दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी वाले देश को तरक्की की तेज रफ्तार देने में युवाओं का ‘वोट’ निर्णायक

लोकसभा चुनाव के लिए उलटी गिनती शुरू होने के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व की तैयारियां जोर पकड़ने लगी हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 25 Mar 2019 02:43 PM (IST) Updated:Mon, 25 Mar 2019 02:49 PM (IST)
दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी वाले देश को तरक्की की तेज रफ्तार देने में युवाओं का ‘वोट’ निर्णायक
दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी वाले देश को तरक्की की तेज रफ्तार देने में युवाओं का ‘वोट’ निर्णायक

[अरुण श्रीवास्तव]। पिछले कई सालों से देश और दुनियाभर में यह माना जा रहा है कि भारत युवाओं का देश है यानी दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी भारत में ही निवास करती है। यूरोप, अमेरिका और चीन-जापान सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में जहां बूढ़ी आबादी का प्रतिशत बढ़ रहा है, वहीं हमारे देश में युवाओं का अधिक अनुपात अन्य देशों के लिए ईर्ष्या का कारण बन रहा है। यह और बात है कि इस युवा-शक्ति पर इतराने के अलावा हम इसका सदुपयोग देश की तरक्की को रफ्तार देने में उतना नहीं कर सके हैं, जितना होना चाहिए था। इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं। पांच साल बाद जब सत्रहवीं लोकसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में इस युवा-शक्ति को अपने वोट की ताकत समझने की सबसे ज्यादा जरूरत है। आप यह न समझें कि आपके एक वोट का क्या वजूद है? एक-एक करके करोड़ों युवाओं के मत न सिर्फ निर्णायक होते हैं, बल्कि देश को मजबूती की ओर ले जाने वाले बदलाव के भी वाहक होते हैं।

जब किसी देश का युवा आत्मनिर्भर और मजबूत होता है, तभी वह भरपूर राष्ट्रप्रेम की भावना के साथ देश को मजबूती और तरक्की की ओर बढ़ाने में कहीं अधिक दिलचस्पी लेता है। ऐसे में आज युवाओं का सबसे अधिक सरोकार बेहतर समयानुकूल उन्नत शिक्षा और समुचित रोजगार ही है, जो भारत जैसी दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले देश के लिए सबसे ज्वलंत मुद्दा है। इस बार वोट देने वाले युवाओं को खुद और देश की मजबूती से जुड़े मुद्दों पर गौर करते हुए अपना वोट देने का फैसला करना चाहिए।

स्किल पर हो जोर

महानगरों-शहरों से लेकर गांवों-कस्बों तक के युवाओं को सशक्त तभी बनाया जा सकता है, जब उन्हें स्किल्ड बनाकर नौकरी या स्वरोजगार के लिए सक्षम बनाया जा सके। हालांकि कौशल विकास को लेकर पहले से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन उनसे रोजगार बढ़ाने में बहुत अधिक मदद नहीं मिल सकी है। इसके लिए उद्योग जगत की आवश्यकताओं को समझकर उनकी अपेक्षा के अनुरूप वर्कफोर्स को समुचित प्रशिक्षण देने पर ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ ध्यान केंद्रित करने वाली सरकार ही ऐसा कदम उठा सकती है। इस तरह की गतिविधियों की लगातार निगरानी के लिए भी तंत्र को मजबूत करना होगा, ताकि वह किसी भी तरह के भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त रहे और युवाओं को शत-प्रतिशत अपेक्षित प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा सके।

कृषि से जुड़े रोजगार

आजादी के बाद से हमारे देश में गांवों से शहरों की ओर पलायन होता रहा है। रोजगार, शिक्षा और सुविधा के लिए दो-तीन दशकों से यह पलायन कहीं अधिक तेज हुआ है। सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? सिर्फ रोजगार और सुविधाओं की कमी के कारण ही न। हम क्यों नहीं अपने गांवों-कस्बों और इससे ज्यादा खेती का कायाकल्प कर सकते हैं? गंभीरता से सोचें, तो जवाब यही मिलेगा कि हम जरूर ऐसा कर सकते हैं, पर इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अच्छी नीयत और सोच की। किसानों को बदहाली से निजात दिलाने और खुशहाली लाने के लिए हम उत्पादकता बढ़ाने की बात लगातार कर रहे हैं। उर्वरता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए खेती के आधुनिक तरीकों को अपनाने की ज्यादा जरूरत है। इसके तहत आधुनिक उपकरणों को अधिक से अधिक बढ़ाने पर बल देना होगा।

देखा जाए तो इन उपकरणों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी, जिन्हें सरकार की देख-रेख में चलाए जाने वाले स्किल सेंटर्स पर ट्रेनिंग देकर तैयार किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर इस तरह के रोजगार स्थानीय युवाओं के लिए पैदा किए जा सकते हैं। इससे पहला और सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अपने घर-परिवार के पास ही रोजगार उपलब्ध होने से युवाओं के शहरों की ओर पलायन करने की नौबत नहीं आएगी। दूसरा फायदा यह होगा कि आधुनिक तरीके और यंत्र इस्तेमाल करने से उत्पादकता तेजी से बढ़ेगी। इससे उनकी इनकम बढ़ेगी और खुशहाली आएगी।

इंडस्ट्री को करें प्रोत्साहित

अब समय आ गया है कि इंडस्ट्री की जरूरतों को समझते हुए उन्हें पूरा करने की दिशा में हर संभव कदम उठाए जाएं। इसके लिए करों और लाइसेंस में उदार होने के अलावा इंडस्ट्री को इस बात के लिए प्रेरित करना होगा कि वह खुद अपनी जरूरतों के लिए कॉलेजों-विश्वविद्यालयों से टाई-अप करते हुए उनके परिसरों में अपनी यूनिट लगाकर या फिर अपने परिसर में स्टूडेंट्स को बुलाकर अपने एक्सपट्र्स की देखरेख में नियमित आधार पर उन्हें प्रशिक्षिण दें। इससे न सिर्फ पासआउट होने वाले स्टूडेंट्स को गारंटी के साथ जॉब मिलेगी, बल्कि इंडस्ट्री को भी स्किल्ड वर्कफोर्स की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

शिक्षण संस्थाओं की निगरानी

हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि तमाम तकनीकी शिक्षण संस्थानों से पास होकर निकलने वाले युवाओं को रोजगार न मिलने के कारण उनके यहां सेशन जीरो होता जा रहा है। पर्याप्त संख्या में स्टूडेंट्स न मिल पाने के कारण सैकड़ों की संख्या में कॉलेजों के बंद होने की नौबत आ गई है। इससे बचने का उपाय सिर्फ यही है कि एआइसीटीई, यूजीसी व अन्य नियामक संस्थानों द्वारा इन शिक्षण संस्थानों की कड़ी मॉनीटरिंग करते हुए इन्हें शिक्षा की दुकान बनने से रोका जाए और इंडस्ट्री के साथ टाई-अप के लिए उन पर दबाव बनाया जाए।

बचें सोशल मीडिया के कुप्रभाव से

आज दुनिया में सबसे ज्यादा यानी करीब 30 करोड़ भारतीय युवा फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे हैं। साढ़े तीन करोड़ भारतीय ट्विटर पर हैं, जबकि साढ़े सात करोड़ भारतीय यूजर्स (दुनिया में सातवें स्थान पर) इंस्टाग्राम पर हैं। इतना ही नहीं, करीब 36 करोड़ भारतीय वाट्सएप का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कुल भारतीय आबादी का 28 फीसदी है। ऐसे में इस पर फेक न्यूज और वीडियो भी खूब वायरल हो रहे हैं। चुनाव के मौके पर इसमें और तेजी आ रही है। ऐसे में सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले युवाओं को वायरल खबरों और वीडियो के प्रति सचेत रहने और उनके कुप्रभाव से बचने की भी सबसे ज्यादा जरूरत है।

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