जानिए केसीआर के खिलाफ कितना प्रभावी है कांग्रेस-टीडीपी-लेफ्ट का गठबंधन

कल्वकुंतल चंद्रशेखर राव ने दोबारा सत्ता में लौटने की उम्मीदों के साथ जब तेलंगाना में जल्दी चुनाव के लिए इस्तीफा दिया, तो कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं थी। केसीआर के विधानसभा भंग करने चुनावी इतिहास में एक अप्रत्याशित फैसला हुआ।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Fri, 26 Oct 2018 07:49 PM (IST) Updated:Fri, 26 Oct 2018 07:49 PM (IST)
जानिए केसीआर के खिलाफ कितना प्रभावी है कांग्रेस-टीडीपी-लेफ्ट का गठबंधन
जानिए केसीआर के खिलाफ कितना प्रभावी है कांग्रेस-टीडीपी-लेफ्ट का गठबंधन

नई दिल्ली, जेएनएन। कल्वकुंतल चंद्रशेखर राव ने दोबारा सत्ता में लौटने की उम्मीदों के साथ जब तेलंगाना में जल्दी चुनाव के लिए इस्तीफा दिया, तो उनके सामने कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं थी। लेकिन, केसीआर के विधानसभा भंग करने के साथ ही राज्य के चुनावी इतिहास में एक अप्रत्याशित फैसला हुआ।

टीआरएस के खिलाफ चुनावी जंग में कांग्रेस और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने हाथ मिलाने का फैसला किया। इन दोनों पार्टियों को लेफ्ट का भी साथ मिला है। तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के 35 सालों के इतिहास में यह पहला मौका है, जब वह किसी राज्य में कांग्रेस के साथ हाथ मिला रही है।

तेलंगाना का सियासी समीकरण

2014 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 119 सीटों में से केसीआर की पार्टी टीआरएस को 90 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस को 13, ओवैसी की पार्टी AIMIM को 7, भाजपा को 5, टीडीपी को 3 और सीपीआईएम को 1 सीट मिली थी। इन बार भी इन्हीं पार्टियों के बीच मुकाबला है।

इन सबके बीच अगर कांग्रेस-टीडीपी और लेफ्ट के गठबंधन की बात करें तो टीआरएस के खिलाफ तीन दलों का साथ आना काम कर सकता है। दिलचस्प ये है कि चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के पास एक बड़ा वोट प्रतिशत तेलंगाना का है। 2014 के चुनावों में टीडीपी 33 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी, जबकि उसके हिस्से सिर्फ 3 सीटें आई थीं। वहीं कांग्रेस 55 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही और उसे 13 सीटें मिलीं। लेफ्ट की बात करें, तो उनके पास एक निश्चित वोट बैंक हैं और उसके 7 प्रत्याशी चौथे नंबर थे।

केसीआर के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के गठबंधन की चुनौती तो है ही, लेकिन उसे सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना है। 2014 के चुनावों में केसीआर ने भारी बहुमत के साथ सत्ता पर कब्जा जमाया था और 119 में से 90 सीटें जीत ली थीं, लेकिन तीन पार्टियों के गठबंधन के सामने ये नतीजा दोहरा पाना टीआरएस के लिए आसान नहीं होगा।

हालांकि केसीआर का असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन है और दोनों पार्टियों की नजर मुस्लिम वोटरों पर है। ओवैसी की पार्टी का आधार हैदराबाद और आसपास के इलाकों में काफी है। पिछले चुनावों में एआईएमआईएम को 7 सीटें मिली थीं, जबकि पार्टी दो सीटों पर दूसरे नंबर थी।

वैसे केसीआर भले ही राष्ट्रीय स्तर पर एक समय एनडीए के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए थर्ड फ्रंट की बात कर चुके हों, लेकिन समझा जाता है कि अगर राज्य विधानसभा चुनाव में टीआरएस के पक्ष में आंकड़े कम पड़े तो वे बीजेपी से हाथ मिलाने में हिचकेंगे नहीं। केसीआर एनडीए का अहम हिस्सा हैं। लेकिन तेलंगाना में बीजेपी और टीआरएस अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं।

बता दें कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव ने विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने से नौ माह पहले ही पिछले महीने उसे भंग कर दिया था। चुनाव आयोग ने तेलंगाना सहित पांच राज्य विधानसभाओं के चुनाव 12 नवंबर से सात दिसंबर के बीच कराने की घोषणा की है।

7 दिसंबर को तेलंगाना विधानसभा के लिए वोट डाले जाएंगे। इनमें से कम से कम तीन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच जबरदस्त टक्कर की स्थिति है। सभी राज्यों में मतगणना 11 दिसंबर को पूरी हो जाएगी।

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