नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी: ‘मांझी’, ‘मंटो’ और ‘ठाकरे’ की तरह ही आसान नहीं रहा है नवाज़ का सफ़र

आज नवाज़ुद्दीन मुख्य धारा के अभिनेताओं में गिने जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अभी उनका श्रेष्ठ आना बाकी है!

By Hirendra JEdited By: Publish:Fri, 18 May 2018 11:08 PM (IST) Updated:Sun, 20 May 2018 06:34 AM (IST)
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी: ‘मांझी’, ‘मंटो’ और ‘ठाकरे’ की तरह ही आसान नहीं रहा है नवाज़ का सफ़र
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी: ‘मांझी’, ‘मंटो’ और ‘ठाकरे’ की तरह ही आसान नहीं रहा है नवाज़ का सफ़र

मुंबई। 19 मई को बॉलीवुड अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का बर्थडे होता है। इस साल नवाज़ अपना 44 वां बर्थडे सेलिब्रेट करेंगे। हाल ही में कान फ़िल्म महोत्सव में नंदिता दास के निर्देशन में बनी ‘मंटो’ दिखाई गयी। इस फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन ने मंटो का किरदार निभाया है। ‘मंटो’ के अलावा नवाज़ुद्दीन इन दिनों बाल साहब ठाकरे पर बन रही बायोपिक के लिए भी चर्चा में हैं, जिसमें नवाज़ुद्दीन बाल ठाकरे का किरदार निभा रहे हैं!

मंटो (सआदत हसन मंटो) दुनिया भर में अपनी लेखनी की वजह से जाने जाते हैं। मंटो ने जो लिखा वो उनके दौर का दस्तावेज़ है। मंटो के बारे में आप जानते हैं कि उन्हें अपनी लेखनी के कारण कई बार अदालत के चक्कर भी लगाने पड़े। उन पर कई तरह के आरोप लगे। बड़े पर्दे पर उनका किरदार निभाना किसी भी अभिनेता के लिए चुनौतीपूर्ण ही होगा। नंदिता दास की ‘मंटो’ में यह जिम्मेदारी नवाज़ निभा रहे हैं। नवाज़ुद्दीन ‘मंटो’ के अलावा महाराष्ट्र की राजनीति की धुरी रहे बाल साहब ठाकरे पर बन रही बायोपिक में भी बाल ठाकरे के किरदार में हैं। साल 2015 में आई फ़िल्म ‘मांझी: द माउन्टेन मेन’ भी नवाज़ के कैरियर में एक अहम पड़ाव है। अगर आपने यह फ़िल्म देखी है तो आपने देखा होगा कि कैसे दशरथ मांझी अपने प्यार को इंस्पिरेशन बनाकर एक पहाड़ तोड़कर रास्ता बना देता है। दशरथ मांझी के जूनून को देखकर आप सिर्फ यही कह सकते हैं कि- ‘शानदार, ज़बरदस्त, ज़िंदाबाद!’

इन फ़िल्मों का ज़िक्र इसलिए क्योंकि नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का सफ़र भी इन किरदारों की तरह ही आसान नहीं रहा है। उत्तरप्रदेश के मुजफ्फनगर जिले के एक छोटे से गांव बुढ़ाना में 19 मई 1974 को जन्में नवाज़ के पिता एक किसान थे। नवाज़ नौ भाई-बहनों में से एक हैं। नवाज़ का परिवार काफी बड़ा था और आमदनी सीमित थी तो ज़ाहिर है उनका बचपन काफी अभावों भरा रहा है। वहां से शुरू हुई उनकी यात्रा आज जिस मुकाम तक पहुंची है उस पर किसी को भी गर्व हो सकता है!

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की विवादित बायोग्राफी जो अभी पब्लिक के बीच नहीं आई है उसका नाम है- ‘एन ऑर्डिनरी लाइफ’। इस बायोग्राफी से कुछ पन्ने मिड डे डॉट कॉम ने हाल ही में प्रकाशित किये हैं। जिसमें नवाज़ुद्दीन ने मुंबई में अपने पहले प्यार से लेकर अपनी शादी तक के किस्से शेयर किए हैं। इस बायोग्राफी में नवाज़ुद्दीन ने खुल कर अपने रिलेशनशिप पर भी बात की है। बहरहाल, आज हम आपको बतायेंगे कि नवाज़ का सफ़र कैसे शुरू हुआ और उनकी लाइफ में क्या चुनौतियां रहीं!

मुजफ्फरनगर जिले के छोटे-से कस्बे बुढ़ाना से शुरूआती स्कूलिंग के बाद नवाज़ हरिद्वार पहुंचे जहां उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया। उसके बाद वो दिल्ली आ गए। दिल्ली में उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रवेश ले लिया और साल 1996 में वहां से ग्रेजुएट होकर निकले। उसके बाद नवाज़ 'साक्षी थिएटर ग्रुप' के साथ जुड़ गए जहां उन्हें मनोज वाजपेयी और सौरभ शुक्ला जैसे माहिर कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इसके बाद वो मुंबई चले आये और यहां से उनकी असली संघर्ष की दास्तान शुरू हुई।

नवाज़ बताते हैं कि मुंबई में संघर्ष का एक ऐसा समय था कि वह एक समय खाना खाते तो दूसरे वक़्त भूखा रहना होता। उन्होंने कई बार हार मान कर वापस लौट जाने की सोची। उनके साथ मुंबई आए सभी साथी अपने-अपने घरों को लौट गए, लेकिन वो डटे रहे। बकौल नवाज़- ''हताशा और मायूसी के उन दिनों में मुझे अपनी अम्मी की एक बात याद रही कि 12 साल में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं बेटा तू तो इंसान है।" 

मुंबई आने से पहले दिल्ली में नवाज़ुद्दीन को अपने खर्चे के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। बहुत ढूंढने के बाद उन्हें एक जगह सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी मिली। इस नौकरी को पाने के लिए भी नवाज़ को कुछेक हज़ार रुपये गारंटी के रूप में जमा कराने थे। जो उन्होंने किसी दोस्त से उधार लेकर भरे। वे शारीरिक रूप से काफी कमजोर थे, जब भी मौका मिलता वो ड्यूटी के दौरान बैठ जाया करते। एक दिन मालिक ने उन्हें बैठा हुआ देख लिया और उसी दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। नवाज़ कहते हैं कि उस कंपनी ने गारंटी के लिए जमा की गयी रकम भी उन्हें नहीं लौटाई।

मुंबई में वो लगातार रिजेक्ट होते रहे क्योंकि सबको हीरो चाहिए था और बकौल नवाज़ वो हीरो मेटेरियल नहीं थे। इसके बाद उन्‍होंने कई छोटी-बड़ी फ़िल्मों में छोटे-छोटे किरदार किये। लेकिन, असली पहचान उन्‍हें 'पीपली लाइव', 'क‍हानी', 'गैंग्‍स ऑफ वासेपुर', 'द लंच बॉक्‍स' जैसी फ़िल्मों से मिली। शाह रुख़ ख़ान के साथ 'रईस' में भी उनके अभिनय की खूब तारीफ हुई।

बहरहाल, क्या आप जानते हैं 1999 में आई फ़िल्म 'शूल' में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक वेटर की भूमिका में थे। फ़िल्म में एक्टर मनोज वाजपेयी अपनी पत्नी (रवीना टंडन) और बिटिया के साथ एक रेस्तरां में जाते हैं। वहीं मेनू कार्ड लेकर ऑर्डर लेने और भोजन परोसने भर का छोटा सा रोल निभाया था नवाज़ ने! इतना ही नहीं आमिर की फ़िल्म 'सरफ़रोश' में भी नवाज़ुद्दीन एक मुखबिर की छोटी सी भूमिका में दिखे थे। उस वक़्त शायद ही किसी ने सोचा था कि छोटे-मोटे किरदार करने वाला यह आर्टिस्ट किसी दिन लीड रोल भी करेगा। जैसा कि हमने 'फ्रीकी अली', 'मांझी: The Mountain Man' और 'बाबू मोशाय बन्दुकबाज़' में देखा।

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पिछले साल श्रीदेवी के साथ ‘मॉम’ में भी उनके किरदार की काफी सराहना हुई। आज नवाज़ुद्दीन मुख्य धारा के अभिनेताओं में गिने जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अभी उनका श्रेष्ठ आना बाकी है! नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के जन्मदिन पर जागरण डॉट कॉम के तमाम पाठकों की तरफ से उन्हें ढ़ेरों शुभकामनाएं!

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