विरासत बचाने की चुनौती, 40 साल से बरकरार है नांदेड़ में चह्वाण परिवार का वर्चस्व

Lok Sabha Election 2019 राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अशोक चह्वाण के सामने इस बार अपनी विरासत को बचाकर रखने की चुनौती है।

By BabitaEdited By: Publish:Wed, 17 Apr 2019 09:33 AM (IST) Updated:Wed, 17 Apr 2019 09:33 AM (IST)
विरासत बचाने की चुनौती, 40 साल से बरकरार है नांदेड़ में चह्वाण परिवार का वर्चस्व
विरासत बचाने की चुनौती, 40 साल से बरकरार है नांदेड़ में चह्वाण परिवार का वर्चस्व

नांदेड़, ओमप्रकाश तिवारी। मराठवाड़ा के नांदेड़ क्षेत्र पर चह्वाण परिवार का वर्चस्व करीब 40 साल से बरकरार है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अशोक चह्वाण के सामने इस बार चुनौती है इस विरासत को बचाकर रखने की। जबकि भाजपा ने उन्हें घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। नांदेड़ करीब 40 साल से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां से सात बार चह्वाण परिवार का ही कोई न कोई सदस्य चुनकर संसद में पहुंचता रहा है। उनके पिता शंकरराव चह्वाण केंद्र में गृहमंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक का दायित्व संभाल चुके हैं।

क्षेत्र पर अशोक चह्वाण की पकड़ का ही नतीजा है कि 2014 में वह न सिर्फ अपने लिए नांदेड़ की, बल्कि राहुल गांधी के करीबी सिपहसालार राजीव सातव के लिए बगल की हिंगोली लोकसभा सीट जितवाने में कामयाब रहे। तब की प्रबल मोदी लहर में सिर्फ ये दो सीटें ही कांग्रेस के हिस्से में आ सकी थीं। वास्तव में इन दोनों सीटों पर जीत ही, आदर्श घोटाले के बाद वनवास झेल रहे अशोक चह्वाण के लिए पुन: संकट से उबरने का माध्यम बनी। इसके बाद ही उन्हें 2015 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।

इस बार अशोक पत्नी अमिता को लोस चुनाव लड़वाकर स्वयं विधानसभा चुनाव की तैयारी करना चाहते थे। लेकिन आलाकमान के दबाव में उन्हें फिर से लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ रहा है। चुनौती तगड़ी है। भाजपा ने नांदेड़ की ही लोहा विधानसभा सीट से जीते शिवसेना विधायक प्रताप पाटिल चिखलीकर को अपना उम्मीदवार बनाया है। चिखलीकर ने पिछले साल हुए नांदेड़ के निकाय चुनावों में अशोक चह्वाण के सामने तगड़ी चुनौती खड़ी की थी। भाजपा यह सीट 2004 में भी जीत चुकी है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस चिखलीकर को उम्मीदवारी देकर फिर वह जीत दोहराना चाहते हैं। उन्हें यह काम मुश्किल नहीं लगता। क्योंकि 2014 में भी अशोक चह्वाण की जीत का अंतर सिर्फ 81,000 का ही था। अशोक चह्वाण की मुसीबत बढ़ाने में प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी भी बड़ी भूमिका निभा रही है। 

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