Loksabha Election 2019 : कानपुर परिक्षेत्र में राजनीतिक दलों के हाशिये पर रही आधी आबादी

दस लोकसभा सीटों ने अबतक दीं मात्र नौ महिला सांसद।

By AbhishekEdited By: Publish:Sun, 24 Mar 2019 08:13 PM (IST) Updated:Mon, 25 Mar 2019 10:09 AM (IST)
Loksabha Election 2019 : कानपुर परिक्षेत्र में राजनीतिक दलों के हाशिये पर रही आधी आबादी
Loksabha Election 2019 : कानपुर परिक्षेत्र में राजनीतिक दलों के हाशिये पर रही आधी आबादी

कानपुर, जेएनएन। महिलाओं के नेतृत्व क्षमता की कहानी यहां रानी लक्ष्मीबाई से शुरू होती है, जिन्होंने सन् 1857 की क्रांति में फिरंगियों के छक्के छुड़ा दिए थे। बुंदेलखंड की धरती वीरांगनाओं के शौर्य की साक्षी है। आजादी की जंग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ आजाद हिंद फौज की महिला विंग की कमान संभालने वाली कैप्टन लक्ष्मी सहगल का नाम कानपुर से जुड़ा है। मगर, राजनीतिक दल न जाने क्यों महिलाओं पर अधिक एतबार न जता सके।

कानपुर और बुंदेलखंड अंचल की दस लोकसभा सीटों का इतिहास बताता है कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा, 33 फीसद आरक्षण जैसी बातें भले ही होती रही हों, लेकिन भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे प्रमुख दल महिलाओं को लोकसभा प्रत्याशी बनाने में हिचकते ही रहे। 1952 से अब तक इन सीटों से सांसद बनने वाली महिलाओं के नाम चुनिंदा ही हैं।

अबतक इनकी चमकी किस्मत

सुशीला रोहतगी शीला दीक्षित कमल रानी वरुण सुभाषिनी अली सावित्री निगम सुखदा मिश्रा साध्वी निरंजन ज्योति डिंपल यादव अन्नू टंडन

कानपुर लोकसभा सीट

कानपुर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़ किसी दल ने महिलाओं पर भरोसा नहीं जताया। भाकपा ने वर्ष 1989 में कैप्टन लक्ष्मी सहगल की बेटी सुभाषिनी अली को कानपुर लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया और वह जीत भी गईं। फिर वर्ष 1991 में भाजपा के कैप्टन जगतवीर सिंह द्रोण से वह हार भले ही गईं, लेकिन उनकी पार्टी का भरोसा नहीं टूटा। वर्ष 1996 और फिर 2004 में भी उन्हें ही टिकट दिया गया। हालांकि वह दोबारा जीत नहीं सकीं। इसके अलावा वर्ष 2009 में बहुजन समाज पार्टी ने सुखदा मिश्रा को प्रत्याशी बनाया, जो तीसरे स्थान पर रहीं। उससे पहले या बाद में खुद मायावती किसी महिला पर भरोसा नहीं जता सकीं। भाजपा, कांग्रेस और सपा तो महिलाओं से पूरी तरह किनारा ही किए रहीं।

अकबरपुर लोकसभा सीट

कानपुर से जुड़ी बिल्हौर लोकसभा सीट परिसीमन के बाद 2009 में अकबरपुर लोकसभा सीट हो गई। अकबरपुर सीट के लिए दो चुनाव हो चुके हैं, लेकिन किसी दल ने महिला प्रत्याशी को नहीं उतारा। जब बिल्हौर लोकसभा सीट थी, तब कांग्रेस ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय की प्रपौत्री सुशीला रोहतगी को 1967 में प्रत्याशी बनाया था और वह जीतीं। दूसरी बार वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी जीत हुई। हालांकि बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र मिश्रिख संसदीय सीट का हिस्सा बना तो पिछले चुनाव में अंजू बाला भाजपा से सांसद बनीं। इसी तरह जब घाटमपुर सीट थी तो भाजपा के टिकट पर 1996 और 1998 में कमल रानी वरुण सांसद बनीं।

उन्नाव लोकसभा सीट

उन्नाव लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने तो महिलाओं पर भरोसा जताया, लेकिन अन्य दलों ने कदम नहीं बढ़ाए। 1957 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार गंगा देवी ने प्रजातांत्रिक पार्टी की कृष्णा कुमारी को हराया था। वर्ष 1980 और 84 के लोकसभा चुनाव में जयदेवी निर्दलीय चुनाव लड़ीं पर हार गईं। 1996 में कांग्रेस (तिवारी) की टिकट से शीला दीक्षित चुनाव लड़ीं पर जीत न सकीं। 2004 में अपना दल से संध्या कुमारी ने भाग्य आजमाया, पर वह चुनाव हार गईं। 2009 में अन्नू टंडन को कांग्रेस ने टिकट दिया और उन्होंने 49.73 फीसद वोट पाकर एतिहासिक जीत दर्ज की। हालांकि पिछला चुनाव वे हार गईं।

हमीरपुर-महोबा लोकसभा सीट

इस लोकसभा सीट से आज तक किसी प्रमुख राजनीतिक दल ने महिला को प्रत्याशी नहीं बनाया। हालांकि, अपना हौसला बढ़ाते हुए तीन महिलाएं मैदान में कूदीं जरूर। 1980 में निर्दलीय तारिहा खान, 1984 में पार्वती और 1999 में पुष्पा देवी साहू ने चुनाव लड़ा। यह तीनों ही चुनाव हार गईं।

बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट

इस सीट पर वर्ष 1962 में कांग्रेस ने पहली बार सावित्री निगम पर दांव लगाया और जीती भीं। इसके बाद 2009 में भाजपा ने अमिता बाजपेयी को टिकट थमाया, पर वे जीत नहीं सकीं। वहीं, सपा-बसपा ने चुनाव मैदान में कभी महिला उम्मीदवार को उतारा ही नहीं।

इटावा लोकसभा सीट

इटावा लोकसभा सीट पर भी अब तक मात्र भाजपा ने दो बार महिला उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया। भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 1998 में सुखदा मिश्रा को टिकट दिया था और वे जीतकर सांसद बनीं। वहीं, 2004 में भाजपा ने सरिता भदौरिया को टिकट दिया था। वह सपा के रघुराज सिंह शाक्य से हार गई थीं। सपा, बसपा व कांग्रेस ने किसी महिला को कभी टिकट नहीं दिया।

जालौन-गरौठा लोकसभा सीट

इस क्षेत्र में आधी आबादी की हमेशा उपेक्षा ही होती रही। महज एक बार कांग्रेस ने ही तवच्जो दी। 1998 में कांग्रेस ने बेनीबाई को प्रत्याशी बनाया था। उन्हें महज 27169 ही वोट मिले। उनके अलावा यहां कभी किसी महिला पर किसी दल ने भरोसा नहीं जताया।

फर्रुखाबाद लोकसभा सीट

फर्रुखाबाद लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने दो बार महिला प्रत्याशी के रूप में पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद तो एक बार प्रतिमा चतुर्वेदी को उतारा। भाजपा ने भी एक बार कायमगंज की पूर्व पालिकाध्यक्ष मिथलेश अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया। हालांकि इनमें से कोई जीत नहीं सकीं। वहीं, सपा और बसपा महिला नेत्रियों से पूरी तरह मुंह मोड़े रहीं।

फतेहपुर लोकसभा सीट

वर्ष 2014 के आम चुनाव को छोड़ दिया जाए तो संसदीय क्षेत्र के इतिहास में किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को चुनाव मैदान में नहीं उतारा। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हमीरपुर से विधायक रह चुकीं साध्वी निरंजन ज्योति को टिकट दिया तो वह 4 लाख 85 हजार 994 मत हासिल कर क्षेत्र की पहली महिला सांसद बनी। इसी चुनाव में कांग्रेस ने उषा मौर्य को भी भाग्य आजमाने का मौका दिया था।

कन्नौज लोकसभा सीट

इस सीट पर महिला सांसद के रूप में अब तक सिर्फ दो ही चेहरे हैं। 1984 में कन्नौज संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस ने शीला दीक्षित को चुनाव लड़ाया था। उन्होंने जीत दर्ज की थी। तब कन्नौज फर्रुखाबाद जिले में आता था। 2012 और 2014 में सपा से डिंपल यादव चुनाव जीतकर सांसद बनीं। अब एक बार फिर वह मैदान में हैं।

chat bot
आपका साथी