श्रीलंकन फिल्ममेकर को नहीं लुभा पाई मद्रास कैफ

श्रीलंकन माहौल पर आधारित सूजित सिरकार की फिल्म मद्रास कैफे एक सच्ची फिल्म नहीं है। फिल्म के किरदारों का जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। फिल्म जब तक दिल से नहीं निकलती है तब तक बनाई नहीं जा सकती है। मद्रास कैफे के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है। ये बातें श्रीलंकन फिल्ममेकर प्रसन्न विथानेज ने कही है।

By Edited By: Publish:Wed, 13 Nov 2013 12:51 PM (IST) Updated:Wed, 13 Nov 2013 01:19 PM (IST)
श्रीलंकन फिल्ममेकर को नहीं लुभा पाई मद्रास कैफ

मुंबई। श्रीलंकन माहौल पर आधारित सूजित सिरकार की फिल्म मद्रास कैफे एक सच्ची फिल्म नहीं है। फिल्म के किरदारों का जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। फिल्म जब तक दिल से नहीं निकलती है तब तक बनाई नहीं जा सकती है। मद्रास कैफे के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है। ये बातें श्रीलंकन फिल्ममेकर प्रसन्न विथानेज ने कही हैं।

पढ़ें : मद्रास कैफे देखने आए दर्शक

कोलकाता में आयोजित कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव के दौरान उन्होंने कहा कि भले ही इस फिल्म से भारत सरकार खुश है क्योंकि इसमें श्रीलंका के सिविल वॉर की सभी घटनाओं को बखूबी दिखाया गया है, भारत के प्रधानमंत्री के निधन की कहानी को भी दर्शाया गया है,फिर भी किरदारों को देखकर ऐसा लगता है जैसे वे बस इंसान हैं। फिल्म के किरदार दर्शकों के दिल को छूने में नाकामयाब रहे हैं।

उन्होंने कहा कि श्रीलंका में हिंदी फिल्मों का ज्यादा बाजार नहीं है, लेकिन बड़ी बजट की हिंदी फिल्में श्रीलंका में खूब चलती हैं। श्रीलंकन फिल्ममेकर बॉलीवुड की फिल्मों से बहुत कुछ सीखने की कोशिश करते हैं। भारत में फिल्मों को तकनीकी ढंग से बनाया जाता है। वे ज्यादा प्रोफेशनल होती हैं। श्रीलंका में फिल्में बनाने के लिए मामूली सी तकनीक भी मुहैया नहीं हो पाती है।

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