Election 2024: 'अस्तित्व' बचाने की जंग लड़ेगी कांग्रेस, सपा से गठबंधन के सहारे इस बार नैया पार लगाने की जुगत

देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस तीन दशक पहले उत्तर प्रदेश से खिसके जनाधार को तलाशने में जुटा है। चुनाव दर चुनाव कांग्रेस प्रयोगों के बाद उसके सामने अस्तित्व बचाने की जंग है। कांग्रेस की एक नजर मुस्लिम वोट बैंक पर भी टिकी है। ऐसे में सपा से गठबंधन कर कांग्रेस पिछड़ों की ताकत जुटाने के प्रयास में भी है।

By Jagran NewsEdited By: Mohd Faisal Publish:Mon, 04 Mar 2024 04:15 AM (IST) Updated:Mon, 04 Mar 2024 08:07 AM (IST)
Election 2024: 'अस्तित्व' बचाने की जंग लड़ेगी कांग्रेस, सपा से गठबंधन के सहारे इस बार नैया पार लगाने की जुगत
'अस्तित्व' बचाने की जंग लड़ेगी कांग्रेस, सपा से गठबंधन के सहारे इस बार नैया पार लगाने की जुगत (फाइल फोटो)

आलोक मिश्र, लखनऊ। देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस तीन दशक पहले उत्तर प्रदेश से 'खिसके' जनाधार को तलाशने में जुटा है। चुनाव दर चुनाव कांग्रेस प्रयोगों के बाद भले ही खोई 'ताकत' को फिर न जुटा पाई हो पर इस बार तो उसके सामने 'अस्तित्व' बचाने की जंग है। अपनी परंपरागत सीट अमेठी को वापस हासिल करने के साथ ही रायबरेली में कितनी बड़ी जीत होगी? यह सवाल ही फिलवक्त कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जो पार्टी के हर 'बड़े' को भीतर ही भीतर मथ भी रहा है।

दो युवाओं की जोड़ी का किया था 'प्रयोग'

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में सपा के साथ मिलाकर एक 'प्रयोग' किया था। दो युवाओं की जोड़ी। यानी राहुल गांधी व अखिलेश यादव मिलकर चुनाव मैदान में उतरे थे। हालांकि, तब यह जोड़ी कोई करिश्मा नहीं कर सकी थी। अबकी चुनावी 'अखाड़ा' बदला है पर कांग्रेस का 'दांव' पुराना है। कांग्रेस ने इस बार लोकसभा चुनाव से पहले अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष और अविनाश पांडेय को प्रभारी नियुक्त कर सवर्ण वर्ग को बड़ा संदेश देने का प्रयास जरूर किया है।

मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस की नजर

कांग्रेस की एक नजर मुस्लिम वोट बैंक पर भी टिकी है। ऐसे में सपा से गठबंधन कर कांग्रेस 'पिछड़ों' की ताकत जुटाने के प्रयास में भी है। अब देखना यह है कि गठबंधन की पुरानी कश्ती पर सवार कांग्रेस इस बार उसके हिस्से आई सीटों पर अपनी उम्मीदवारों की बिसात कैसे बिछाती है। कांग्रेस को लंबी खींचतान के बाद विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए का हिस्सा बनी सपा ने 17 सीटें दी हैं। जिस तरह दोनों दलों के बीच मेल हुआ, उससे यह भी साफ है कि सपा अपने सहयोगी दल पर दबाव बनाने में कामयाब रही। परिस्थितियां कुछ भी रही हों पर कांग्रेस के हिस्से उसकी दो परंपरागत सीटों के अलावा 15 ऐसी सीटें आई हैं, जिनमें जीत के लिए उसे नई समीकरण से हिस्से आ रहे जातीय गणित पर निर्भर रहना पड़ सकता है।

गिरते ग्राफ ने गिराया हौसला भी

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 7.53 रहा था। तब कांग्रेस केवल दो सीट अमेठी व रायबरेली ही जीत सकी थी। 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो अमेठी सीट से राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी केवल रायबरेली की एक सीट जीत सकी थी। कांग्रेस के हिस्से लगभग 6.36 प्रतिशत वोट आए थे। इससे पूर्व कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में रिकार्ड 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि 2004 लोकसभा चुनाव में नौ सीटों पर उसकी विजय हुई थी और पार्टी को लगभग 12 प्रतिशत वोट मिला था।

2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस के सभी 399 प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 21,51,234 वोट मिले थे, जो कि कुल पड़े मतों का 2.33 प्रतिशत था। इससे पूर्व वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिन्हें कुल 54,16,540 वोट मिले थे। कांग्रेस के हिस्से 6.25 प्रतिशत वोट आए थे। साफ है कि कांग्रेस को अपना जनाधार बचाने के लिए कड़ी लड़ाई लड़नी है।

इस बार हिस्से आईं सीटें

सपा से गठबंधन के चलते कांग्रेस इस बार अमेठी व रायबरेली के अलावा कानपुर नगर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, इलाहाबाद, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी व देवरिया।

chat bot
आपका साथी