अपने संगीत के जरिए फैंस के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे पंचम दा

बॉलीवुड के मशहूर म्यूजिक कंपोजर आर.डी. बर्मन का आज 76वां जन्मदिन है। उनका पूरा नाम राहुल देव बर्मन था लेकिन उन्हें प्यार से पंचम दा बुलाया जाता था। उन्होंने अपने म्यूजिक से फिल्म जगत में अमिट छाप छोड़ी। महज नौ साल की उम्र में अपना पहला गाना 'ऐ मेरी टोपी

By Monika SharmaEdited By: Publish:Sat, 27 Jun 2015 12:48 PM (IST) Updated:Sat, 27 Jun 2015 02:30 PM (IST)
अपने संगीत के जरिए फैंस के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे पंचम दा

मुंबई। बॉलीवुड के मशहूर म्यूजिक कंपोजर आर.डी. बर्मन का आज 76वां जन्मदिन है। उनका पूरा नाम राहुल देव बर्मन था लेकिन उन्हें प्यार से पंचम दा बुलाया जाता था। उन्होंने अपने म्यूजिक से फिल्म जगत में अमिट छाप छोड़ी।

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महज नौ साल की उम्र में अपना पहला गाना 'ऐ मेरी टोपी पलट के आ' कंपोज करने वाले बर्मन के पिता सचिन देव बर्मन भी एक जाने-माने कंपोजर-सिंगर थे जबकि उनकी मां मीरा एक लिरिसिस्ट थीं।

उनका जन्म 27 जून 1939 को कोलकाता में हुआ था। बचपन से ही उनके पिता ने उन्हें संगीत की बारीकियां सिखानी शुरू कर दी थी। पंचम दा ने अपनी शिक्षा की शुरुआत कोलकाता के बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल से की।

इंडस्ट्री में लोग उन्हें प्यार से पंचम दा बुलाते थे। आर.डी. बर्मन का नाम पंचम कैसे पड़ा, इसे लेकर कई कहानियां हैं। एक कहानी तो ये है कि बचपन में जब वो रोया करते थे तो उनकी आवाज भारतीय म्यूजिकल स्केल पर पांचवे नोट (पा) की तरह निकलती थी। पंचम का मतलब पांच होता है।

नौ साल की उम्र में बर्मन ने अपना पहला गाना 'ऐ मेरी टोपी पलट के आ' कंपोज किया था। इस गाने का इस्तेमाल उनके पिता एस.डी. बर्मन ने फिल्म 'फंटूश' में किया था। 'सर जो तेरा चकराए' गाने को भी पंचम दा ने कंपोज किया था। हालांकि जब उनके पिता ने इस गाने का इस्तेमाल फिल्म 'प्यासा' (1957) में किया तो उन्होंने बेटे को इस गाने का क्रेडिट नहीं दिया था।

इंडस्ट्री में अपने शुरुआती दिनों में पंचम दा ने कई फिल्मों में म्यूजिक असिस्टेंट के तौर पर काम किया। इनमें 'चलती का नाम गाड़ी' (1958), 'कागज का फूल' (1959), 'बंदिनी' (1963) और 'गाइड' (1965) जैसे फिल्में शामिल हैं। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है।

इतना ही नहीं, उन्होंने गाने भी गाए। फिल्म 'शोले' का गाना ‘महबूबा-महबूबा’ पंचम दा ने ही गाया था। इस तरह से उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए।

आर.डी. बर्मन को पहली बार 1959 में आई फिल्म 'राज' के लिए बतौर म्यूजिक डायरेक्टर साइन किया गया था। बदकिस्मती से ये फिल्म कभी बन ही नहीं सकी।

बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरुआत साल 1961 में महमूद की प्रोडक्शन फिल्म 'छोटे नवाब' से की लेकिन इस फिल्म के जरिए वे कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। 1960 से लेकर 1990 के दशक के बीच आर.डी. बर्मन ने करीब 300 फिल्मों में गाने कंपोज किए।

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आर.डी. बर्मन ने 1966 में रीटा पटेल से शादी की थी लेकिन 1971 में दोनों ने तलाक ले लिया। 1980 में उन्होंने सिंगर आशा भोसले से शादी की। एक साथ मिलकर उन्होंने न जाने कितने हिट गाने रिकॉर्ड किए और कई लाइव परफोर्मेंस दी। हालांकि जिंदगी के आखिरी पलों में आशा भोसले उनके साथ नहीं थी। अपने अंतिम दिनों में वो वित्तीय समस्या से भी जूझते रहे।

पंचम ने आखिरी बार फिल्म '1942: ए लव स्टोरी' के लिए काम किया था। उन्होंने 4 जनवरी 1994 को मुंबई में आखिरी सांस ली।

पंचम के निधन के बाद उनके कुछ असली ट्रैक्स और रीमिक्स वर्जन का इस्तेमाल 'दिल विल प्यार व्यार'(2002), 'झंकार बीट्स' (2003) और 'खिलाड़ी 786' (2012) जैसी फिल्मों में किया गया।

भले ही बर्मन आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनका दिया संगीत, लोगों के जहन में हमेशा जिंदा रहेगा और उन्हें हमेशा यूहीं याद किया जाता रहेगा।

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