अफसोस बस इतना सा रहा - दीपिका पादुकोण

‘ये जवानी है दीवानी’ के ढाई साल बाद इम्तियाज अली निर्देशित ‘तमाशा’ में दिखेगी रणबीर कपूर के साथ दीपिका पादुकोण की जुगलबंदी। इस फिल्म में क्या है उनकी भूमिका, बातचीत की अजय ब्रह्मात्मज ने

By Monika SharmaEdited By: Publish:Sun, 22 Nov 2015 11:41 AM (IST) Updated:Sun, 22 Nov 2015 12:22 PM (IST)
अफसोस बस इतना सा रहा - दीपिका पादुकोण

‘ये जवानी है दीवानी’ के ढाई साल बाद इम्तियाज अली निर्देशित ‘तमाशा’ में दिखेगी रणबीर कपूर के साथ दीपिका पादुकोण की जुगलबंदी। इस फिल्म में क्या है उनकी भूमिका, बातचीत की अजय ब्रह्मात्मज ने...

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‘तमाशा’ में अपने किरदार के बारे में कुछ बताएं?
इस फिल्म में मेरा किरदार है तारा। वो एक साधारण सी लड़की है। अपनी जिंदगी में मस्त। वो कामकाजी है। अच्छे परिवार से है। उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है। वो वेद से मिलती है तो उसे कुछ हो जाता है। ऐसा लगता है कि अंदर से कुछ खुल जाता है, वेद से मिलने के पहले वो कुछ अलग थी और मिलने के बाद कुछ और हो जाती है। मैं हमेशा रणबीर और इम्तियाज के साथ काम करना चाहती थी। मैंने दोनों के साथ अलग-अलग काम किया है। रहमान सर के साथ भी ये मेरी पहली फिल्म होगी।

संगीतकार से एक्टिंग में किस तरह की मदद मिलती है?
बहुत ज्यादा। खासकर ऐसी फिल्म में, जिसमें बैकग्राउंड स्कोर या म्यूजिक स्कोर का खास उपयोग किया गया है। हम लोगों ने इस फिल्म के गानों पर सीन की तरह परफॉर्म किया है। अगर फिल्म देखते वक्त गाना अच्छा लगे तो उसका श्रेय एक्टर को मिलता है लेकिन मेहनत तो संगीतकार की होती है। म्यूजिक सीन परफॉर्मेंस के प्रभाव को और बढ़ा देता है।

वेद से प्रभावित क्यों है तारा?
वो खुद तो वेद से प्रभावित होती ही है, साथ ही उस पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती है। हम सभी के साथ ऐसा होता है। हम अपनी जिंदगी में अनेक लोगों से मिलते हैं लेकिन कुछ का असर रह जाता है। पर्सनैलिटी, एनर्जी, पॉजीटिविटी प्रभावित कर देती है और हममें बदलाव आता है। तारा और वेद के साथ भी यही होता है। वो वेद की जिंदगी में कैटलिस्ट का काम करती है। वो उसमें जिंदगी का संचार करती है।

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वेद और तारा के जरिए क्या कहना चाह रहे हैं इम्तियाज अली?
हमारे समाज में युवक-युवतियों पर अनेक दबाव रहते हैं। आपको ये बनना है, वो करना है। ये हासिल करना है। हमेशा कोई न कोई रोल निभाने का दबाव रहता है। इतनी अपेक्षाएं रखी जाती हैं कि हम खुद से अपेक्षाएं रखने लगते हैं। हम दूसरों के अनुसार जीने लगते है। इस फिल्म में इम्तियाज अली का एक ही संदेश है ‘बी योर सेल्फ’। मैं तो फिल्म इंडस्ट्री से अनेक उदाहरण दे सकती हूं कि उन्होंने पढ़ाई कुछ और की, लेकिन अभी फिल्मों में अच्छा कर रहे हैं। वो सब कुछ छोड़कर आए और फिल्मों पर ध्यान दिया। कुछ लोग जिंदगी की एकरसता में फंस जाते हैं। वो हिम्मत नहीं कर पाते। कुछ अपनी जिंदगी का निरीक्षण करते हैं और वर्तमान से तौबा कर नई कोशिश करते हैं, यही ‘तमाशा’ है।

...फिर तो वेद और तारा की जिंदगी गुंथी हुई है?
पहले वेद तारा की जिंदगी में जोश भरता है। बताता है कि जिंदगी कितनी मजेदार हो सकती है। बाद में तारा उसे अहसास दिलाती है कि वो वास्तव में क्या है।

दोनों की मुलाकात कैसे होती है?
तारा एस्ट्रिक्स कॉमिक्स की फैन है। एस्ट्रिक्स कॉमिक्स इन कोर्सिका पढ़ने के बाद वो वहां जाने के लिए बेताब है। कोर्सिका में ही वेद से उसकी मुलाकात होती है।

क्या कभी तारा जैसी लड़की से आप मिली हैं या खुद को उसके करीब पाती हैं?
हां, मैं तारा जैसी लड़कियों से मिली हूं। मैं तो शुरू से ही अपने मन का काम कर रही हूं। मेरी जिंदगी में तारा जैसा मामला नहीं रहा है। मेरे मां-पिता ने कभी कोई दबाव नहीं डाला। मैं जो करना चाहती थी, उसी के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे पिता हमेशा कहते हैं कि जिंदगी में वही करो जो करना चाहती हो, जिसके लिए तुममें पैशन और एक्साइटमेंट हो।

आज के भारतीय समाज में आजाद खयाल लड़की होना और अपनी मर्जी का करियर चुनना कितना आसान है?
मेरी फ्रेंड्स सर्किल में ऐसी लड़कियां हैं जिन्होंने अच्छी-खासी पढ़ाई की। पढ़ाई में अव्वल रहीं और फिर दबाव में आकर शादी कर ली। वो जो करना चाहती थीं, नहीं कर सकीं।

...हासिल करने की जिद में आपने कुछ खोया भी है क्या?
नहीं, मैं खुश हूं। बस एक ही अफसोस है कि मैं जिस इंडस्ट्री में हूं, वो मुंबई में है। मेरे मां-पिता बंगलुरु में रहते हैं। एक ही इच्छा है कि सुबह आंखें खोलूं तो वे मेरे सामने हों। मां आकर जगाएं, पिता के साथ चाय पी लूं। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। पर, हम लोग साथ रहने की कोशिश करते हैं।

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