेक्ट पर आपको शक होता है, पर आखिर में माजरा कुछ और होता है..।

तो मनोज कुमार अभिनीत 'गुमराह' या बाकी सस्पेंस फिल्मों से यह कैसे अलग हुई?

इसमें एक जासूस की सोच व नजरिए से कहानी आगे बढ़ती है। पहले की फिल्मों में वैसा नहीं था। यहां हम जासूस की आंखों व कार्यप्रणाली से मर्डर मिस्ट्री सॉल्व होते हुए देखते हैं। लोगों को लगेगा कि सम्राट गलत जा रहा है, पर आखिर में वह सब को धता बताता है।

आपने 'आमिर' से फिल्मों का रूख किया था और अब सुशांत सिंह राजपूत और कपिल शर्मा ने फिल्मों की ओर कदम बढ़ाए हैं। पहले और अब में क्या फर्क देखते हैं?

पहले स्थितियां विकट थीं। हालांकि मैंने फिल्मों के लिए टीवी को पायदान नहीं बनाया था। मैं लगातार कुछ नया करने की खातिर फिल्मों की ओर मुड़ा था। 'आमिर' की कास्टिंग के दौरान अनुराग कश्यप से अनेक निर्माताओं ने यही कहा था कि राजीव की पॉपुलैरिटी टीवी के चलते घर-घर में है, मगर उसे फिल्मों में मत लो। अनुराग निर्माताओं की अंतर्विरोधी सोच पर हंसते थे। 'क्वीन' बनाने वाले विकास बहल उन दिनों यूटीवी स्पॉटब्वॉय में थे। वह भी अनुराग की तरह विजनरी थे। उन्होंने अनुराग पर भरोसा किया। 'आमिर' में काम के लिए मुझे सराहना मिली। इसके बावजूद कि वह फिल्म सीमित 700 प्रिंट्स के साथ रिलीज हुई। अब वैसा नहीं है। सुशांत और कपिल शर्मा जैसे टीवी कलाकारों की फिल्में भी 1000-1000 प्रिंट में रिलीज हो रही हैं या होंगी।

यानी आगे आने वाले वर्षों में स्टार कल्चर हिंदी फिल्म जगत से भी खत्म होगा?

निश्चित तौर पर। जो जगह हॉलीवुड में लियोनार्डो डिकैप्रियो, टॉम हैंक्स, जॉनी डेप की है, वैसी ही जगह हम जैसे कलाकारों के लिए बन रही है। अब पब्लिक सिर्फ फेस वैल्यू पर फिल्में नहीं देखेगी। वह हिसाब और जवाब मांग रही है।

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(अमित कर्ण)

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