जब एक ही साल में वोटरों ने दिग्गजों को भेजा पवेलियन

वोटर के मन की कोई नहीं जानता। नतीजों के बाद ही पता चलता है कि वोटरों ने किसे सिर आंखों पर बिठाया और किसे फर्श पर पटक दिया।

By Ashu SinghEdited By: Publish:Thu, 14 Mar 2019 02:25 PM (IST) Updated:Thu, 14 Mar 2019 02:25 PM (IST)
जब एक ही साल में वोटरों ने दिग्गजों को भेजा पवेलियन
जब एक ही साल में वोटरों ने दिग्गजों को भेजा पवेलियन
मेरठ, जेएनएन। संसदीय पिच पर लंबी पारी खेलने वालों की कमी नहीं, किंतु एक ऐसा भी दौर आया जब पश्चिमी उप्र ने एक ही साल में तमाम दिग्गजों को क्लीन बोल्ड कर पवेलियन भेज दिया। 1998 के बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में वोटरों ने जबरदस्त प्रतिक्रिया दी। वोटरों ने तकरीबन सभी नए चेहरों को चुनकर संसद भेजा। सियासी पंडितों की मानें तो ऐसी प्रतिक्रिया मतदाताओं ने फिर कभी नहीं दी, जबकि इस बीच चुनावी समर में कोई बड़ा गठबंधन भी नहीं था।
बदल चुका था मिजाज
यह वो दौर था, जब केंद्रीय सत्ता गठबंधन के सहारे चल रही थी। 1996 में अटल सरकार गिरने के बाद गठबंधन की सरकार बनी। 1998 में चुनाव हुए तो लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में भाजपा को सबसे बड़े दल के रूप में चुना। पश्चिमी उप्र में तमाम सीटें भाजपा की झोली में गईं। 13 माह में अटल सरकार गिरते ही पश्चिम के मतदाताओं में बड़ी प्रतिक्रिया नजर आई थी। मतदाताओं ने तमाम सांसदों का पत्ता काट दिया। भले ही 1999 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, लेकिन इस बार पश्चिमी उप्र का राजनीतिक मिजाज बदल चुका था।
412 दिन में ही दिल से उतरे
भाजपाई गणित के मुताबिक बीस साल पहले पश्चिमी उप्र में दस लोकसभा सीटें थीं। 1996 और 1999 में सहारनपुर से भाजपा के नकली सिंह लगातार दो बार जीते, जबकि मतदाताओं ने 1999 में बसपा के मंसूर अली खान को चुनकर संसद भेजा। 1998 में कैराना में भाजपा के वीरेंद्र वर्मा जीते, जबकि अगले साल वोटरों ने भगवा प्रत्याशी के बजाय रालोद के अमीर आलम खान को चुना। राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा की सियासत प्रदेशभर में उफन गई।
हैट्रिक पूरी की
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी सोहनवीर सिंह ने 1991, 1996 व 1998 का चुनाव जीतकर हैट्रिक पूरी की, जबकि 1999 में कांग्रेस के एस. सईदुज्जमां की जीत से भाजपा का सिलसिला टूटा। बिजनौर में भी वोटरों ने मन बदला। 1998 में सांसद बनीं सपा की ओमवती के स्थान पर वोटरों ने 1999 में भाजपा के शीशराम सिंह रवि को संसद भेज दिया।
अजित सिंह को हराया
उधर, बागपत में भी मतदाता अपने निर्णय पर पछताता नजर आया। 1998 में बागपत के मतदाताओं ने दिग्गज नेता अजित सिंह को हराते हुए भाजपा के सोमपाल शास्त्री को अपना सांसद चुना। किंतु अगले ही चुनाव में यानी 1999 में वोटरों ने फिर से ‘छोटे चौधरी’ को अपना सांसद बना लिया।
चेतन भी क्लीन बोल्ड
मुरादाबाद के भी वोटरों ने 1996 और 1998 में सांसद चुने गए सपा के शफीकुर्रहमान बर्क को 1999 में लोकतांत्रिक कांग्रेस के चंद्रविजय सिंह के हाथों शिकस्त दिलवा दी। भले ही वोटरों ने बर्क को 2004 में फिर चुन लिया। रामपुर में भाजपा प्रत्याशी मुख्तार अब्बास नकवी ने 1998 में बड़ी जीत दर्ज की, जहां अगले ही साल मतदाताओं ने मन बदलते हुए उनके स्थान पर कांग्रेस की नूर बानो को फिर से सांसद बनाया। यह सिलसिला अमरोहा में भी नजर आया। पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर चेतन चौहान भाजपा के टिकट पर 1998 में सांसद चुने गए, जहां अगले ही साल मतदाताओं ने बसपा के राशिद अलवी को जिताकर संसद भेजा। 1991 से लगातार तीन बार मेरठ की सीट पर जीत दर्ज कर चुकी भाजपा 1999 में कांग्रेस के हाथों शिकस्त खा बैठी। मतदाताओं ने भाजपा के अमरपाल सिंह के स्थान पर कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना को चुना। आगरा में भी भाजपा के 1991 से लगातार जीत रहे भगवान शंकर रावत को 1999 में सपा के राजबब्बर से शिकस्त खानी पड़ी।
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