बस गोलियों वाली शीशी दे दीजिए

हमने पिछले अंक में लोगों को बताया था कि कैसे हम कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता गए थे और वहां गुरुदत्त की हालत देखकर लोगों ने क्या रिएक्ट किया था? वे इस तरह के इंसान हैं, यह जानकर लोगों को दुख पहुंचा था। खैर.., अब बात आगे की, तो उस कार्यक्रम में

By Edited By: Publish:Thu, 09 May 2013 05:32 PM (IST) Updated:Thu, 09 May 2013 06:17 PM (IST)
बस गोलियों वाली शीशी दे दीजिए

नई दिल्ली। हमने पिछले अंक में लोगों को बताया था कि कैसे हम कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता गए थे और वहां गुरुदत्त की हालत देखकर लोगों ने क्या रिएक्ट किया था? वे इस तरह के इंसान हैं, यह जानकर लोगों को दुख पहुंचा था। खैर..,

अब बात आगे की, तो उस कार्यक्रम में मैंने और जॉनी वॉकर ने स्टेज पर आकर बात संभाली और पब्लिक को किसी तरह समझाया कि जगह-जगह जुबली फंक्शन होने की वजह से गुरुदत्त कई दिनों से सो नहीं पाए हैं। इसलिए थकान की वजह से उन्हें दवा दी गई है। इसलिए वे बोल नहीं पा रहे हैं। फिर हमने गाना गाकर और जॉनी वाकर ने कॉमेडी करके पब्लिक को बहलाया।

खर, यह मामला तो किसी तरह निपट गया, लेकिन मुझे गुरुदत्त की यह हालत देखकर बहुत बुरा लगा। मैं एक बार फिर सोच में पड़ गया। मैं वहीं खाना खाने के बाद सोने के लिए होटल आ गया। वहां आने के बाद मैंने सोना चाहा, तो नींद नहीं आ रही थी। उस पूरी रात मैं सो नहीं पाया और गुरुदत्त के बारे में ही सोचता रहा। उन्हीं के बारे में सोचते हुए मैंने पूरी रात गुजार दी। मैं इंतजार कर रहा था कि कब सुबह हो..।

वह सुबह भी आ गई, तो मैं तैयार हो गया और बिना कुछ सोचे-समझे गुरुदत्त के कमरे में जा पहुंचा। उस वक्त वे बिलकुल ठीक थे। मुझे सवेरे-सवेरे अपने पास देखकर उन्होंने पूछा, 'क्या हुआ रवि जी? रात में नींद नहीं आई क्या? सुबह ही आप मेरे पास आ गए?' मैंने उनसे कहा, 'आपसे मुझे कुछ जरूरी बात करनी है। कष्ट न हो तो आप मेरे कमरे में आ जाएं..।' उन्होंने कहा, 'क्यों नहीं, मैं अभी आ रहा हूं। आप चलिए..।'

उनकी बात सुनकर मैं वहां से अपने कमरे में आ गया। जब तक वे मेरे कमरे में आते, तब तक मैंने फोन करके अपने कमरे में रहमान साहब, जॉनी वॉकर और शकील बदायूंनी साहब को बुला लिया। ये लोग गुरुदत्त के आने से पहले मेरे कमरे में आ गए थे। फिर गुरुदत्त आए। उन्होंने सोफे पर बैठते हुए कहा, 'हां, बताइए रवि साहब, सुबह-सुबह क्या बात हो गई? तो मैंने उनसे कहा, 'आपकी फिल्म 'चौदहवीं का चांद' सुपर-डुपर हिट हुई है। इसका म्यूजिक भी काफी हिट हुआ है, लेकिन आपने मुझे इसके एवज में कुछ भी नहीं दिया?' वे मुस्करा कर बोले, 'कहिए, क्या चाहिए आपको? आप जो मांगेंगे, मैं वही आपको दूंगा..'। मैंने उनसे कहा, 'आप अपनी बात से मुकरेंगे तो नहीं?' उन्होंने कहा, 'मेरा नाम गुरुदत्त है और गुरुदत्त ने यही काम कभी नहीं किया।' उन्होंने आगे कहा, 'आप जो भी रकम मांगेंगे, वही आपको मिलेगी। आप यह क्यों नहीं समझते कि आपने गुरुदत्त फिल्म्स को बचाया है।'

गुरुदत्त ने यह बात कहते हुए अपनी जेब में हाथ डाला, तो हम सभी यह सोचने लगे कि आखिर वे क्या निकाल रहे हैं? उन्होंने जेब से चेकबुक निकाला और मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा, 'आप इस पर जितनी रकम भरना चाहें, भर लें। मैं आपके इस संगीत की कोई कीमत नहीं लगा सकता..।'

मैं चाहता तो अपनी उस समय की फीस से तिगुनी यानी पचास हजार रुपए चेक में भर सकता था, लेकिन मुझे तो कुछ और ही सूझ रहा था। मैं तो चाह रहा था कि गुरुदत्त जैसे मेकर, जिसकी कीमत लगाई ही नहीं जा सकती, को कैसे इस भंवर जाल यानी नशे की लत से निकाला जाए? गुरुदत्त भी यह कहते हुए भावुक हो गए थे। वे वहां बठे सभी लोगों को देखने लगे और उन्हें देखकर हम सभी को ऐसा लगा जैसे वे मुझसे अपनी बात बताने को कह रहे हों।

मैंने भी वहां उपस्थित लोगों को देखते हुए कहा, 'देख लीजिए, आपकी इस बात के गवाह ये सभी लोग हैं?' उनका जवाब हुआ, 'आप मांगिए या फिर चेक पर अमाउंट भर लीजिए..।' फिर मैंने कहा, 'मुझे न तो आपसे कोई रुपया चाहिए और न ही ऐसा कुछ..। बस आप मुझे नींद की गोलियों वाली वह शीशी दे दीजिए, जिसे आप रोज खाते हैं।'

यह वाक्य कहते हुए मेरी आंख में भावुकता वश आंसू आ गए थे। गुरुदत्त मेरी बात सुनकर खामोश हो गए। वे सिर झुकाकर सोचने लगे। फिर कुछ क्षण सोचने के बाद उन्होंने पहले वहां उपस्थित सभी लोगों को देखा, फिर मेरी ओर देखकर बोले, 'अरे आप तो कुछ मांग भी रहे हैं और रो भी रहे हैं?' मैंने कहा, 'जब मैंने सुना कि आप नींद की गोलियां खाते हैं, मुझे तभी से बहुत खराब लग रहा है। पिछली रात अपनी आंखों से आपकी हालत देखकर मुझे बहुत दुख पहुंचा है। आप मुझसे वादा करिए कि अब नींद की गोलियां कभी नहीं खाएंगे?' गुरुदत्त और गंभीर हो गए। उन्होंने सिर झुकाए हुए ही कहा, 'ठीक है, मैं वादा करता हूं, पर क्या आप मेरा साथ देंगे?' मैंने कहा, 'क्या चाहते हैं आप?' उन्होंने कुछ नहीं कहा। वे सोचते हुए खामोश रहे, तो मैंने उनकी बात समझते हुए कहा, 'अगर गोलियों की जगह आप ह्विस्की वगैरह पीना चाहें, तो शाम को मैं रोजाना आपके साथ पीने आ जाऊंगा। मैं इस काम में आपका साथ दे सकता हूं।'

क्रमश:

इस अंक के सहयोगी : मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज, अमित कर्ण, दुर्गेश सिंह, दिल्ली से रतन, स्मिता, पंजाब से वंदना वालिया बाली, पटना से संजीव कुमार आलोक

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