'मद्रास केफै' की तैयारी में हूं

मुंबई। रॉकटार की सफलता केबाद नर्गिस फाखरी लंबेवक्त तक दर्शकों और आलोचकों के बीच चर्चा का विषय रहीं। कुछ ने 'रॉकस्टार' की सफलता में नर्गिस के योगदान को खारिज किया तो कुछ का कहना था कि फिल्म रणबीर कपूर की वजह से सफल हुई।

By Edited By: Publish:Thu, 25 Jul 2013 12:28 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jul 2013 01:36 PM (IST)
'मद्रास केफै' की तैयारी में हूं

मुंबई। रॉकटार की सफलता केबाद नर्गिस फाखरी लंबेवक्त तक दर्शकों और आलोचकों के बीच चर्चा का विषय रहीं। कुछ ने 'रॉकस्टार' की सफलता में नर्गिस के योगदान को खारिज किया तो कुछ का कहना था कि फिल्म रणबीर कपूर की वजह से सफल हुई। फिलहाल नर्गिस का पूरा ध्यान है निर्देशक शुजीत सरकार की फिल्म 'मद्रास कैफे' पर। उनसे बातचीत के अंश:

रॉकस्टार के बाद आप कई विज्ञापन फिल्मों में काम करती रहीं और अब फिर से फीचर फिल्म में नजर आएंगी। विज्ञापनों से कितना अलग होता है फिल्मों में काम करना?

-विज्ञापन में आपको सब कुछ बहुत कम समय तक होल्ड करना पड़ता है। मेन इश्यू लेंथ का होता है और संवाद भी अधिक नहीं होते। फुल लेंथ फीचर फिल्म में काम करना इतना आसान नहीं होता है। फिर मेरी तो यह दूसरी फिल्म है उस हिसाब से मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है। 'रॉकस्टार' में मेरे पास जितना करने को था इस फिल्म में उससे कहीं अधिक है। दोनों फिल्में अलग हैं।

हिंदी संवाद अदायगी से आप उतनी वाकिफ नहीं है। क्या कुछ कर रही हैं इस दिशा में?

-हां, ये बात सही है कि मेरी हिंदी उतनी अच्छी नहीं है। मैं सेट पर जब अन्य लोगों या यूनिट के लोगों को बात करते हुए देखती हूं तो उनको ऑब्जर्व करने की कोशिश करती हूं। हिंदी की कसौटी पर खरा उतरने में मुझे थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन विश्वास है कि मैं यह कर लूंगी। अगर मैंने हिंदी फिल्मों में काम करने का निर्णय लिया है और मुझसे नहीं हो पाया तो एक तरह का अपराध बोध महसूस करूंगी।

'मद्रास कैफे' क्या है?

-नाम पर मत जाएं, क्योंकि यह किसी

कॉफी हाउस की कहानी नहीं है। इस

फिल्म का शीर्षक पहले दूसरा था।

बाद में शुजीत की पहल और फिल्म के लेखकों सोमनाथ डे और शुभेंदु भट्टाचार्य की पहल पर इसे बदलकर 'मद्रास कैफे' किया गया। फिल्म में मद्रास कैफे की अहम भूमिका है। फिल्म के प्रोमो में मैं इंटेलिजेंस वालों को टिप ऑफ देती हूं कि अगला टारगेट मद्रास कैफे है। श्रीलंका का एक ऐसा पक्ष भी फिल्म में दिखाया गया है जो कभी आपने नहीं देखा होगा।

शूटिंग में कुछ मुश्किलें हुई?

-हमने फिल्म में एक पीरियड सेट किया है तो जाहिर सी बात है कि किरदार आसान नहीं होगा। फिल्म की शूटिंग लंबी चली और चेन्नई का मौसम भी बहुत गर्म था। तमाम मुश्किलों के बाद भी हमने काम पूरा किया। मैं जॉन अब्राहम का शुक्रिया अदा करना चाहूंगी क्योंकि वह नहीं होते तो मैं शायद यह किरदार नहीं निभा पाती।

जॉन एक बेहतरीन सह-अभिनेता है और उनके अंदर इस बात का प्राउड भी नहीं है कि वह फिल्म के प्रोड्यूसर हैं।

-फिल्म में आपकी क्या भूमिका है?

-मैं एक इंटनेशनल पत्रकार की भूमिका में हूं। इस किरदार को एक सच्ची घटना के आधार पर रचा गया है। हालांकि मेरे लेखकों ने उस किरदार के बारे में मुझे नहीं बताया। शुजीत ने मुझे कुछ न्यूज चैनलों का जिक्र करते हुए उन्हें देखने का सुझाव दिया था। मैंने शूटिंग के दौरान बीबीसी, सीएनन समेत व‌र्ल्ड मीडिया के कई चैनल देखें। इन न्यूज चैनलों के एंकर और रिपो‌र्ट्स की वजह से मुझे अपना किरदार निभाने में काफी मदद मिली।

[दुर्गेश सिंह]

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