Exclusive: सिखाने गए थे कविता, स्कूली बच्चों से ये सीख कर आ गए गुलज़ार

गुलज़ार ने बताया कि वो अपनी नज़्मों को पकाने में अब भी बहुत समय लेते हैं । कई बार दो-तीन महीने तो मामूली बात है। छपने जाती है तो एक साल तक लग जाता है।

By Manoj KhadilkarEdited By: Publish:Fri, 24 Mar 2017 01:16 PM (IST) Updated:Fri, 24 Mar 2017 01:21 PM (IST)
Exclusive: सिखाने गए थे कविता, स्कूली बच्चों से ये सीख कर आ गए गुलज़ार
Exclusive: सिखाने गए थे कविता, स्कूली बच्चों से ये सीख कर आ गए गुलज़ार

रुपेशकुमार गुप्ता, मुंबई। गुलज़ार वैसे तो मुंबई में एक एक्टिंग स्कूल में स्टूडेंट्स को कविता लिखने की कला सिखाने गए थे लेकिन बदले में बहुत कुछ सीख कर आ गए।

दरअसल गुलज़ार गुरूवार को सुभाष घई के एक्टिंग स्कूल में पहुंचे थे। इस मौके पर उनसे कविता लिखने की कला सिखने कई छात्र इकठ्ठा हुए थे। गुलज़ार ने भी छात्रों को निराश नहीं किया और कविता लेखन के कई गुर सिखाए। गुलज़ार ने न सिर्फ कविता लेखन की बल्कि कविता से जुड़े और भी आयमों पर छात्रों के साथ चर्चा की। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो गुलज़ार ने कहा " इस नई पीढ़ी के साथ नए शायर आ रहे हैं । मैंने उन्हें कहा कि आपको मेरी जरूरत होगी पर कहीं न कहीं मुझे आपकी ज्यादा जरूरत है क्योंकि मैं ऊपर की शाखाओं पर बैठा हूं। और खिलना चाहता हूं। उन छात्रों को नहीं पता कि मैं उनसे कितना सीखता जा रहा हूं। मैं सीख कर निकल गया यहाँ से और उन्हें पता भी नहीं चला।"

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गुलज़ार ने बताया कि उन्होंने छात्रों की प्रतिक्रिया से सीखा। ये भी जाना कि वो अपने को कविता में कैसे व्यक्त करते हैं। इसके अलावा यह भी सीखा कि अगर मिट्टी कच्ची रहे तो उससे मूर्ति बनाई जा सकती है। उसे पकाओं मत। पकाना है तो अपनी नज़्में पकाओं। वो अपनी नज़्मों को पकाने में अब भी बहुत समय लेते हैं । कई बार दो-तीन महीने तो मामूली बात है। छपने जाती है तो एक साल तक लग जाता है। गुलज़ार ने कहा कि कविता वही होती है जो आप कहना चाहते हैं । ऐसा नहीं कि आप कहना कुछ चाहते हैं और बन कुछ और गया हो । वह असफलता होती है।

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